Modi vs Opposition: अब यह सवाल नहीं है कि इंडी एलायंस मोदी को हरा सकता है या नहीं| सवाल यह है कि मोदी को विपक्षी गठबंधन क्यों नहीं हरा पाएगा ? 2014 के चुनाव के वक्त बहुत कम पत्रकार थे जो चुनावी हवा को समझ पाए थे|
उस समय ज्यादातर पत्रकारों का आकलन था कि भाजपा 2004 और 2009 में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने में विफल रही थी, 2014 में ज्यादा से ज्यादा वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर आएगी| वे भाजपा को 200 से पार नहीं देखते थे|
कुछ पत्रकार थे, जो भाजपा को नए रूप में उभरता देख रहे थे, वे भी भाजपा को 250 के आसपास ही देखते थे| लेकिन भाजपा अपने बूते पर बहुमत का आंकडा पार कर लेगी, ऐसा आकलन तो भाजपा के शुभचिंतकों को भी नहीं था| आज करीब दस साल बाद स्थितियां पूरी तरह बदली हुई हैं| दस साल पहले जिस मानसिकता के पत्रकार भाजपा की 200 से कम सीटों का आकलन कर रहे थे, वे दस साल बाद भी 2024 में भाजपा को 200 से नीचे ही रख रहे हैं| लेकिन जो 250 के आसपास का आकलन कर रहे थे, वे 303 के पार का आकलन कर रहे हैं| मोदी की लोकप्रियता से प्रभावित पत्रकारों का आकलन है कि भाजप इस बार 350 सीटों का आंकड़ा पार करेगी|
सहज ही सवाल उठता है कि इंडी एलायंस फेल क्यों हो गया, या फेल क्यों हो रहा है| इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस खुद को थोड़ा सा मजबूत होता देखती है, तो घमंड के घोड़े पर सवार हो जाती है| हिमाचल जीतने के बाद कांग्रेस ने विपक्षी गठबंधन को कर्नाटक के चुनाव नतीजे तक टाला| कर्नाटक के चुनाव नतीजे आने के बाद कांग्रेस के समर्थन से नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों की बैठक बुलाई, लेकिन कांग्रेस ने दिसंबर में पांच विधानसभाओं के चुनाव नतीजों तक बात को आगे ही नहीं बढ़ने दिया| कांग्रेस पांच राज्यों में से तीन राज्य भी जीत जाती, और ऐसा लगता कि वह लोकसभा चुनाव नतीजों में सौ से पार जा सकती है तो एक मजबूत गठबंधन बन सकता था| जो 2024 में मजबूत विपक्ष के रूप में उभर सकता था, लेकिन अब तो वह संभावना भी खत्म हो चली है| तीन राज्यों में कांग्रेस की हार के दिन से ही इंडी गठबंधन के टूटने की इबारत लिख दी गई थी| क्षेत्रीय दलों के अपने स्वार्थ होते है, वे उस राष्ट्रीय दल के साथ जुड़ना चाहते हैं, जो उनके उम्मीदवारों को जिताने की क्षमता रखता हो| पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद क्षेत्रीय दलों को यह साफ़ हो गया था कि देश की जनता कांग्रेस को कतई पसंद नहीं कर रही, इसलिए कांग्रेस उनके कंधे पर सवार हो कर चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है| इसलिए विपक्षी गठबंधन में नए जुड़े जेडीयू और टीएमसी ने कांग्रेस से किनारा कर लिया| समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी नफे नुकसान का आकलन कर रही हैं| ममता और नीतीश कुमार अलग न भी होते, तो भी इंडी एलायंस के जीतने की कोई संभावना नहीं थी| देश ज्यादा से ज्यादा इंडी एलायंस को मजबूत विपक्ष के तौर पर उभारने के बारे में सोचता| सच यह है कि जब तक कांग्रेस वक्त के अनुसार अपनी नीतियों में परिवर्तन करके खुद को मजबूत नहीं करेगी, तब तक देश की जनता भाजपा और मोदी को ही वोट देती रहेगी| नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय स्तर पर उभरने से एक और बड़ा अंतर आया है, जिसने राष्ट्रीय विकल्प के रूप में कांग्रेस को कमजोर और भाजपा को मजबूत किया है| भ्रष्टाचार और अल्पसंख्यकवाद के कारण 2014 में कांग्रेस और उसके गठबंधन दलों को जनता ने नकारा, यह बात अब पुरानी हो चुकी है| नरेंद्र मोदी ने नए तरह की राजनीति शुरू की है, जिसमें देश के समावेशी विकास के साथ साथ प्राचीन सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को भी उभारा जा रहा है| आज़ादी के बाद से देश की 85 प्रतिशत हिन्दू जनता जिस घुटन को महसूस कर रही थी, मोदी ने उसे उस घुटन से मुक्ति दिलाई है|
काशी विश्वनाथ कोरिडोर, उज्जैन में महाकाल मन्दिर कोरिडोर के बाद अब असम में कामाख्या मन्दिर कोरिडोर और मथुरा में कृष्ण जन्मस्थली कोरिडोर का विचार 80 प्रतिशत जनता को नई आज़ादी का एहसास करवा रहा है| इसी दौरान अनुच्छेद 370 का हटना और अयोध्या में राम जन्मभूमि मन्दिर का निर्माण हो जाना हिन्दू मतदाताओं में नवजागरण का संचार कर रहा है| कांग्रेस ने राम जन्मभूमि मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा का बायकाट करके देश की 80 प्रतिशत हिन्दू जनता को संदेश दिया कि जन्मभूमि पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बावजूद उसकी विचारधारा और नीतियों में बदलाव की कोई संभावना नहीं है| इसलिए मोदी की मजबूती और इंडी एलायंस की कमजोरी का सबसे बड़ा कारण राष्ट्रवाद और हिंदुत्व बनाम सेक्यूलरिज्म की लड़ाई बन जाना है| हिंदुत्व बनाम सेक्यूलरिज्म का टकराव भी खुद इंडी एलायंस का बनाया हुआ है| राम जन्मभूमि पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद इन सभी राजनीतिक दलों के मुस्लिम नेताओं ने या तो खुलकर या दबी जुबान से सुप्रीमकोर्ट के फैसले का विरोध करके खुद को हिन्दुओं से अलग कर लिया|
अगर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां अपने मुस्लिम नेताओं की जुबान बंद करती और सुप्रीमकोर्ट के फैसले का स्वागत करती, तो 1947 से 2019 तक राम जन्मभूमि के विरोध को जनता देर सबेर भूल भी जाती| लेकिन इन सभी दलों के हिन्दू नेता अभी भी सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर किन्तु परन्तु लगा कर देश की 80 प्रतिशत जनता को नाराज करने की कोशिश करते रहते हैं| शायद वे समझ नहीं पा रहे कि उनके हिन्दू विरोधी सेक्यूलरिज्म में देश की बहुसंख्य युवा पीढी की कोई आस्था नहीं है| रामजन्म भूमि आन्दोलन के बाद हिन्दू जागा है, उसने इतिहास को नए नजरिए से देखना शुरू किया है| हिन्दू ऐसा सेक्यूलरिज्म चाहता है, जिसमें उसे 500 साल की गुलामी से आज़ादी का अहसास हो| सेक्यूलर दलों की समस्या यह है कि वह ब्रिटिश काल से पहले की मुगलों की गुलामी को गुलामी ही नहीं मानते| कांग्रेस ने आज़ादी के बाद स्कूलों कालेजों में वैसा ही इतिहास पढ़ाया, जिसमें मुगलकाल को गुलामी का काल नहीं माना गया था| जबकि राम जन्मभूमि आन्दोलन ने आज़ादी के बाद पैदा हुए हिन्दुओं की आँखें खोल दी। उसी का असर है कि आज हिन्दू अपने मन्दिरों को वापस हासिल करने के लिए जगह जगह आन्दोलन कर रहे हैं|
मोदी ने मन्दिरों का जीर्णोद्धार शुरू करवा कर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की उस अवधारणा को जमीन पर उतार दिया है, जिसका नारा 90 के दशक में लाल कृष्ण आडवाणी ने दिया था| मोदी सरकार ने आडवाणी को भारत रत्न देकर आडवाणी को नहीं देश की 80 प्रतिशत हिन्दू जनता को सम्मानित किया है, जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रूप में नए आज़ाद भारत को साकार होता देख रही है| विपक्ष यह समझ नहीं पा रहा कि बदले हुए जागृत भारत में एकतरफा और फर्जी सेक्यूलरिज्म की विचारधारा भाजपा और मोदी को हराने में अक्षम है|