Maharashtra Elections Results 2024: महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का किस कदर दबदबा रहा है। इस बात से कोई भी अनजान नहीं है, लेकिन इस चुनाव में यह तस्वीर काफी अलग दिखीं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों में कहीं ना कहीं ठाकरे परिवार की चर्चा हो रही है। आदित्य ठाकरे ने वर्ली में जीत हासिल की, जबकि उनके चचेरे भाई अमित ठाकरे को माहिम में हार का सामना करना पड़ा। इन नतीजों में उनके चाचाओं राज और उद्धव ठाकरे के प्रभाव ने अहम भूमिका निभाई।
वर्ली में आदित्य की जीत
आदित्य ठाकरे ने शिवसेना (शिंदे गुट) के अनुभवी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा के खिलाफ वर्ली से चुनाव लड़ा था। 2019 में आदित्य ने 72.7% वोट शेयर के साथ यह सीट जीती थी। हालांकि, इस बार राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के संदीप देशपांडे को उम्मीदवार बनाकर मैदान में उतरने से समीकरण बदल गए।
मनसे की मौजूदगी ने चुनावी तस्वीर को काफी हद तक बदल दिया। आदित्य 8,000 वोटों के अंतर से जीत हासिल करने में सफल रहे, उन्हें कुल 60,606 वोट मिले। वहीं, देवड़ा को 52,198 वोट मिले और देशपांडे को 18,858 वोट मिले। विश्लेषकों का मानना है कि मनसे की भागीदारी के बिना आदित्य और देवड़ा के बीच मुकाबला और भी करीबी हो सकता था।
माहिम में अमित को झटका
माहिम में अमित ठाकरे को शिंदे गुट, उद्धव गुट (शिवसेना यूबीटी) और मनसे के उम्मीदवारों के बीच त्रिकोणीय मुकाबले का सामना करना पड़ा। अंत में, उद्धव गुट के महेश सावंत 50,213 वोटों के साथ विजयी हुए। शिंदे गुट के सदा सरवणकर लगभग 48,897 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। अमित ठाकरे 33,062 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे, जो करीब 17 हजार वोटों से पीछे रहे। जानकारों का कहना है कि अगर उद्धव ठाकरे ने यहां अपना उम्मीदवार नहीं उतारा होता, तो अमित के लिए अपना पहला चुनावी मुकाबला जीतने का बेहतर मौका होता।
चुनाव में पारिवारिक भूमिका
चुनाव परिणाम इस बात को दर्शाता करते हैं कि ठाकरे परिवार के भीतर पारिवारिक गतिशीलता किस तरह राजनीतिक नतीजों को प्रभावित कर सकती है। आदित्य जहां मनसे द्वारा रणनीतिक चालों के माध्यम से अपनी जीत में मदद करने के लिए अपने चाचा राज को श्रेय दे सकते हैं, वहीं अमित अपनी हार का श्रेय चाचा उद्धव द्वारा लिए गए निर्णयों को दे सकते हैं। दशकों से ठाकरे परिवार महाराष्ट्र की राजनीति पर अपना दबदबा बनाए हुए है। इस चुनाव ने दोनों युवा नेताओं आदित्य और अमित के लिए आंखें खोलने का काम किया, जिससे यह पता चला कि पारिवारिक संबंध किस तरह से राजनीतिक किस्मत को प्रभावित कर सकते हैं।
शिवसेना का गढ़ दोनों सीटें
बता दें कि वर्ली और माहिम में मुकाबला खास तौर पर कड़ा रहा, क्योंकि इन इलाकों को कभी एकीकृत शिवसेना का गढ़ माना जाता था। त्रिकोणीय लड़ाई के उभरने से इन निर्वाचन क्षेत्रों में राजनीतिक निष्ठाओं और रणनीतियों में बदलाव आया।
ठाकरे परिवार पिछले करीब पचास सालों से महाराष्ट्र की राजनीति में एक प्रमुख ताकत रहा है। इस चुनाव ने इस बात को साफ कर दिया कि पारिवारिक रिश्ते किस तरह से राजनीतिक नतीजों को सीधे प्रभावित कर सकते हैं। परिवार के भीतर व्यक्तिगत संबंधों के बावजूद, उनकी राजनीतिक रणनीतियों ने आदित्य और अमित दोनों के लिए चुनाव परिणामों को काफी हद तक प्रभावित किया।