राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) प्रमुख और हाजीपुर लोकसभा सीट से सांसद पशुपति पारस की एनडीए से नाराजगी दूर हो गई है। उन्होंने पीएम मोदी के साथ फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करके खुद को एनडीए परिवार का अंग बताया है।
पिछले दिनों बिहार में सीट बंटवारे के दौरान पशुपति पारस की आरएलजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी, जिससे नाराज होकर उन्होंने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। पारस के भतीजे और एलजेपी रामविलास के प्रमुख चिराग पासवान को एनडीए में पांच सीटें दी गईं, जिससे वह और अधिक आहत हो गए। अटकलें लगाई जाने लगीं कि पशुपति पारस विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा हो सकते हैं। हालांकि, शनिवार को इन अटकलों पर पशुपति पारस ने विराम लगा दिया। पारस के एनडीए का हिस्सा रहने को राजनैतिक जानकार बीजेपी और एनडीए के लिए बड़ी राहत और फायदे की तरह देख रहे हैं।
चाचा-भतीजे के बीच नहीं बंटेंगे वोट
पशुपति कुमार पारस यदि इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनते या फिर उनकी पार्टी अकेले भी चुनावी मैदानी में उतरती तो बिहार की कई सीटों पर वोटों के बंटने का खतरा मंडराने लगता। इससे चिराग की एलजेपी-रामविलास और पारस की आरएलजेपी के बीच वोट बंट सकते थे। इससे एनडीए को अच्छा-खासा नुकसान होता, लेकिन अब पारस के एनडीए का हिस्सा बने रहने के चलते गठबंधन को फायदा मिलने की उम्मीद है। लोकसभा चुनावों में बीजेपी 370 और एनडीए 400 प्लस सीटों का टारगेट लेकर चल रही है। खुद पीएम मोदी बार-बार मंचों से लक्ष्य को हासिल करने की बात कहते आए हैं। इतना बड़े टारगेट को पूरा करने के लिए देशभर की एक-एक सीट पर बेहतर तरीके से चुनाव लड़ना और उन्हें जीतना जरूरी है। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं और पिछले चुनाव में एनडीए को 39 सीटों पर अभूतपूर्व जीत मिली थी। ऐसे में तय लक्ष्य को पूरा करने के लिए इस चुनाव में अपने पुराने प्रदर्शन को दोहराना एनडीए के लिए जरूरी हो गया है।
नीतीश, मांझी, चिराग… बिहार में बीजेपी काफी मजबूत
नीतीश कुमार की जेडीयू के वापस एनडीए का हिस्सा बनने से बिहार में बीजेपी काफी मजबूत हुई है। पिछले साल तक महागठबंधन का हिस्सा रहे नीतीश कुमार की ही अगुवाई में राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन बनाया गया, जिसके बाद चुनाव में करीबी मुकाबला होने की उम्मीद बन रही थी। लेकिन अचानक नीतीश ने महागठबंधन का साथ छोड़ते हुए एनडीए ज्वाइन कर लिया। राजनैतिक जानकारों की मानें तो कुछ महीने पहले तक जहां महाराष्ट्र के अलावा बिहार बीजेपी के लिए मुश्किल माना जा रहा था, वहीं अब बाजी पलट गई है। नीतीश के साथ आने से बीजेपी काफी मजबूत हुई है। इसके अलावा, चिराग पासवान की लोजपा-रामविलास, जीतनराम मांझी की ‘हम’ जैसे दल एनडीए का हिस्सा पहले से ही हैं। पशुपति पारस के चलते भी एनडीए को और मजबूती मिलेगी।
बिहार एनडीए में कौन कितनी सीटों पर लड़ रहा चुनाव?
एनडीए ने बिहार के लिए 18 मार्च को आधिकारिक रूप से सीटों के बंटवारे का ऐलान किया। इसमें बीजेपी 17, जेडीयू 16, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) पांच सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसके अलावा, जीतनराम मांझी के हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (HAM) और उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) को एक-एक सीट दी गई है। एनडीए में सीट नहीं मिलने की वजह से पशुपति पारस नाराज हो गए थे और मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। अब शनिवार को उन्होंने खुद को एनडीए का हिस्सा बताते हुए ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ”हमारी पार्टी रालोजपा, एनडीए का अभिन्न अंग है। माननीय प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी हमारे भी नेता है और उनका निर्णय हमारे लिए सर्वोपरि है एवं उनके नेतृत्व में एनडीए पूरे देश में 400+ सीट जीतकर तीसरी बार रिकॉर्ड तोड़ बहुमत से एनडीए की सरकार बनेगी। साथ ही बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त करने में हमारी पार्टी का पूर्ण समर्थन है और रहेगा।”
इस्तीफा देने के बाद भी एनडीए से दूर क्यों नहीं गए पारस?
बड़ा सवाल उठता है कि मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देने वाले पशुपति पारस को जब एनडीए में एक भी सीट नहीं मिली, तब भी वे उसी गठबंधन का हिस्सा क्यों हैं? जानकारों की मानें तो बिहार में नीतीश कुमार के एनडीए में वापस आने के बाद बीजेपी को उम्मीद है कि वह पिछला प्रदर्शन बरकरार रख पाएगी। पिछले दो लोकसभा चुनावों में बिहार में एनडीए का पलड़ा काफी भारी रहा है। मोदी लहर के सामने अच्छे-अच्छे सूरमा धाराशायी हो गए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में आरजेडी जैसे दल को एक भी सीट नहीं मिली, जबकि कांग्रेस सिर्फ एक किशनगंज सीट ही जीत सकी। इसी वजह से जानकारों का मानना है कि यदि पशुपति पारस अकेले या फिर विपक्षी गठबंधन के साथ मैदान में उतरते तो भी बड़ी सफलता मिलने की संभावना बहुत ज्यादा नहीं थी। रामविलास पासवान का बेटा होने की वजह से जनता का भी ज्यादा झुकाव चिराग पासवान की ओर जा सकता था, जिससे पशुपति पारस को नुकसान होता। लेकिन एनडीए का हिस्सा बने रहने में पारस को भविष्य में फायदा जरूर मिल सकता है। सूत्रों की मानें तो पशुपति पारस की पार्टी को अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान उचित सीटें मिल सकती हैं।