सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता रेप केस में पुलिस की लापरवाही को लेकर उसे जमकर फटकार लगाई. इसी तरह अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी हाल ही में महिलाओं के खिलाफ हुए यौन शोषण से जुड़े अपराधों से संबंधित जांच में बड़ी ‘कमियों’ पर नाराजगी जताई और अतिरिक्त मुख्य सचिव (Additional Chief Secretary) को हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि ऐसे गंभीर अपराधों में पुलिस जांच में ‘जांच के बुनियादी सिद्धांतों’ का अभाव क्यों दिखता है?
जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस डॉ. नीला गोखले की बेंच की ओर से यौन उत्पीड़न के एक कथित मामले में ‘खराब’ जांच पर गंभीर आपत्ति जताई गई, जिसमें पुणे ग्रामीण के यवत पुलिस स्टेशन से जुड़े जांच अधिकारी ने मामले में पीड़िता के कपड़े जब्त नहीं किए, जिसे आरोपी ने झगड़े के दौरान सड़क पर निर्वस्त्र कर फेंक दिया था. जजों ने 12 अगस्त को अपने आदेश में कहा, “चार्जशीट पढ़ने के बाद, हम न केवल स्तब्ध हैं, बल्कि काफी भयभीत भी हैं. मुखबिर और अन्य पीड़ित के आरोपों की पुष्टि करने के लिए मूल दस्तावेज, यानी पीड़ित के कपड़े या ड्रेस का पंचनामा, उक्त चार्जशीट से गायब हैं.”
जांच अधिकारी के बयान पर भड़के जज
जब जजों ने जांच में उक्त ‘गंभीर कमी’ के बारे में जांच अधिकारी अजिंक्य दौंडकर से पूछा, तो उन्होंने बेंच को बताया कि चूंकि पीड़ित को एक अन्य शिकायत (तत्काल मामले में आरोपी द्वारा दायर) में भी आरोपी के रूप में नामित किया गया था, इसलिए वह (पीड़िता) फरार थी और उक्त पंचनामा नहीं कराया जा सका. इसके अलावा, जांच अधिकारी ने बेंच को बताया कि चूंकि पीड़िता पहनने के लिए कपड़ों का दूसरा सेट नहीं लाई थी, इसलिए उसके ‘फटे’ कपड़ों को पंचनामा के लिए जब्त नहीं किया गया.
हालांकि, बेंच ने चार्जशीट से नोट किया कि जांच अधिकारी दौंडकर की दलीलें ‘स्पष्ट रूप से झूठी और रिकॉर्ड के उलट थीं.’ जज इस बात पर और भी नाराज हुए कि जांच अधिकारी ‘केस डायरी’ की कॉपी साथ नहीं लाए और उन्होंने बेंच से यह भी कहा कि उन्हें कोर्ट रूम में केस डायरी की कॉपी लाना जरूरी नहीं लगा. इस पर जजों ने कहा, “हम जांच अधिकारी दौंडकर की ओर से कोर्ट को दिए गए गोलमोल और झूठे जवाबों को सुनकर हैरान हैं. उनके जवाबों को सुनने के बाद हमारी अंतरात्मा हिल गई है.”
जांच अधिकारी का अपना ‘हित’
बेंच ने नाराजगी जताते हुए कहा कि जांच अधिकारी का यह आचरण उनके ‘Interest’ को दर्शाता है, जो अपराध में यौन उत्पीड़न की शिकार महिला के हितों की रक्षा करने की तुलना में आरोपी व्यक्ति के हितों की रक्षा करने के लिए ‘अधिक’ दिख रहा. जजों ने यह भी रेखांकित किया, “हम यहां यह नोट कर सकते हैं कि यह राज्य प्रशासन द्वारा आमतौर पर किए जाने वाले दावे के विपरीत है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों को राज्य द्वारा गंभीरता से लिया जा रहा है और उनकी तुरंत जांच की जा रही है. यह इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है कि कैसे कानून लागू करने वालों द्वारा सरकार के दावे को नाकाम किया जा रहा है.”
अपने आदेश में बेंच ने यह भी कहा कि महिलाओं के खिलाफ इसी तरह के अपराधों की जांच में ऐसी खामियां और कमियां उसे नियमित रूप से देखने को मिलती रही हैं. जजों ने कहा, “हमारे अनुसार, जांच में इस तरह की खामियों से अंततः आरोपी को फायदा होगा. हम अक्सर ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं, जिसमें जांच के मूल सिद्धांतों का पालन नहीं किया जाता है.” कोर्ट ने आगे कहा, “इसलिए हम इन तथ्यों को पुलिस विभाग की हाइरारकी में सर्वोच्च कार्यकारी यानी महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के संज्ञान में लाना उचित और अनिवार्य पाते हैं.”
झगड़े के बाद पीड़िता के फाड़े कपड़े
इसलिए बेंच ने अतिरिक्त मुख्य सचिव को 2 हफ्ते के भीतर अपना हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया. मामले की अगली सुनवाई अगले महीने 3 सितंबर को होगी. रवींद्र लागड़ की ओर से हाई कोर्ट में यह याचिका दाखिल की गई थी. याचिका के जरिए रवींद्र ने 30 अप्रैल, 2024 को उनके खिलाफ शील भंग करने, आपराधिक धमकी और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अन्य प्रासंगिक प्रावधानों के तहत दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच झगड़ा हो गया. इस बीच आरोपियों ने पीड़िता और उसकी मां को भद्दी गालियां दीं. यही नहीं उन लोगों ने पीड़िता के कपड़े तक फाड़ दिए.