हर जिला में फसलों के रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए पहले से ही करने चाहिए था खाद का प्रबंध
चंडीगढ़, 26 अक्तूबर।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार को जब पता था कि रबी सीजन की फसलों की बिजाई के समय डीएपी खाद का संकट गंभीर रूप ले लेता है तो उसे देखते हुए सरकार ने उचित कदम क्यों नहीं उठाया। क्यों किसानों को उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है ऊपर से भाजपा किसान हितेषी होने का दावा करती है। देश में सालाना करीब 110 लाख टन डीएपी की खपत होती है जिसमें से लगभग 70 लाख टन का आयात होता है। ऐसे में किसान डीएपी के लिए मारा मारा फिरता है। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकारी एजेंसी पर खाद खत्म बता दी जाती है जबकि प्राइवेट एजेंसी पर वहीं खाद ब्लैक में बिकती है।
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा है कि प्रमुख उर्वरक डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) की किल्लत ने किसानों की नींद उड़ा दी है। हरियाणा में डीएपी के लिए किसान लाइनों में लगने को मजबूर हैं, फिर भी जरूरत के मुताबिक डीएपी नहीं मिल पा रहा है। रबी सीजन में गेहूं, सरसों, चना और आलू की बुवाई के लिए किसानों को डीएपी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। कई जगह तो डीएपी के लिए मारामारी की स्थिति पैदा हो गई है और किसान धरना-प्रदर्शन करने को मजबूर हैं। उर्वरक के रूप में यूरिया के बाद देश में सबसे अधिक खपत डीएपी की होती है। डीएपी का प्रयोग मुख्यत: फसल की बुवाई के समय किया जाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल सितंबर में डीएपी की बिक्री पिछले साल के 15.7 लाख टन के मुकाबले 51 फीसदी घटकर 7.76 लाख टन रह गई है। जबकि इस साल अच्छे मानसून के कारण उर्वरकों की मांग बढ़ी है। डीएपी का मौजूदा संकट खरीफ सीजन के दौरान ही शुरू हो गया था जो अब सामने दिख रहा है।
उन्होंने कहा है कि इस साल अप्रैल से अगस्त 2024 तक भारत में 15.9 लाख टन डीएपी का आयात हुआ, जो पिछले साल इसी अवधि में हुए 32.5 लाख टन डीएपी आयात से 51 फीसदी कम है। उन्होंने कहा कि डीएपी आने में देरी हो गई तो सींचे गए खेत अगर सूख जाएंगे और किसानों को फिर से खेतों की सिंचाई करनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि जब डीएपी उपलब्ध थी तो डीएपी का वितरण सही तरीके से नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि सरकार के पास पूरा रिकॉर्ड है कि किस जिले में कितनी जमीन है और कौन-कौन सी फसल होती है। ऐसे में समय रहते डीएपी व यूरिया का प्रबंध न करना मिसमैनेजमेंट है। अब अगले महीने में किसानों को यूरिया के लिए इसी प्रकार ठोकरें खानी पड़ेगी। उन्होंने सरकार से मांग की कि जरूरत के अनुसार डीएपी तुरंत मुहैया करवाई जाए और यूरिया का पहले से ही प्रबंध किए जाएं ताकि इसके बाद किसानों को परेशान न होना पड़े।