सुनील सिंह सिसोदिया
राजस्थान विधानसभा के बजट सत्र में सवालों की संख्या तो हजारों में है, लेकिन इनमें से प्रदेश स्तरीय और व्यापक जनहित के मुद्दों पर पूछे गए सवालों की संख्या बेहद कम है। अब तक करीब 9,800 सवाल विधानसभा में लगाए गए हैं, जिनमें से प्रश्नकाल में चर्चा के लिए 516 तारांकित प्रश्न सूचीबद्ध हुए। इनमें से भी 288 प्रश्नों पर ही चर्चा हो सकी। लगभग 40 सवाल प्रदेश स्तर के महत्वपूर्ण विषयों से जुड़े थे। कई सवाल एक ही विषय पर अलग- अलग विधायकों की ओर से पूछे गए। गंभीर यह है कि 200 विधायकों में से सिर्फ 30 ने ही प्रदेश स्तरीय सवाल लगाए। बाकी विधायकों के सवाल अपने-अपने क्षेत्रों तक सीमित रहे।
विकास के बड़े मुद्दों पर नहीं हो रही गंभीर बहस
अधिकांश सवाल किसी योजना के क्रियान्वयन, राशि व्यय या फिर स्थानीय स्तर की समस्याओं तक सीमित है। ऐसे में जनहित और प्रदेश के विकास से जुड़े गिने-चुने सवाल ही सदन में उठ पाए हैं। विधायकों के बड़े विषयों को लेकर सवाल नहीं पूछने से सरकार पर जवाबदेही बनाने और प्रदेश के विकास को गति देने के लिए भी दवाब नहीं बन पाता है। यह दर्शाता है कि सदन में प्रदेश के व्यापक विकास पर केंद्रित चर्चाएं कम हो रही हैं। महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों पर चर्चा का अवसर सीमित हो जाता है और ज्यादातर समय क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा तक सीमित रहता है।
प्रदेश की प्रगति के लिए व्यापक सोच की जरूरत
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विधानसभा में यदि विधायकों की ओर से प्रदेश स्तरीय सवाल कम लगाए जाते हैं, तो इसका सीधा असर राज्य की विकास योजनाओं और उनकी प्रभावी क्रियान्विति पर पड़ता है। प्रगति को गति देनी है तो योजनाओं की समीक्षा तक सीमित रहने के बजाय, रोजगार, बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य, जल संकट और औद्योगिक विकास जैसे बड़े विषयों पर भी सवाल उठाए जाने चाहिए। इससे न सिर्फ सरकार को जवाबदेह बनाया जा सकता है, बल्कि प्रदेश की दिशा-दशा तय करने में मदद मिलेगी।