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राज्यसभा में भारतीय संविधान के 75वें साल में विशेष चर्चा पर रणदीप सिंह सुरजेवाला, सांसद का संबोधनः
1. संविधान क्या है?
• क्या संविधान एक किताब का नाम है?
• क्या संविधान पूजा जाने वाला एक ग्रंथ है?
• क्या संविधान हाथी पर रखकर झाँकी निकालने वाला शास्त्र है?
2. सच्चाई यह है कि कोई कुंठित व दुर्भावनाग्रस्त व्यक्ति ही संविधान को ग्रंथ या शास्त्र बनाकर हाथी की सवारी निकाल जनता को भ्रमित करने का षडयंत्र कर सकता है।
3. तो संविधान है क्या?
जैसा बाबा साहब अंबेडकर ने भी संविधान के बारे कहा था कि…
• संविधान तो समानता है, यानी सबके लिए बराबरी का अधिकार है।
• संविधान तो आज़ादी है, यानी बोलने सोचने-देखने- पहनने-खाने पीने विरोध करने असहमत होने विचार व्यक्त करने की आज़ादी।
• संविधान तो न्याय है, यानी बड़े-छोटे, ऊँचे-नीचे, अमीर और गरीब के भेदभाव से ऊपर उठकर सबके लिए बराबरी का न्याय।
• संविधान तो भाईचारा है, यानी धर्म और जाति की नफरतों और विभाजनों से ऊपर उठकर प्रेम-सद्भाव-सदाचार का भाईचारा ।
4. संविधान के 74 सालों पर चर्चा के लिए, संविधान के मायने जानना सबसे जरूरी है।
• क्योंकि सत्ता के हीरों का मुकुट पहने और धनपतियों द्वारा भेंट में दिया सोने का डंडा पकड़े बादशाह आज संविधान के मायने भूल बैठे हैं।
• सत्ता के सिंहासन और बड़ी-बड़ी कुर्सियों पर बैठे लोगों के लिए आज की तारीख में संविधान के क्या मायने हैं:-
⇒ वो ‘राज के तंत्र’ यानी सत्ता हथियाने और सरकार बनाने को ही संविधान मान बैठे हैं,
पर देश के लिए गरीब की मुसीबतों और जनता की ज़रूरतों के आगे सत्ता की जवाबदेही निश्चित करने वाला प्रजातंत्र ही