वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शिक्षण संस्थानों में तनाव के वातावरण को दूर करने के लिए हाल ही में कुछ टिप्पणियां की हैं। लेकिन, लगता है कि आलोचकों ने एक नेक इरादे से दिए गए उनके अच्छे सुझावों का गलत मतलब निकाल लिया।
वित्त मंत्री की बातों को समझने के बाद साफ लगता है कि वह छात्रों की समस्याओं से किस कदर चिंतित हैं और उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर जोर देना चाहती हैं।
आज इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि युवा वर्ग पर सफलता हासिल करने का इतना दबाव है कि चाहे छात्र हों या फिर नौकरी-पेशा लोग, वह भारी दबाव झेलने को मजबूर हैं। वित्त मंत्री के कहने का साफ मतलब लग रहा है कि वह नहीं चाहतीं कि आगे किसी तरह तनाव या अवसाद की वजह से देश का भविष्य खतरे में पड़े। उनकी बातों से लगता है कि वह इस बात की वकालत करना चाह रही हैं कि छात्र हों या पेशेवर लोग, उनके काम की जगह पर भी स्ट्रेस मैनेजमेंट के साधन उपलब्ध होने चाहिए।
उन्होंने अर्नस्ट एंड यंग इंडिया की एक युवा महिला कर्मचारी के साथ हुई दुखद घटना का जिक्र बहुत ही संवेदनशीलता से किया है। उन्होंने न तो किसी खास का नाम लिया है और निजता की मर्यादा का भी पूरा सम्मान किया है। उनकी बातों से लगता है कि उनका इरादा सिर्फ ये था कि शिक्षण संस्थान हों या काम करने वाली जगह, इस तरह की समस्याओं से निपटने की आवश्यकता पर उन्हें गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।
फिर भी जब उनकी आलोचना शुरू हुई तो उन्होंने साफ किया कि उनका मकसद तो छात्रों की आत्म शक्ति को बढ़ावा देना था। उन्होंने माना की सीए जैसी पेशेवर परीक्षाओं में कितना दबाव होता है और ऐसा ही दबाव आज के कामकाजी माहौल में भी रहता है। स्वाभाविक है कि इस तरह के माहौल की वजह से तनाव अवसाद का शक्ल अख्तियार कर लेता है।
सीतारमण ने क्या सुझाव दिए हैं? उनका सुझाव है कि शिक्षण संस्थानों में ध्यान केंद्र और समावेशी प्रार्थना स्थल हो। वह छात्रों के कल्याण के लिए समग्र-दृष्टिकोण अपनाने की बात कर रही हैं, जिसमें ऐसा माहौल उपलब्ध हो, जिससे बच्चों को शैक्षणिक सफलता भी मिले और उनके व्यक्तित्व का विकास भी सुनिश्चित हो सके।
जब निर्मला सीतारमण को लगा कि उनकी टिप्पणियों के अर्थ का अनर्थ किया जा रहा है तो उन्होंने इसकी संवेदनशीलता को समझते हुए तत्काल स्पष्टीकरण देकर चीजों को और साफ करने की कोशिश की। उनका पूरा जोर शैक्षणिक संस्थानों के वातावरण को और बेहतर बनाने पर है, जहां युवाओं को करियर की जरूरतों के हिसाब से हर तरह का दबाव झेलने की सहन शक्ति भी होनी चाहिए।
निर्मला सीतारमण की टिप्पणियों का गलत अर्थ निकाल लिया गया
वित्त मंत्री ने जो कुछ कहा उसका मकसद सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य और तनाव से निपटने के महत्त्व की ओर ध्यान खींचना था। उन्होंने न तो अन्ना सेबेस्टियन जैसे लोगों के संघर्ष को कमतर आंकने की कोशिश की है और न ही उनका इरादा किसी पर ‘दोषारोपण’ करना है। अगर उनकी टिप्पणियों का गलत अर्थ निकाला गया तो इसका मतलब ये होगा कि आज के युवाओं को जिस तरह का दबाव झेलना पड़ता है, उसके समाधान से मुंह मोड़ने की कोशिश करना।
अर्थ का अनर्थ करने से बेवजह का विवाद होगा
युवाओं पर आज के माहौल में जिस तरह का दबाव है, चाहे शिक्षण संस्थानों में हो या फिर कार्य स्थल पर यह समस्या बहुत बड़ी महामारी बनती जा रही है। निर्मला सीतारमण की बातों का गलत संदर्भ से जोड़ना इस सामाजिक समस्या से ध्यान भटकाने की तरह है। इस तरह के विवाद को बढ़ावा देने से पीड़ित परिवारों की चुनौतियां ही बढ़ेंगी, उनकी चिंताएं कतई कम नहीं हो सकती।
सीतारमण का जीवन भी संघर्ष भरा है, वह चीजों को करीब से समझती हैं
निर्मला सीतारमण बहुत ही सामान्य परिवार से आकर भी देश की सत्ता के केंद्र में जमी हैं। एक महिला होने के नाते भी वह युवाओं पर पड़ने वाले दबाव और उनके सामने आ रही चुनौतियों को बेहतर तरीके से समझती हैं। यह कह देना उचित नहीं होगा कि दबाव झेलने वाली किसी महिला के संघर्ष को वह कमतर करना चाहती हैं। वह सिर्फ यही कहना चाहती हैं कि तनाव से निपटने की व्यवस्था होनी चाहिए, न कि उन्होंने किसी के दर्द के प्रति असंवेदनशीलता दिखाई है।
सच्चाई से ध्यान भटकाने की कोशिश उचित नहीं
अन्ना सेबेस्टियन के साथ हुई दुखद त्रासदी इसी बात की ओर इशारा करती है कि कार्य स्थलों पर काम का जो भयानक वातावरण पैदा हो रहा है, उसके समाधान पर गंभीरतापूर्वक विचार करने का वक्त आ चुका है। सीतारमण की टिप्पणियों को बेवजह गलत मोड़ देने से ऐसे गंभीर मामलों से ध्यान ही भटकता है, जो कि किसी भी स्थिति में सही नहीं है।
सकारात्मक विचारों में नकारात्मकता शामिल करने से होगी दिक्कत
सीतारमण ने तनाव कम करने को लेकर जो सुझाव दिए हैं, वह सकारात्मक है। उनकी आलोचना में लग जाने से असल विषय से ध्यान हट सकता है, जो कि बहुत बड़ी सामाजिक समस्या बनकर उभरा है। युवा देश के भविष्य हैं और उन्हें अच्छा माहौल मिले, इसपर ध्यान देना सबके लिए बहुत जरूरी है।
कुल मिलाकर निर्मला सीतारमण ने जो भी टिप्पणी की थी, वह देश के प्रतिस्पर्धी व्यावसायिक माहौल में तनाव प्रबंधन और कार्य एवं जीवन के बीच संतुलन के बारे में आवश्यक चर्चा पर बल देने के लिए है। उनका नजरिया किसी को दोष देने के बजाय ऐसी परिस्थितियों की रोकथाम, ऐसी स्थिति पैदा होने पर सहयोग के वातावरण को बढ़ावा देने और व्यवस्थागत बदलाव पर केंद्रित है।