देश में ‘पुरानी पेंशन’ पर कोई ठोस निर्णय नहीं लेना, भाजपा को भारी पड़ गया। जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव में 10 करोड़ सरकारी कर्मियों की नाराजगी, भाजपा को तगड़ा झटका दे गई।
दूसरी तरफ पुरानी पेंशन पर सॉफ्ट कॉर्नर पॉलिसी रखने वाले इंडिया गठबंधन को सरकारी कर्मियों का समर्थन मिल गया। खासतौर से उत्तर प्रदेश, जिसके नतीजों पर एनडीए और इंडिया गठबंधन की नजरें लगी थी, वहां सरकारी कर्मियों ने भाजपा के हाथ निराशा तो इंडिया गठबंधन को बूस्टर दे दिया। इसके अलावा, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कई दूसरे राज्यों में भी पुरानी पेंशन का मुद्दा अहम रहा है। भले ही केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने सरकार को ओपीएस पर अंतिम निर्णय के लिए वक्त दे दिया था, लेकिन इसके बावजूद कर्मचारियों में नाराजगी रही। जब केंद्र की तरफ से बार-बार यह कहा गया कि पुरानी पेंशन नहीं मिलेगी। एनपीएस में सुधार के लिए कमेटी गठित की गई है। यह बात कर्मियों को अखर गई।
‘ये मुद्दा हमारे दिमाग में है, पीछे नहीं हट रहे’
पुरानी पेंशन बहाली के लिए गठित, नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) के संयोजक शिव गोपाल मिश्रा ने लोकसभा चुनाव से पहले कहा था कि जो भी दल ‘पुरानी पेंशन बहाली’ के मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल करेगा, उसे कर्मचारी एवं उनसे जुड़े 10 करोड़ वोट मिलेंगे। कांग्रेस पार्टी ने ओपीएस को अपने घोषणा पत्र में प्रत्यक्ष तौर पर शामिल नहीं किया था, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने घोषणा पत्र जारी करते समय कहा था, ये मुद्दा हमारे दिमाग में है। हम इससे पीछे नहीं हट रहे हैं। इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट आने का इंतजार कर रहे हैं। दूसरा, राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान इस मुद्दे पर सॉफ्ट कॉर्नर जारी रखा। उन्होंने ओपीएस के लिए मना नहीं किया। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के अध्यक्ष विजय बंधु ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात कर उनसे अपील की थी कि वे पुरानी पेंशन बहाली एवं निजीकरण की समाप्ति के विषय को पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करें। इसके बाद विजय बंधु ने अपने संगठन की मदद से ओपीएस के मुद्दे पर जमकर आवाज बुलंद की।
एनपीएस की विदाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं
बता दें कि बंधु ने बुढ़ापे की लाठी ‘पुरानी पेंशन’ की बहाली व निजीकरण की समाप्ति के लिए गत वर्ष लगातार 33 दिन तक 18000 किलोमीटर की ऐतिहासिक यात्रा की थी। बंधु के मुताबिक, ओपीएस पर निकाली गई वह यात्रा, लोगों के स्नेह, सर्मपण व संगठन की ताकत का अद्भुत संगम था। लोकसभा चुनाव में भी वे सोशल मीडिया पर ओपीएस का मुद्दा लगातार उठाते रहे। उन्होंने ट्वीटर पर लिखा, आपकी लोकसभा में कौन जीत रहा है ओपीएस या एनपीएस। उन्होंने 24 मई को लिखा, ‘उत्तर प्रदेश के 52 लोकसभा क्षेत्रों के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि एनपीएस हार रही है, ओपीएस जीत रही है। जब तक एनपीएस की विदाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। रैलियों पर करोड़ों रुपया खर्च करने का पैसा है, रोड शो में कई कुंतल फूलों के लिए पैसा है, चुनाव के समय कई प्लेन लगातार उड़ रहे हैं, उसके लिए पैसा है। बस अर्धसैनिक बलों में पुरानी पेंशन देने के लिए पैसा नहीं है। सेना में स्थाई सैनिक भर्ती के लिए पैसा नहीं है। खाली पदों को भरने के लिए पैसा नहीं है।’
सरकार को दिया था राष्ट्रव्यापी हड़ताल का नोटिस
स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) के सदस्य और अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार ने बताया, चुनाव में ओपीएस का मुद्दा रहा है। इस मुद्दे ने अंदरखाते बड़ा काम किया है। कर्मचारी संगठन ने कांग्रेस पार्टी और इंडिया गठबंधन को मांगों की सूची सौंपी थी। उसमें आयुद्ध कारखानों को दोबारा से पहले वाली स्थिति में लाना, एनपीएस की समाप्ति व ओपीएस की बहाली, आठवें वेतन आयोग के गठन की गारंटी और 18 माह के डीए का एरियर देना, आदि मांगें शामिल थीं। बता दें कि पुरानी पेंशन बहाली के लिए गठित, नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) की संचालन समिति ने पहले अनिश्चितकालीन स्ट्राइक की घोषणा की थी। 19 मार्च को कर्मचारी संगठनों द्वारा केंद्र सरकार को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का नोटिस दिया जाना था। इसके बाद एक मई से हड़ताल पर जाने की घोषणा की गई थी। बाद में सरकार की तरफ से कहा गया कि अभी कमेटी की रिपोर्ट नहीं आई है। इसके लिए सरकार को कुछ समय चाहिए। इसके चलते कर्मियों ने अपनी हड़ताल वापस ले ली। एआईडीईएफ महासचिव सी. श्रीकुमार ने कहा, ‘पुरानी पेंशन’ बहाल न करना, भाजपा के लिए सियासी जोखिम का सबब बन सकता है, ये पहले ही बता दिया गया था। केंद्र सरकार से कहा गया था कि लोकसभा चुनाव से पहले पुरानी पेंशन लागू नहीं होती है तो भाजपा को उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। वजह, सरकारी कर्मियों, पेंशनरों और उनके रिश्तेदारों को मिलाकर यह संख्या दस करोड़ के पार चली जाती है। चुनाव में बड़ा उलटफेर करने के लिए यह संख्या निर्णायक साबित हो सकती है।
डस्टबिन है एनपीएस, मंजूर नहीं संशोधन
नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुमार बंधु का कहना था, केंद्र सरकार एनपीएस में संशोधन करने जा रही है। हम ऐसे किसी भी संशोधन के लिए आंदोलन नहीं कर रहे हैं। कर्मियों को गारंटीकृत पुरानी पेंशन ही चाहिए। अगर कोई भी कर्मचारी नेता या संगठन, सरकार के एनपीएस में संशोधन प्रस्ताव पर सहमत होते हैं तो ‘2004’ वाली गलतियां, ‘2024’ में भी दोहराई जाएंगी। एनपीएस एक डस्टबीन है। करोड़ों कर्मियों का दस प्रतिशत पैसा और सरकार का 14 प्रतिशत पैसा, डस्टबीन में जा रहा है। यह स्वीकार्य नहीं है। पुरानी पेंशन बहाली तक, कर्मियों का आंदोलन जारी रहेगा। वित्त मंत्रालय की कमेटी की रिपोर्ट का कोई मतलब नहीं है। यह रिपोर्ट पेश हो या न हो। इससे कर्मियों को कोई मतलब नहीं है। वजह, यह कमेटी ओपीएस लागू करने के लिए नहीं, बल्कि एनपीएस में सुधार के लिए गठित की गई थी।
एनपीएस में सुधार करने के लिए कमेटी गठित
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में पुरानी पेंशन के मुद्दे पर एक कमेटी गठित करने की घोषणा की थी। वित्त मंत्रालय ने गत वर्ष छह अप्रैल को वित्त सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया था। इस कमेटी में कार्मिक, लोक शिकायत व पेंशन मंत्रालय के सचिव, व्यय विभाग के विशेष सचिव और पेंशन फंड नियमन व विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के अध्यक्ष को बतौर सदस्य, शामिल किया गया। कमेटी से कहा गया है कि वह नई पेंशन स्कीम ‘एनपीएस’ के मौजूदा फ्रेमवर्क और ढांचे के संदर्भ में बदलावों की सिफारिश करे। किस तरह से नई पेंशन स्कीम के तहत ‘पेंशन लाभ’ को और ज्यादा आकर्षक बनाया जाए, इस बाबत सुझाव दें। कार्यालय ज्ञापन में कमेटी से यह भी कहा गया कि वह इस बात का ख्याल रखें कि उसके सुझावों का आम जनता के हितों व बजटीय अनुशासन पर कोई विपरीत असर न हो। खास बात ये रही कि दो पन्नों के कार्यालय ज्ञापन में कहीं पर भी ‘ओपीएस’ नहीं लिखा था। उसमें केवल एनपीएस का जिक्र था। जानकारों का कहना है कि अभी कमेटी की रिपोर्ट नहीं आई। कर्मचारी संगठनों से सुझाव मांगे गए हैं।