पंजाब के पूर्व मंत्री और शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता दलजीत सिंह चीमा ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सुखबीर सिंह बादल पर धार्मिक सजा के दौरान हुए जानलेवा हमले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सेवा 10 दिनों तक जारी रहेगी। मैं सभी से आग्रह करता हूं कि जो लोग सेवा कर रहे हैं। उन्हें अपना काम करने दें। पंजाब के पूर्व मंत्री और शिरोमणि अकाली दल नेता दलजीत सिंह चीमा ने वहां पहुंचते हुए कहा 2 दिसंबर को श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा उनके लिए सुनाई गई धार्मिक सजा के तहत सजा काटने के लिए अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में लगातार दूसरे दिन भी सेवा की।
सजा के तहत सेवा का पालन
पंजाब के पूर्व मंत्री दलजीत सिंह चीमा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सेवा 10 दिनों तक जारी रहेगी। मैं सभी से आग्रह करता हूं कि जो लोग सेवा कर रहे हैं। उन्हें अपना काम करने दें। अकाल तख्त के फैसले का सम्मान करते हुए चीमा ने स्वर्ण मंदिर में झाड़ू लगाने और अन्य सेवाएं करने में हिस्सा लिया। आपको बता दें कि अकाल तख्त ने 2007 से 2017 तक पंजाब में शिअद और उनकी सरकार द्वारा की गई गलतियों का हवाला देते हुए उनके लिए सजा जारी की है।
अकाल तख्त का फैसला
श्री अकाल तख्त साहिब ने यह सजा अकाली दल और उसकी सरकार के कार्यकाल में हुई गलतियों को लेकर जारी की है। यह फैसला अकाल तख्त के धार्मिक और नैतिक अधिकार का प्रतीक है। जिसे सिख समुदाय में सर्वोच्च माना जाता है।
शिअद पर लगाए गए आरोप
अकाल तख्त ने 2007-2017 के दौरान शिरोमणि अकाली दल और उसकी सरकार पर धार्मिक और प्रशासनिक चूक का आरोप लगाया है। अकाली दल की सरकार पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और गुरुद्वारा प्रबंध में अनियमितताओं का आरोप लगाया गया है। इस सजा को अकाल तख्त की ओर से शिअद के सदस्यों को आत्मचिंतन और पश्चाताप का अवसर देने के रूप में देखा जा रहा है।
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पूर्व मंत्री चीमा का रुख दलजीत सिंह चीमा ने सजा को विनम्रता से स्वीकार किया और सिख परंपरा के अनुरूप सेवा में भाग लेने की इच्छा जताई। उनका कहना है कि अकाल तख्त के आदेशों का पालन करना हर सिख का कर्तव्य है। चीमा ने समाज के अन्य सदस्यों से भी अपील की कि वे इस सेवा में बाधा न डालें। सजा के धार्मिक और राजनीतिक मायने शिरोमणि अकाली दल के लिए यह सजा एक आत्ममंथन का अवसर है। क्योंकि यह पार्टी सिख समुदाय की भावनाओं और धार्मिक मामलों से जुड़ी हुई है। अकाल तख्त के इस फैसले का उद्देश्य धार्मिक अनुशासन बनाए रखना और सिख समुदाय में अखंडता सुनिश्चित करना है। यह मामला अकाली दल के लिए राजनीतिक और धार्मिक दोनों स्तरों पर चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
दलजीत सिंह चीमा द्वारा अकाल तख्त के आदेशों का पालन करते हुए स्वर्ण मंदिर में सेवा करना। सिख परंपरा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह घटना अकाली दल के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है। जो धार्मिक और सामाजिक दायित्वों के प्रति उनकी भूमिका पर पुनर्विचार का संकेत देती है। स्वर्ण मंदिर में उनकी सेवा अगले 10 दिनों तक जारी रहेगी।
पूर्व मंत्री चीमा का रुख
दलजीत सिंह चीमा ने सजा को विनम्रता से स्वीकार किया और सिख परंपरा के अनुरूप सेवा में भाग लेने की इच्छा जताई। उनका कहना है कि अकाल तख्त के आदेशों का पालन करना हर सिख का कर्तव्य है। चीमा ने समाज के अन्य सदस्यों से भी अपील की कि वे इस सेवा में बाधा न डालें।
सजा के धार्मिक और राजनीतिक मायने
शिरोमणि अकाली दल के लिए यह सजा एक आत्ममंथन का अवसर है। क्योंकि यह पार्टी सिख समुदाय की भावनाओं और धार्मिक मामलों से जुड़ी हुई है। अकाल तख्त के इस फैसले का उद्देश्य धार्मिक अनुशासन बनाए रखना और सिख समुदाय में अखंडता सुनिश्चित करना है। यह मामला अकाली दल के लिए राजनीतिक और धार्मिक दोनों स्तरों पर चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
दलजीत सिंह चीमा द्वारा अकाल तख्त के आदेशों का पालन करते हुए स्वर्ण मंदिर में सेवा करना। सिख परंपरा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह घटना अकाली दल के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है। जो धार्मिक और सामाजिक दायित्वों के प्रति उनकी भूमिका पर पुनर्विचार का संकेत देती है। स्वर्ण मंदिर में उनकी सेवा अगले 10 दिनों तक जारी रहेगी।