महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे और शरद पवार काफी दिनों से एक ही नाव पर सवार हैं. बीजेपी की मदद से एकनाथ शिंदे नाम के तूफान ने तो वो नाव ही डुबाने का इंतजाम कर लिया था, लेकिन दोनों मिलकर धीरे धीरे ऐसे मंसूबों को नाकाम करने में कामयाब होने लगे हैं.
पहले सत्ता, और फिर दोनों नेता अपनी पार्टियों से भी हाथ धो बैठे. न नाम साथ रहा न चुनाव निशान. एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने बीजेपी के साथ हाथ मिला कर उद्धव ठाकरे और शरद पवार भंवर में बुरी तरह फंसा दिया और महाराष्ट्र की सत्ता के साथ साथ पार्टियों पर भी काबिज हो गये.
लेकिन ‘जाको राखे…’ – और लोकतंत्र में तो जनता ही भगवान है. जब तक जनता न चाहे, कोई किसी का क्या बिगाड़ सकता है. जैसे चिराग पासवान के लिए बीजेपी भगवान बनी, महाराष्ट्र के लोग वैसे ही उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ खड़े हो गये.
लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने मिलकर बीजेपी का वही हाल किया है, जो उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने राहुल गांधी के साथ मिल कर किया है. तभी तो महाराष्ट्र और यूपी दोनों जगह सत्ता में होने के बाद भी बीजेपी को बुरी तरह शिकस्त मिली है.
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार की अपनी अपनी सीटें तो बीजेपी के बराबर ही हैं, लेकिन कांग्रेस इस मामले में काफी आगे निकल चुकी है – और यही वजह है कि महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले अलग पैंतरेबाजी पर उतर आये हैं.
शरद पवार और उद्धव तो पूरी तरह साथ हैं, लेकिन…
शरद पवार का दावा है कि महाराष्ट्र की राजनीति में माहौल बदल चुका है, और आने वाले विधानसभा चुनाव में भी वहां ‘खेला’ होने वाला है. बारामती के निंबुत गांव में किसानों के साथ एक मुलाकात में शरद पवार ने कहा, ‘लोकसभा चुनाव में हमने केवल 10 सीटों पर चुनाव लड़ा… 10 में से आठ उम्मीदवारों को चुनकर जनता ने पूरे देश को संदेश दिया है कि राज्य का माहौल बदल रहा है… जो लोग सत्ता में थे, उन्होंने 31 सीटें खो दी… और महा विकास आघाड़ी को इतनी ही सीटों पर जीत मिली.’
शरद पवार का कहना है, वोटर ने अपनी जिम्मेदारी निभा दी है… अब ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी ताकत का इस्तेमाल कृषि संबंधी और पानी की कमी जैसे ज्वलंत मुद्दों को उजागर करने के लिए करें.’
मतलब, बीजेपी को घेरने का एक्शन प्लान भी तैयार है. ये भी देखने में आया है कि तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी सबसे पहले किसानों से ही मुखातिब हुए हैं. किसान सम्मान निधि बांटने के साथ ही बनारस जाकर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ किसान सम्मेलन करके मोदी ने भी बीजेपी के आगे के प्लान की तरफ इशारा तो कर ही दिया है.
एमवीए की एक प्रेस कांफ्रेंस में उद्धव ठाकरे और शरद पवार एक दूसरे के प्रति जो हाव भाव दिखा रहे थे, उसमें कांग्रेस नेता नाना पटोले की गैरमौजूदगी सभी का ध्यान खींच रही थी. कहने को तो पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण मौजूद थे, लेकिन नाना पटोले का न होना कांग्रेस के इरादे पर संदेह पैदा कर रहा था.
उद्धव ठाकरे को फिलहाल शरद पवार का सपोर्ट किस हद तक हासिल है, ये एक सवाल के जवाब से आसानी से समझ आ गया. सवाल हुआ कि विधानसभा चुनाव में एमवीए ती तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा?
जवाब तो शरद पवार भी दे सकते थे, लेकिन उद्धव ठाकरे ने पलट कर सवाल किया, महायुति में कौन मुख्यमंत्री का चेहरा है?
सवाल को टालकर उद्धव ठाकरे ने शरद पवार का काम आसान कर दिया था, और जो कुछ कहा था उसमें एनसीपी नेता की पूरी मौन सहमति नजर आई.
उद्धव ठाकरे का ये जवाब इसलिए भी प्रासंगिक बन पड़ा क्योंकि देवेंद्र फडणवीस ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के लिए इस्तीफे की पेशकश की थी. अपडेट ये है कि दिल्ली में अमित शाह और जेपी नड्डा की मौजूदगी में हुई बीजेपी की मीटिंग में देवेंद्र फडणवीस की पेशकश को खारिज कर दिया गया. कहने का मतलब कि देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बने रहेंगे, और कमान एकनाथ शिंदे के हाथ में ही रहेगी. लगता तो ये है कि देवेंद्र फडणवीस निकलने का मौका तलाश रहे थे, लेकिन आलाकमान ने फिर से जबरन कुर्सी पर बैठा दिया.
नाना पटोले की नाराजगी रणनीति का हिस्सा तो नहीं है
अव्वल तो नाना पटोले अलग ही विवाद की वजह से चर्चा में हैं, लेकिन गठबंधन में उनकी नाराजगी महसूस की जाने लगी है. विवाद की वजह एक वायरल वीडियो है जिसमें नाना पटोले को एक कार्यकर्ता से पैर धुलवाते देखा गया है. नाना पटोले ने अपनी तरफ से सफाई दी है, लेकिन बीजेपी ने हमला बोल दिया है. असल में नाना पटोले बड़े आराम से पैर धुलवा रहे हैं, और मना करने की कोशिश भी नहीं लग रही है.
बहरहाल, नाना पटोले की नाराजगी की वजह महाराष्ट्र में विधान परिषद का चुनाव लगता है. हुआ ये है कि एमवीए में मोलभाव करके उद्धव ठाकरे ने चार में से तीन सीटें अपने खाते में हासिल कर ली है – और कांग्रेस के हिस्से में महज एक सीट आई है.
एमवीए की प्रेस कांफ्रेंस में नाना पटोले की गैरमौजूदगी की वजह उनका किसी दौरे पर होना बताया गया है. मगर माना जा रहा है कि नाना पटोले ने जानबूझ कर प्रेस कांफ्रेंस से दूरी बना ली, ताकि उद्धव ठाकरे और शरद पवार को कड़ा संदेश दिया जा सके. वो पहले भी कुछ मौकों पर ऐसा कर चुके हैं. कहा जा रहा है कि नाना पटोले गठबंधन में उद्धव ठाकरे को जरूरत से ज्यादा तवज्जो देने से नाराज हैं.
नाना पटोले की नाराजगी तो बनती है. क्योंकि लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे को 9 और शरद पवार को 8 सीटें ही मिली हैं, जबकि कांग्रेस ने 13 लोकसभा सीटें जीती है. और एमएलसी चुनाव में उद्धव ठाकरे अपने लिए तीन सीटें झटक लेते हैं.
सवाल ये है कि क्या नाना पटोले इतनी हैसियत रखते हैं कि कांग्रेस को गठबंधन से अलग कर लें? बीजेपी से कांग्रेस में आने वाले नाना पटोले की सबसे बड़ी ताकत राहुल गांधी का करीबी होना है. और जब महाराष्ट्र में एमवीए की सरकार थी, तभी नाना पटोले राज्य में अकेले दम पर कांग्रेस की सरकार बना लेने के दावे कर रहे थे – और 2024 का लोकसभा चुनाव भी अकेले लड़ना चाहते थे.
लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बाद तो विधानसभा चुनाव में मनमानी का उनका हक भी बनता है – ऐसे में अगर उनको खुल कर खेलने का मौका नहीं मिला तो खेल बिगाड़ भी सकते हैं.