NDA Government: भारतीय जनता पार्टी के मुख्यालय में जीत का जश्न थोड़ा फीका था| भाजपा दफ्तर पहुंचे दिल्ली के भाजपा कार्यकर्ताओं के चेहरों पर वैसी खुशी नहीं थी, जैसी सातों सीटें जीतने के बाद होनी चाहिए थी| भाजपा ने दिल्ली तो जीत ली, लेकिन देश हारते हारते बची|
दस साल तक अपने बहुमत के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी एक मजबूर प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं| नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भी वह चमक नहीं थी, जो हर जीत के बाद भाजपा दफ्तर पहुंचने पर दिखती थी| लेकिन नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में सिर्फ अपने कार्यकर्ताओं और देश को ही स्पष्ट संदेश नहीं दिया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय ताकतों को भी सख्त संदेश दिया|
जहां देश के सामने मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया, वहीं अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी संदेश दिया कि दुनिया में भारत की आर्थिक, कूटनीतिक और सामरिक स्थिति को मजबूत करने की उनकी मुहिम में किसी रुकावट को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा| “बिटविन द लाइन्स” उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय ताकतों ने भारत की बढ़ती ताकत के प्रभाव को रोकने के लिए उन्हें हराने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, लेकिन वे अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सके, और अब भारत को विकसित बनाने के रास्ते में उनकी बाधाओं का भारत डट कर मुकाबला करने को तैयार है|
नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग जारी रखने का संदेश देकर यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी सरकार कितनी भी मजबूर हो, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगी, अरविन्द केजरीवाल, अखिलेश यादव और ममता बनर्जी को यह साफ़ संदेश है| यह संयोग है कि मोदी की सरकार जिन बैसाखियों के सहारे चलेगी, वे दोनों ही बैसाखियाँ अनुभवी राजनीतिज्ञों की हैं|
नीतीश कुमार बिहार के सबसे लंबे कार्यकाल के मुख्यमंत्री हैं, और चंद्रबाबू नायडू चौथी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं| दस साल भाजपा का स्पष्ट बहुमत होने के कारण नरेंद्र मोदी को कोई पूछने वाला नहीं था, कोई टोकने वाला नहीं था, लेकिन अब कोई भी क़ानून, कोई भी नीति, कोई भी योजना चंद्रबाबू नायडू और नीतीश की सहमति के बिना नहीं चल सकती| संयोग से दोनों ही राजनीतिज्ञ बेदाग़ हैं, पन्द्रह बीस साल प्रशासन के मुखिया की भूमिका निभाने के बावजूद भ्रष्टाचार का कोई आरोप उन दोनों पर नहीं लगा कि जो उन पर चिपक सकता| जग्गन मोहन रेड्डी ने स्किल डिवेलपमेंट घोटाले में चन्द्र बाबू नायडू को गिरफ्तार जरुर किया था, वह छह महीने जेल में भी रहे, लेकिन आरोप उन पर चिपका नहीं| लेकिन दोनों ही पल्टू राम के तौर पर मशहूर हैं|
चंद्रबाबू नायडू 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए छोड़कर कांग्रेस के साथ चले गए थे| नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के आने के बाद दो बार पलटी मारी है| पहले वह नरेंद्र मोदी को पीएम प्रोजेक्ट किए जाने के खिलाफ 2013 में एनडीए छोड़ गए थे, 2017 में एनडीए में लौटे तो 2019 का लोकसभा और 2020 का विधानसभा चुनाव साथ लड़ने के बाद 2022 में एनडीए छोड़ गए थे| नीतीश कुमार जून 2023 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ इंडी एलायंस के आर्किटेक्ट थे| 23 जून इंडी एलायंस की पहली बैठक के आयोजक भी वही थे| तब माना जा रहा था कि विपक्षी एकता करवाने में कामयाब रहे नीतीश कुमार को इंडी एलायंस का कन्वीनर बनाया जाएगा और बाद में उन्हें ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाएगा| उन्हें कन्वीनर बनाए जाने या प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने में कांग्रेस बड़ी बाधा बन गई थी, तो वह लौट कर एनडीए में आ गए| क्योंकि दोनों पल्टू राम रहे हैं, इसलिए इन दोनों पर सवाल उठ रहे हैं कि वे किसकी सरकार बनवाएंगे| चुनाव नतीजों के बाद ही खबर आई कि शरद पवार ने दोनों से संपर्क साधा है, हालांकि बाद में शरद पवार ने खंडन किया| लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव है| जो भी सरकार बने वह नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की कठपुतली होगी, क्योंकि अठारहवीं लोकसभा का सत्ता संतुलन इन दोनों के पास है| सवाल यह है कि अगर वे दोनों मोदी की सरकार बनवाएंगे, तो क्या उन्हें पांच साल प्रधानमंत्री बने रहने देंगे| अगर वे इंडी एलायंस की सरकार बनवाएंगे, तो क्या इंडी एलायंस की सरकार स्थिर रह सकती है| सरकार कोई भी बने, इन दोनों नेताओं पर निर्भर रहेगी| 1989 से लेकर 2014 तक रही अस्थिरता की राजनीति लौट आई है| कहने को वाजपेयी ने अपनी दूसरी टर्म और मनमोहन सिंह ने अपनी दोनों टर्म पूरी की, लेकिन दोनों मजबूरी की सरकारें थीं, और दोनों को कई समझौते करने पड़े थे| 2024 के चुनाव नतीजों के बाद उसी युग की वापसी हो गई है| 1998 में भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के बावजूद तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जे जयललिता ने अटल बिहारी वाजपेयी को समर्थन की चिठ्ठी नहीं दी थी| 16 फरवरी को चुनाव नतीजे आए थे, और एक महीने तक वाजपेयी अपने ही सहयोगी दल से समर्थन की चिठ्ठी हासिल नहीं कर पाए थे| 15 मार्च 1998 की सुबह अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रपति के. आर. नारायण को कहने जा रहे थे कि उनके पास सिर्फ 237 सांसदों का समर्थन है, वह सरकार बनाने का न्योता देना चाहते हैं, तो दें, नहीं देना चाहते, तो न दें| तभी जयललिता ने अन्नाद्रमुक और अपनी सहयोगी पार्टियों के 27 सांसदों के समर्थन की चिठ्ठियाँ भिजवा दीं| तब भी 543 के सदन में वाजपेयी को 264 सांसदों का समर्थन हासिल हुआ था| चंद्रबाबू नायडू तब भी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और 1996 से 1998 तक कांग्रेस के समर्थन से चली संयुक्त मोर्चा सरकार के संयोजक थे, उनकी तेलुगु देशम पार्टी लोकसभा की 12 सीटें जीती थी| उन्होंने वाजपेयी को समर्थन नहीं दिया था| राष्ट्रपति के. आर. नारायण ने खुद उन्हें फोन करके पूछा, तो उन्होंने कहा था कि सदन में वाजपेयी विश्वास मत पेश करेंगे, तो वह तटस्थ रहेंगे| उनके इस वायदे के बाद राष्ट्रपति आश्वस्त हुए थे कि वाजपेयी बहुमत साबित करने की स्थिति में हैं, तब उन्होंने 15 मार्च की रात को वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया था| जब सरकार का गठन हो गया तो सरकार पर अपना नियन्त्रण रखने के लिए चंद्रबाबू नायडू ने अपनी पार्टी के पहली बार सांसद चुने गए जीएमसी बालयोगी को लोकसभा का स्पीकर बनवाया था| भले ही चन्द्रबाबू ने एनडीए के साथ रहने का वायदा किया है, लेकिन स्थिति 1998 जैसी ही है, चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के किसी सांसद को न सिर्फ स्पीकर पद देना पड सकता है, बल्कि एनडीए के कन्वीनर का पद भी सौंपना पड़ सकता है, जिस पर इस समय अमित शाह विराजमान हैं| मोदी ने स्थिति को भांपते हुए आंध्र प्रदेश के प्रभारी सिद्धार्थ नाथ सिंह के माध्यम से चंद्रबाबू नायडू को एनडीए का संयोजक बनने का ऑफर भेज दिया है| 2019 में जब नीतीश कुमार ने एनडीए में रहते हुए चुनाव लड़ा और उनकी पार्टी जेडीयू को लोकसभा में 16 सीटें मिलीं थीं, तब उन्होंने केबिनेट के दो पद मांगे थे, लेकिन जब अमित शाह इसके लिए तैयार नहीं हुए, तो वह नाराज हो गए थे, उन्होंने मंत्री पद के लिए कोई भी नाम नहीं दिया था| नरेंद्र मोदी ने बाद में उन्हीं की पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य आरपी सिंह को केन्द्रीय मंत्री की शपथ दिला दी, जिस पर नीतीश कुमार इतने खफा हुए कि पहले उन्होंने उनसे अध्यक्ष पद से इस्तीफा लिया और बाद में राज्यसभा पर दुबारा नामांकित करने से इंकार करके उनकी राज्यसभा सदस्यता भी छीन ली थी|
तो सवाल यह कि अब चाबी नीतीश कुमार के हाथ में है, क्या वह अमित शाह से उनके 2019 के व्यवहार का बदला ले सकते हैं| क्या वह शर्त रख सकते हैं कि वह अमित शाह रहित सरकार का समर्थन करेंगे| अगर वह ऐसी शर्त रखते हैं तो यह मजबूरी की सरकार की शुरुआत भर होगी| अमित शाह को दुबारा पार्टी में भेज कर जेपी नड्डा को राज्यसभा में सदन का नेता और मंत्री बनाया जा सकता है| लेकिन सवाल यह है क्या संघ अमित शाह के नाम पर सहमत होगा|
नीतीश कुमार अगर ऐसी शर्त नहीं रखते है, और खुद को उप प्रधानमंत्री बनाने की शर्त रखते हैं, तो मोदी को उनकी यह शर्त भी माननी होगी| चार जून के नतीजों से पहले तो नीतीश कुमार सिर्फ यह चाहते थे कि विधानसभा को भंग करके उन्हीं की रहनुमाई में महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभाओं के साथ बिहार विधानसभा के चुनाव करवाए जाएं| बदली परिस्थितियों में शर्तें भी बदल सकती हैं|