कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ MUDA scam case में एक विशेष अदालत ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है – और भ्रष्टाचार के मामले की जांच अब कर्नाटक लोकायुक्त करेंगे. स्पेशल कोर्ट ने लोकायुक्त को तीन महीने के भीतर जांच की रिपोर्ट पेश करने का भी हुक्म दिया है.
MUDA केस में मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत की मंजूरी को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कर्नाटक हाई कोर्ट में चैलेंज किया था, लेकिन उनकी याचिका अदालत ने खारिज कर दी.
कर्नाटक की राजनीतिक जंग अपनी जगह है, लेकिन सिद्धारमैया उस मोड़ पर तो पहुंच ही चुके हैं जहां इस्तीफा देने की नौबत आ चुकी है. अब ये राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे को मिलकर तय करना है कि सिद्धारमैया इस्तीफा देते हैं या नहीं – बाकी चीजें अपनी जगह हैं, लेकिन एक बात तो पक्की है सिद्धारमैया के इस्तीफे से कर्नाटक कांग्रेस में भूचाल तो आ ही जाएगा.
सिद्धारमैया से भी ज्यादा मुश्किल कांग्रेस के लिए हो गई है
हाई कोर्ट से सिद्धारमैया को मिले झटके के तुरंत बाद ही कर्नाटक की राजनीति में हड़कंप मच गया. बीजेपी फौरन ही सिद्धारमैया से इस्तीफा देने की मांग करने लगी. बीजेपी नेताओं को ये कांग्रेस के खिलाफ बड़ा मौका मिल गया लगता है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने 40 फीसदी कमीशन को बड़ा मुद्दा बनाया था.
अब ये सिद्धारमैया पर निर्भर करता है कि वो येदियुरप्पा की तरह इस्तीफा देकर मुकदमे को फेस करते हैं, या आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल की तरह मुख्यमंत्री बने रह कर ही कानूनी लड़ाई लड़ते हैं.
MUDA केस की वजह से सिद्धारमैया की अब तक रही बेदाग छवि को गहरा धक्का लगा है. अपनी छवि के कारण ही सिद्धारमैया ने डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री पद की रेस में पीछे छोड़ दिया था, और उनको डिप्टी सीएम की कुर्सी से ही संतोष करना पड़ा था, लेकिन अब सिद्धारमैया भी धीरे धीरे बुरी तरह फंसते जा रहे हैं.
जांच के घेरे में आ जाने और जेल जाने के कारण ही कांग्रेस ने कर्नाटक में बीजेपी के खिलाफ मोर्चे पर पीछे रखने का फैसला किया था. लेकिन, अब सिद्धारमैया के फंस जाने से कांग्रेस के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है.
कांग्रेस नेतृत्व पहले जैसा या मौजूदा बीजेपी की तरह मजबूत स्थिति में भी नहीं है कि किसी को भी मुख्यमंत्री बना दे तो वो सब कुछ संभाल लेगा. कांग्रेस के किसी भी नेता के लिए मुख्यमंत्री बन कर सरकार चलाने भर की ही जिम्मेदारी नहीं होगी, बल्कि उसे विधायकों पर भी पकड़ मजबूत रखनी होगी, ताकि सरकार ऑपरेशन लोटस की शिकार न हो जाये. मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस खुद भी इसका स्वाद चख चुकी है, और कर्नाटक तो ऑपरेशन लोटस की पहली कर्मभूमि होने के साथ साथ जन्मभूमि भी है.
हाई कोर्ट से मिले झटके के बाद सिद्धारमैया के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प तो है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का रुख भी हाई कोर्ट जैसा ही रहा तो क्या होगा?
कांग्रेस की मुश्किल ये भी है कि सिद्धारमैया को हटाने के बाद अगर डीके शिवकुमार को कुर्सी सौंपती है, तो कानूनी पचड़ों के साथ साथ नये संकट भी खड़े हो जाने की आशंका है. सिद्धारमैया कर्नाटक के कुरुबा समुदाय से आते हैं, जो ओबीसी कैटेगरी में आता है. कर्नाटक में कुरुबा सबसे बड़ा और ताकतवर ओबीसी समुदाय है – सिद्धारमैया को हटाये जाने की सूरत में कांग्रेस के लिए खतरा ही खतरा है. कर्नाटक में कांग्रेस को एकजुट रख पाना भी मुश्किल हो सकता है.
सिद्धारमैया भी तो येदियुरप्पा की तरह ही फंसे हैं
कर्नाटक में हालात बिलकुल वैसे ही हो गये हैं जैसे 2011 में थे. फर्क बस ये है कि सूबे के साथ साथ केंद्र में भी सत्ता की कमान बदल गई है. तब कर्नाटक में बीजेपी की सरकार थी, और केंद्र में कांग्रेस की. अभी कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है, और केंद्र में बीजेपी की.
तब बीजेपी के मुख्यमंत्री के खिलाफ कांग्रेस के राज्यपाल हंसराज हंस ने मुकदमा चलाने की इजाजत दी थी. अब कांग्रेस के मुख्यमंत्री के खिलाफ बीजेपी सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने मंजूरी दी है – और अब बीजेपी हमलावर है, क्योंकि कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में आना पड़ा है.
2011 में बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. तभी येदियुरप्पा पर दो वकीलों ने जमीन घोटाले का आरोप लगाया था, और फाइल आते ही तत्कालीन राज्यपाल ने तत्काल केस चलाने की मंजूरी दे दी थी. राज्यपाल के फैसले पर तब बीजेपी की तरफ से भी वैसे ही सवाल उठाये जा रहे थे, जैसे अभी कांग्रेस उठा रही है.
राज्यपाल की अनुमति मिलते ही लोकायुक्त ने येदियुरप्पा के खिलाफ वारंट जारी कर दिया. येदियुरप्पा ने जमानत की अर्जी डाली लेकिन वो खारिज हो गई. जब जेल जाने की नौबत आई तो येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर सरेंडर कर दिया. करीब एक महीना जेल में भी बिताना पड़ा था.
कुमारस्वामी केस को मुद्दा बनाकर कांग्रेस कुछ हासिल कर सकती है क्या?
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास फाइल भेजी है. राज भवन से सिद्धारमैया के खिलाफ तो मुकदमा चलाने की मंजूरी मिल गई है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के खिलाफ नहीं.
कांग्रेस के सपोर्ट से कभी कर्नाटक में सरकार बनाने वाले एसडी कुमारस्वामी की पार्टी का लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन हुआ था, और फिलहाल वो बीजेपी की केंद्र सरकार में मंत्री हैं.
सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सरकार ने कुमारस्वामी के अलावा बीजेपी सरकार के तीन मंत्रियों के खिलाफ भी मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी है, जिनमें से एक खनन कारोबारी जी. जनार्दन रेड्डी भी शामिल हैं.
कर्नाटक में कांग्रेस के सामने कानूनी लड़ाई के साथ साथ राजनीतिक लड़ाई की चुनौती खड़ी हो गई है. कानूनी लड़ाई तो लंबी चलेगी, लेकिन राजनीतिक लड़ाई में कांग्रेस थोड़ा सा भी चूक गई तो बहुत बड़ी मुश्किल हो सकती है – ऐसे में कांग्रेस के पास यही विकल्प बचता है कि कुमारस्वामी और बीजेपी नेताओं के साथ मुहिम तेज कर बीजेपी को बैकफुट पर भेजने की कोशिश करे, तभी बचाव का कोई रास्ता नजर आएगा.