Ratan Tata Passes away: ‘बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया…’ आज पूरा भारत उदास है. मायानगरी मुंबई से लेकर चेन्नईस कोलकाता और देश की राजधानी दिल्ली तक मायूसी और खामोशी छाई है.
इसकी वजह उस अनमोल रत्न का हम सभी से दूर चले जाना है, जिसे भगवान ने अपने पास बुला लिया. यहां बात देश की अर्थव्यवस्था को चार चांद लगाने के साथ देश के करोड़ों लोगों की सेहत और उनके हितों को ध्यान में रखने वाले उस कारोबारी रतन टाटा की जिन्होंने बीती रात 86 साल की उम्र में आखिरी सांस ली.
रतन टाटा के निधन से देश में शोक की लहर है. सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. मुंबई में उनकी पार्थिव देह के अंतिम दर्शनों के लिए लोगों का तांता लगा है.प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर हैं, इसलिए गृह मंत्री अमित शाह उनके अंतिम संस्कार में शामिल होंगे. ऐसे में उनके अंतिम संस्कार को लेकर ये बड़ी जानकारी सामने आ रही है. महाराष्ट्र और झारखंड में एक दिन के राजकीय शोक का ऐलान किया गया है. मुंबई में CM एकनाथ शिंदे ने उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ करने की जानकारी साझा की है.
पारसी रीति-रिवाजों के तहत होगा अंतिम संस्कार?
रतन टाटा का अंतिम संस्कार उनके पारसी रीति-रिवाजों के तहत होगा. जानकारी के मुताबिक टाटा के पार्थिव शरीर को शाम 4 बजे के करीब मुंबई के वर्ली स्थित इलेक्ट्रिक अग्निदाह केंद्र में रखा जाएगा. जहां थोड़ी देर तक प्रार्थना के बाद उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाएगी. आपको बताते चलें कि पारसी लोगों के अंतिम संस्त रीति रिवाज हिंदुओं के दाह संस्कार और मुसलमानों की तरह सुपुर्दे खाक या इसाइयों की तरह दफनाने की प्रथा से काफी अलग तरह से होता है. पारसी लोग मानते हैं कि मानव शरीर प्रकृति का दिया तोहफा है. ऐसे में मौत के बाद उसे उसी तरह प्रकृति को लौटा दिया जाना चाहिए. पूरी दुनिया में पारसी अपने परिजनों का अंतिम संस्कार इसी तरह से करते हैं. शवों को टावर ऑफ साइलेंस में रखा जाता है.
क्या है टावर ऑफ साइलेंस
टावर ऑफ साइलेंस को आप श्मसान या कब्रिस्तान की तरह वह जगह समझ सकते हैं, जहां पारसी लोग किसी की मृत्यु के बाद उसका शव प्रकृति की गोद में छोड़ देते हैं. यह प्रथा सदियों से पारसी लोगों में चली आ रही है. इसे दखमा भी कहा जाता है. पारसी समुदाय के लोगों के शवों को ‘टावर ऑफ साइलेंस’ पर छोड़ने की परंपरा रही है, वहां पर गिद्ध इन शवों को खा जाते हैं. इसे शव को ‘आकाश में दफनाना’ भी कहा जाता है. हालांकि, नई पीढ़ी के पारसी अब ऐसे अंतिम संस्कार की प्रथा को कम मानते हैं. ऐसे में रतन टाटा का भी अंतिम संस्कार पारसियों के बनाए विद्युत शवदाह गृह में किया जा सकता है.
इलेक्ट्रिक शवदाहगृह में दाह संस्कार की प्रक्रिया में करीब एक से डेढ़ घंटे का समय लगता है. इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में शवदाह के बाद बची राख बिल्कुल वैसी ही दिखती है जैसी गैस ओवन में शवदाह के बाद दिखती है. शवदाह के बाद राख को क्रेमुलेटर में बारीक कणों में संसाधित किया जाता है.