झारखंड में चुनाव की घोषणा के बाद जहां छोटे से लेकर बड़े नेता अपनी-अपनी सीट सुरक्षित करने में जुटे हैं. वहीं तीन दशक से झारखंड की राजनीति को प्रभावित करने वाले कद्दावर नेता सरयू राय को लेकर सस्पेंस बना हुआ है.
जेडीयू और बीजेपी सियासी शह-मात के खेल में राय चुनाव लड़ेंगे या नहीं, झारखंड में यही सवाल बन गया है.
कहा जा रहा है 3 मुख्यमंत्रियों को सियासी मात देने वाले सरयू राय इस बार सीट और समीकरण के दांव पेच में खुद फंस गए हैं.
3 मुख्यमंत्रियों को सियासी मात दे चुके हैं सरयू
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जरिए राजनीति में आने वाले सरयू राय 3 पूर्व मुख्यमंत्रियों को मात दे चुके हैं. इनमें लालू प्रसाद यादव, मधु कोड़ा और रघुबर दास का नाम शामिल हैं. 1997 में जब संयुक्त बिहार में चारा घोटाले ने तूल पकड़ा तो राय ने कुछ नेताओं के साथ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी.
राय की याचिका पर लंबी सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने लालू के खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश दिया. सीबीआई ने जांच के दौरान लालू को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी की वजह से लालू को कुर्सी छोड़नी पड़ी. इसके बाद लालू कभी बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए.
इसी तरह 2008 में सरयू राय ने झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. कोड़ा पर कोयला और खनन में घोटाला करने का आरोप था. आरोप लगने और सहयोगियों के समर्थन वापस लेने की वजह से कोड़ा को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी.
2019 में सरयू राय ने अपने ही पार्टी बीजेपी के चुनावी चेहरा रहे और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास को धूल चटा दी. 2019 में जमशेदपुर पश्चिमी सीट से सरयू राय का टिकट बीजेपी ने काट दिया, जिसके बाद राय पड़ोस की पूर्वी सीट से निर्दलीय ही मैदान में उतर गए.
जमशेदपुर पूर्वी सीट से रघुबर दास मैदान में थे. राय ने दास को चुनाव हरा दिया. इस हार के बाद रघुबर दास झारखंड की राजनीति से ही दूर हो गए.
राय की सियासी शक्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि सरयू राय से क्या ही छुपाना, उनके पास तो सरकार के सभी डॉक्यूमेंट्स होते हैं.
पर इस बार सरयू राय खुद भंवर में फंस गए?
झारखंड की सियासत में जॉइंट किलर के नाम से मशहूर सरयू राय के बारे में कहा जा रहा है कि वे इस बार खुद सियासी भंवर में फंस गए हैं. इसकी 3 वजहें भी बताई जा रही है.
1. सरयू राय जमशेदपुर पूर्वी सीट से विधायक हैं. यह सीट बीजेपी की परंपरागत सीट रही है. राय जब 2019 में इस सीट जीतकर सदन पहुंचे तो उन्होंने वादा किया कि अब कभी इस सीट को छोड़ूंगा. हाल के दिनों में भी उन्होंने कई मौकों जमशेदपुर पूर्वी न छोड़ने की बात कही है.
राय का तर्क है कि मैंने 2019 के चुनाव में पूर्वी क्षेत्र के मतदाताओं से रघुबर मुक्त का वादा किया था. मैं जब तक रहूंगा, तब तक इसी क्षेत्र के लिए काम करूंगा.
2. राय के जमशेदपुर से लड़ने पर बीजेपी ने वीटो लगा दिया है. रांची में प्रेस वार्ता के दौरान बीजेपी के सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि हम सिर्फ जमशेदपुर पश्चिमी अपने सहयोगी जनता दल के लिए छोड़ सकते हैं. पूर्वी नहीं छोड़ेंगे. राय जनता दल यूनाइटेड के नेता हैं और कहा जा रहा है कि बीजेपी राय को जमशेदपुर पश्चिमी से लड़ाना चाहती है.
जमशेदपुर पश्चिमी से अभी कांग्रेस के बन्ना गुप्ता विधायक हैं, जो हेमंत सरकार में मंत्री भी हैं. गुप्ता और राय की सियासी अदावतें भी जगजाहिर है.
3. राय के जमशेदपुर पश्चिमी से लड़ने पर उनकी पार्टी से ही वीटो लगता दिख रहा है. जेडीयू के झारखंड अध्यक्ष खीरू महतो का कहना है कि हम किसी भी स्थिति में बीजेपी की बात नहीं मानेंगे. बीजेपी सिर्फ जेडीयू को 2 सीटें देना चाहती है, लेकिन हम 11 मांग रहे हैं.
खीरू महतो ने 11 सीटों की सूची जेडीयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार को सौंप दी है. फाइनल फैसला नीतीश कुमार को करना है. कहा जा रहा है कि अगर जमशेदपुर पश्चिमी से लड़ने के लिए सरयू राय तैयार भी हो जाते हैं तो क्षेत्र में उनकी राह आसान नहीं होने वाली है.