लोकसभा चुनाव में हरियाणा की 10 में से पांच सीटें जीतकर कांग्रेस ने बीजेपी को तगड़ा झटका दिया था. इसके साथ ही दस साल के बाद कांग्रेस की सूबे की सत्ता में वापसी की उम्मीदें की जाने लगी थी, लेकिन नतीजे के बाद कांग्रेस में अंदरूनी कलह सार्वजनिक रूप से सामने आ गई है.
पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल की सियासी विरासत संभाल रही पूर्व मंत्री किरण चौधरी और उनकी बेटी पूर्व सांसद श्रुति चौधरी ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है.
रणदीप सुरजेवाला और कुमारी शैलजा किरण चौधरी के बहाने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को घेर रही हैं. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों के चयन को लेकर हुड्डा और सैलजा के गुट आमने-सामने हैं. कांग्रेस के अंदर मचा सियासी घमासान कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीदों पर कहीं ग्रहण न लगा दे?
अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस
हरियाणा में कांग्रेस 2014 के बाद से ही सत्ता से बाहर है. लोकसभा चुनाव के बाद अब विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसे लेकर शह-मात का खेल शुरू हो गया है. लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में जुटी है तो कांग्रेस अंतर्कलह से जूझ रही है. किरण चौधरी के पार्टी छोड़ने के बाद भी गुटबाजी खत्म होने का नाम नहीं रही है. सिरसा से सांसद चुनी गई कुमारी शैलजा ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है तो रणदीप सुरजेवाला भी अलग तेवर में नजर आ रहे हैं.
शैलजा-सुरजेवाला-किरण चौधरी की तिकड़ी भूपेंद्र हुड्डा के विरोधी के रूप में जानी जाती थी, लेकिन किरण के पार्टी छोड़ने के बाद लग रहा था कि एसआरके गुट खामोश हो जाएगा. सुरजेवाला ने किरण चौधरी के पार्टी छोड़ने पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का एक साथी भी पार्टी को छोड़कर जाता है तो उसका नुकसान और दुख होता है. एक कार्यकर्ता जाता है तो भी होता है, लेकिन अगर कोई नेता जाए तो ज्यादा नुकसान होता है. पार्टी के नेतृत्व को मंथन करना चाहिए कि क्या कारण है कि हमने अपने महत्वपूर्ण साथियों को खो दिया है. सुरजेवाला ने भले ही हुड्डा का नाम न लिया हो, लेकिन यह बात जगजाहिर है कि किरण चौधरी किसके चलते पार्टी छोड़कर गई हैं.
कुमारी शैलजा ने उठाए सवाल
कुमारी शैलजा ने भी किरण चौधरी का समर्थन किया था. उन्होंने कहा था कि किरण चौधरी के साथ जो भी हुआ वह बहुत गलत है. साथ ही उन्होंने कहा कि श्रुति चौधरी को भिवानी-महेंद्रगढ़ से टिकट मिलना चाहिए था. कुमारी सैलजा ने करनाल, गुरुग्राम, भिवानी-महेंद्रगढ़ और सोनीपत की टिकटों पर सवाल उठाए थे. सैलजा ने कहा था कि हरियाणा में यदि कांग्रेस में टिकटों का आवंटन सही ढंग से होता तो कांग्रेस सभी लोकसभा सीटें जीत सकती थी. सैलजा का इशारा भूपेंद्र सिंह हुड्डा की तरफ था, जिसमें बाद हुड्डा ने जवाब दिया था कि टिकटों का वितरण उन्होंने नहीं, बल्कि कांग्रेस हाईकमान ने किया है. सैलजा को कांग्रेस हाईकमान के फैसले पर यदि कोई ऐतराज है तो उन्हें वहां जाकर बताना चाहिए.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की शैलजाको नसीहत
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही नहीं बल्कि उनके करीबी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान ने कुमारी शैलजा को नसीहत दी है. उदयभान ने कहा कि सैलजा के ऐसे बयान से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है. उन्होंने कहा कि सैलजा कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सदस्य हैं. वे कांग्रेस की बैठकों में मौजूद थीं. ऐसे में सैलजा को लगता है कि कांग्रेस के उम्मीदवार कमजोर थे तो इसके लिए वे खुद ही दोषी है. कांग्रेस नेतृत्व के फैसलों पर टीका टिप्पणी करना किसी भी नेता के लिए उचित नहीं है. सैलजा पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं और विभिन्न प्रदेशों का प्रभार भी उनके पास रहा है. कांग्रेस पार्टी का कोई बड़ा नेता ऐसे बयान देता है तो पार्टी के निचले कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जाता है.
आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति तेज
हरियाणा के लोकसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति तेज हो गई है. किरण चौधरी के जाने को लेकर सुलैजा और सुरजेवाला पार्टी का नुकसान बता रहे हैं तो गुड्डा गुट के नेताओं का मानना है कि अगर घर में कोई विश्वासघाती हो जाए तो उसका चले जाना ही ठीक होता है. अजय माकन ने तो अपनी हार के लिए सीधे तौर पर किरण चौधरी को जिम्मेदार ठहराया था. लोकसभा चुनाव के बाद से जिस तरह कांग्रेस के अंदर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है, उसके चलते माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पर प्रभाव पड़ सकता है.
भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर कांग्रेस की हार
भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट पर कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह पार्टी की गुटबाजी रही है. किरण चौधरी के चलते यह सीट कांग्रेस हार गई है, क्योंकि वो अपनी बेटी को इस सीट से चुनाव लड़ाना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने हुड्डा के करीबी नेता को प्रत्याशी बना दिया था. हरियाणा में कांग्रेस के अंदर कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला एक साथ हैं तो दूसरी ओर हुड्डा गुट है.
भूपेंद्र सिंह और कुमारी शैलजा की सियासी रिश्ते जगजाहिर हैं. इसी तरह रणदीप सुरेजवाला को भी हुड्डा विरोधी गुट का माना जाता है. कांग्रेस में इसी तरह से अंतर्कलह रही तो सूबे की सत्ता में वापसी की उम्मीदों पर ग्रहण लग सकता है, क्योंकि एक दूसरे के गुट के नेता एक दूसरे को जिताने के बजाय हराते हुए नजर आएंगे. ऐसे में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीद पर पानी फिर सकता है?