कर्नाटक में एक स्पेशल कोर्ट ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं. कथित MUDA स्कैम केस में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी और लोकायुक्त इस केस की जांच करेंगे. कोर्ट के इस फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ी दुविधा खड़ी हो गई है.
बीजेपी की तरफ से उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है लेकिन उन्होंने मामले को साजिश करार देते हुए इससे इनकार किया है.
मुख्यमंत्री ने 25 सितंबर को बेंगलुरु में एक विधायक दल की बैठक बुलाने का फैसला किया है, इस दौरान वह अपना शक्तिप्रदर्शन करेंगे और यह दिखाने की कोशिश करेंगे कि सभी विधायक उनके साथ हैं. कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी मामले में एक शुरुआती बयान में बीजेपी पर एक लोकप्रिय ओबीसी सीएम को टारगेट करने का आरोप लगाया और कांग्रेस द्वारा दी जा रही गारंटियों को पटरियों पर उतारने की कोशिश का आरोप लगाया.
कोर्ट की टिप्पणी के बाद कांग्रेस में हलचल
सारी हलचल के बीच एक बात स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी कोर्ट की टिप्पणी से हिल गई है, जहां कोर्ट ने राज्यपाल थावर चंद गहलोत के भूमि घोटाले की जांच के आदेश को बरकरार रखा. हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे अहम चुनावों के मद्देनजर, वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को इस पर विचार करना पड़ रहा है कि अदालत के आदेश की अवहेलना करते हुए सिद्धारमैया का प्रभाव इन राज्यों में चुनावों पर क्या पड़ेगा.
माना जाता है कि सिद्धारमैया को राहुल गांधी का समर्थन है लेकिन दूसरी तरफ सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी का सॉफ्ट कॉर्नर डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के साथ है. शिवकुमार राज्य विधानसभा चुनाव के बाद सीएम पद के एक प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन फिर उन्हें इससे महरूम रहना पड़ा था. झटका मिलने के बाद सिद्धारमैया कर्नाटक हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के सामने राहत की मांग के साथ याचिका दायर कर सकते हैं.
इस बीच कांग्रेस लीगल सेल के प्रमुख और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी का ओपीनियन हाई कमान के लिए अहम हो सकती है, जिन्होंने सिंगल जज जस्टिस एम नागप्रसन्ना के समक्ष मामले की पैरवी की, जो हाई कमान को इस बात के लिए आश्वस्त कर सकते हैं कि सिद्धारमैया का केस कानून जांच पर खरा उतर सकता है या नहीं. हालांकि, एकल जज का फैसला सिंघवी के ही तर्कों पर आधारित है, जिसमें राज्यपाल पर “पूर्वाग्रह” के आरोप लगाए गए थे.
परदे के पीछे
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर MUDA लैंड के आवंटन में गड़बड़ी के आरोप थे, जिसमें करोड़ों रुपये के जमीन के हेराफेरी का मामला है. मामले फैसला सुनाते हुए विशेष अदालत में एकल जज की बेंच ने कहा, “यह स्वीकार करना मुश्किल है कि लाभार्थी MUDA भूमि आवंटन के लेन-देन के दौरान परदे के पीछे नहीं थे, जिससे परिवार को 14 साइटें हासिल करने और 55.80 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित करने में मदद मिली.”
आदेश में कहा गया कि मामले में “कम से कम जांच की जरूरत है, क्योंकि अगर याचिकाकर्ता सत्ता में नहीं होता, तो इस स्तर का लाभ नहीं मिलता. यह सामान्य शख्स के लिए असामान्य है कि उसे नियमों को बार-बार तोड़मरोड़ करते हुए इतनी जल्दी इस तरह के फायदे हासलि कर पाएं.”
अपने आरोपों पर ज्यादा विवाद पैदा नहीं करते हुए सिद्धारमैया जांच का सामने करने को तैयार हो गए और कहा कि वह जांच के लिए तैयार हैं, और ये कि इससे सच्चाई सामने आ जाएगी. उन्होंने बीजेपी और जेडी(एस) पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे “बदले की राजनीति” कर रहे हैं क्योंकि वह “गरीबों के समर्थक हैं और सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं.”
मुख्यमंत्री की छवि पर असर
सिद्धारमैया का राजनीतिक जीवन बड़ा ही शानदार रहा है और चार दशक से वह राजनीति में सक्रीय हैं और उनका सार्वजनिक जीवन में रिकॉर्ड साफ रहे हैं. हालांकि, सीएम सिद्धारमैया को स्पेशल कोर्ट के आदेश से आघात पहुंचा है. उन्हें उम्मीद है कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच उन्हें MUDA मामले से उनकी पत्नी को लाभ पहुंचाने के आरोप से बरी कर देगी, जो जमीनें 2022 में बीजेपी सरकार के शासन में ली गई थी.
सिद्धारमैया के कट्टर समर्थकों में शामिल मंत्रियों संतोष लाड और प्रियांक खड़गे ने दावा किया है कि “MUDA की भूमि आवंटन योजना के कम से कम 125 अन्य लाभार्थी थे और अगर कोई गलती हुई है, तो वह बीजेपी सरकार के नेतृत्व वाली बसवराज बोम्मई द्वारा की गई थी.”
दरअसल, शिकायतकर्ता ने सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती सिद्धारमैया द्वारा किए गए मुआवजे के दावे की गंभीरता पर सवाल उठाए थे, जहां उन्होंने 2010 में 3.16 एकड़ लैंड पीस हासिल की और 2014 में वैकल्पिक साइटों के लिए आवेदन किया था, जबकि वो जमीन तब अस्तित्व में भी नहीं थी और MUDA ने 2001 में वहां के लेआउट का निर्माण किया था. उन्होंने यह भी बताया कि मुआवजे का अनुपात 40:60 से बदलकर 50:50 कर दिया गया था और कथित तौर पर साइटों के आवंटन के दौरान उन्हें एक विशेष छूट दी गई थी.
इस मामले के सामने आने के बाद सिद्धारमैया सरकार ने पूर्व MUDA आयुक्त दिनेश कुमार को साइटों के आवंटन में नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में निलंबित कर दिया था, लेकिन बाद में कोई स्पष्टीकरण दिए उनकी दोबारा बहाली कर दी गई थी.
कुछ लोगों का तर्क है कि सिद्धारमैया इस कानूनी उलझन से बच सकते थे, लेकिन तब जब वह सार्वजनिक रूप से इस तरह का बयान देते कि पत्नी को की जमीन आवंटन के मामले से वह अनजान थे और अगर आवंटन में कोई अनियमितता पाई जाती है तो वे उन साइटों को सरेंडर कर देंगे, लेकिन, अब ऐसा लगता है कि कावेरी नदी में बहुत पानी बह चुका है और सिद्धारमैया का राजनीतिक करियर एक मुश्किल मोड़ पर खड़ा है.