सहयोगी दल और नेता भले ही साथ छोड़ें दें, लेकिन मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस लोकसभा चुनाव को लेकर उत्साह में हैं। 82 साल के कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरग़े कहते हैं कि भाजपा का झूठ और भ्रामक प्रचार जनता के बीच में ले जाकर हम 2024 की लड़ाई जरूर जीतेंगे।
खरगे के मुताबिक हर बार भाजपा जनता की आंखों में धूल झोंककर सफल नहीं हो सकती। इसी भरोसे पर कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार के 10 साल के कामकाज पर ब्लैक पेपर ला रही है। ब्लैक पेपर को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 10 साल की यूपीए सरकार के कामकाज और कुप्रबंधन पर पेश किए गए श्वेत पत्र का जवाब माना जा रहा है।
साथी छोड़ रहे हैं साथ, फिर भी उत्साह में है कांग्रेस
2019 के लोकसभा चुनाव में आचार्य प्रमोद कृष्णम रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के विरुद्ध चुनाव लड़े थे। उन्हें कांग्रेस के भीतर कुछ लोग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समानांतर देख रहे थे। खबर है कि आचार्य का मन डोल रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री, इंडिया गठबंधन के मुख्य सूत्रधार नीतीश कुमार का मन डोल चुका है। रालोद के जयंत चौधरी को लेकर मीडिया में चर्चा है। भाजपा के आईटी प्रमुख अमित मालवीय समेत कई बड़े नेता कांग्रेस को डूबता हुआ जहाज बताते हैं। मोदी सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री तो यहां तक दावा करते हैं कि अप्रैल 2024 तक कांग्रेस के दर्जन भर से अधिक बड़े नेता भाजपा में आने के लिए लाइन में हैं। तृणमूल कांग्रेस की नेता सुष्मिता देव को पूर्व मंत्री के दावे में कोई आश्चर्य नहीं लगता। वैसे भी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में एकला चलो का संदेश दे रही हैं। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को लोकसभा में 40 सीटों पर सिमट जाने की भविष्यवाणी तक कर दी है। फिर भी कांग्रेस उत्साह में है। कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और पूर्व महासचिव बीके हरि प्रसाद कहते हैं कि लोकसभा चुनाव तक काफी कुछ बदल जाएगा। राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो न्याय यात्रा में चल रहे सूत्र का कहना है कि जमीन पर जनता त्रस्त है। आप यात्रा में उमड़ रही भीड़ को देख लीजिए, भाजपा की घबराहट समझ में आ जाएगी।
आंकड़ों का गणित दे रहा है कांग्रेस को बड़ा भरोसा
कांग्रेस पार्टी ने सुनील कानूगोलू की सलाह को वरीयता देकर कर्नाटक विधानसभा का चुनाव लड़ा, प्रचार अभियान चलाया और सफल रही। कानूगोलू के साथ के सदस्य का कहना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को लेकर जितनी नकारात्मकता भाजपा के नेता प्रचारित कर रहे हैं, जमीनी स्थिति उससे काफी अलग है। सूत्र का कहना है कि इस बार कांग्रेस को दक्षिण के तीन राज्यों (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना) से अच्छी सूचना मिलेगी। तीनों राज्यों की 70 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 2019 में केवल 04 (तेलंगाना-3, कर्नाटक 01) मिली थी। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और झारखंड में लोकसभा की कुल 211 सीटें हैं। जबकि कुल मिलाकर कांग्रेस के हिस्से में केवल 05 सीटें आई थीं। बताते हैं देश के छोटे-बड़े 16 राज्यों में कांग्रेस पार्टी का खाता ही नहीं खुला था। उसे इन सभी राज्यों में केंद्र सरकार के कामकाज के खिलाफ जनता की नाराजगी का फायदा मिलने के आसार हैं। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के सचिवालय के सदस्य इसमें एक लाइन और जोड़कर कहते हैं कि 2019 के आम चुनाव में छोटे-बड़े 9 राज्यों में भाजपा का भी खाता नहीं खुला था। इसमें केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश प्रमुख हैं। इन तीनों में लोकसभा की 84 सीटें हैं और 2024 में भी भाजपा के लिए वहां कोई संभावना नहीं है। कांग्रस के रणनीतिकारों का कहना है कि भाजपा के भ्रामक प्रचार के कारण भले ही ऐसा मीडिया में न दिखाई दे रहा हो, लेकिन जनता काफी कुछ महसूस कर रही है। सरकार के कामकाज से जनता में नाराजगी और चुनाव के आंकड़े दोनों विपक्ष के पक्ष में हैं।
थोड़ा सा दबाव पड़ता है और यू टर्न ले लेते हैं
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के I.N.D.I गठबंधन का साथ छोड़ने पर कहा कि थोड़ा सा दबाव पड़ता है और यू टर्न ले लेते हैं। कांग्रेस पार्टी में नेता और कार्यकर्ता इसका खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। संजीव सिंह कहते हैं कि राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान इसे बोला था, तो जनता ने अच्छी प्रतिक्रिया दी थी। संजीव सिंह कहते हैं कि कार्यकर्ता जानता है कि हारे हुए लोग पार्टी खड़ी नहीं कर सकते। हालांकि संजीव सिंह कहते हैं कि लोगों के साथ छोड़ने पर झटका तो लगता ही है। वहीं कांग्रेस पार्टी को छोड़ चुकी एक पूर्व राज्यसभा सांसद का कहना है कि राजनीति में सब लोग बिना कारण के पार्टी नहीं छोड़ते। हल्के नेता पार्टी छोड़ते हैं, तो उससे बड़ा झटका नहीं लगता, लेकिन जब जुझारू और नतीजा देने वाले नेता पार्टी छोड़ते हैं, तो बड़ा झटका लगता है। कभी राहुल गांधी की टीम का हिस्सा मानी जानी वालीं राज्यसभा सदस्य का कहना है कि कुछ तो बात है, जो देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को दो आम चुनाव में विपक्ष का दर्जा पाने लायक भी जनप्रतिनिधि नहीं मिले। वह कहती हैं कि इस स्थिति में अभी भी कोई सुधार नहीं आया है और भाजपा को इसी का फायदा मिल रहा है।