भारत गंगा, जमुना जैसी पवित्र नदियों का देश कहा जाता है. यहां पानी की समृद्धता इसे और सुंदर बनाती है. लेकिन इसी सुंदर और समृद्ध देश को गांवों और शहरों में पानी की बर्बादी किसी ओर दिशा में खींच रही है.
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को की एक रिपोर्ट की मानें तो साल 2025 तक भारत में पानी की समस्या बहुत ज्यादा बढ़ सकती है. ऐसे में इस बढ़ती समस्या को लेकर आशंका जताई गई है कि जल संरक्षण की कमी, प्रदूषण, अतिक्रमण, शहरीकरण और ग्लेशियर पिघलने के कारण आने वाले समय में गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी हिमालयी नदियों का प्रवाह कम हो जाएगा.
यूनेस्को की द्वारा जारी की गई रिपोर्ट की मानें तो साल 2016 में धरती पर 9.33 करोड़ लोग पानी की कमी से परेशान थे. जिसके बाद कई देशों में जल संकट की भारी कमी देखी गई. रिपोर्ट में ये भी दावा है कि एशिया का 80 प्रतिशत क्षेत्र पानी की कमी से जूझ रहा है. जिसमें पूर्वोत्तर चीन, भारत और पाकिस्तान पर ये संकट काफी ज्यादा है.
देश में 10 करोड़ लोग पानी की समस्या से परेशान
समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई) की रिपोर्ट के अनुसार, इस समय भारत के प्रमुख 21 शहरों में लगभग 10 करोड़ लोग पानी की भीषण परेशानी का सामना कर रहे हैं. देश में साल 1994 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6 हजार घन मीटर थी जो साल 2025 तक घटकर 1600 घन मीटर रह जाने की संभावना जताई गई है. इसके अलावा देश की बढ़ती आबादी भी जल संकट का एक बड़ा कारण माना जा रहा है.
क्या है सबसे बड़ी चुनौती?
फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती जल संरक्षण है. यदि जल को संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले सालों में लोगों को पीने का पानी तक उपलब्ध करवाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. ऐसे में फिलहाल ये जरूरी है कि सरकार के पास वो सभी डेटा हो जो जल सरंक्षण के लिए जरूरी है. जो फिलहाल एक बड़ी समस्या है.
वो इसलिए भी क्योंकि वॉटर रिसोर्सेज इनफॉरमेशन सिस्टम के पास जलाशय और नदियों का आंकड़ा तो मौजूद है लेकिन अलग-अलग शहरों में मौजूद छोटी-छोटी नहरों का कोई डाटा फिलहाल नहीं है जिन्हें ग्रामीण भारत की जीवन रेखा भी कहा जाता है और यही नहरें बाढ़ जैसे संकट को रोकने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होती हैं. इसके अलावा भारत में पानी के आंकड़े तैयार करने वाली एजेंसियां राज्य स्तर पर हैं और ये राज्य इन डाटा को तैयार करने के विकेंद्रीकृत और लोकल मैकेनिज्म का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में जल निकायों को सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए, हमें औपचारिक डेटा के साथ एकीकृत करने के लिए समुदायों के प्रासंगिक और पारंपरिक ज्ञान की भा जरूरत है.
क्या हैं कहते जल शक्ति जनगणना की रिपोर्ट के आंकड़े?
जल शक्ति मंत्रालय ने अप्रैल 2023 में भारत की पहली जल निकायों की जनगणना की रिपोर्ट पेश की है, जो देश में तालाबों, टैंकों, झीलों और जलाशयों को व्यापक रूप से बताती है. इस रिपोर्ट के अनुसार देश में तालाबों, टैंकों और झीलों जैसे 24.24 लाख जल निकाय हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा 7.47 लाख जल संरचनाएं हैं तो वहीं सिक्किम में सबसे कम 134 जल संरचनाएं हैं.
जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी जल संख्या गणना की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 24.24 लाख जल संरचनाओं में से 97.1 प्रतिशत यानी 23.55 लाख गावों में और केवल 2.9 प्रतिशत यानी 69,485 शहरों में हैं. इसी रिपोर्ट के मुताबिक टैंकों की सबसे ज्यादा संख्या आंध्र प्रदेश में है, जबकि तमिलनाडु में सबसे ज्यादा संख्या झीलों की है.
वहीं केंद्रीय जल शक्ति मिनिस्ट्री की रिपोर्ट के मुताबिक देश के अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा जलाशयों की गणना हुई है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अप्रैल 2032 में सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर ट्वीट के माध्यम से ये जानकारी दी कि आगे चलकर राज्य में पानी के संकट का सामना नहीं करना पड़े, इसलिए राज्य की महायुति की सरकार अग्रसर है.
क्या है परेशानी?
इस रिपोर्ट के मुताबिक, देश में अधिकतम जल निकाय बहुत छोटे हैं. भारत के अधिकांश जल निकाय एक हेक्टेयर से भी छोटे हैं. इससे स्पष्ट होता है कि उन जल निकायों का पता लगाना किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि उपग्रहों का उपयोग करके इन जल निकायों को मानचित्र में भी नहीं ढूंढा जा सकता, इसी वजह से भू-आधारित ट्रैकिंग यानी जल शक्ति जनगणना की शुरुआत हुई थी. इसके अलावा इस रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि कई जल निकायों का पानी इतना पुराना और इतना मेला है कि उसे इस्तेमाल उसे इस्तेमाल करने से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं. इसलिए इन जल निकायों के पानी को इस्तेमाल करने योग्य भी नहीं बताया गया है.
बारिश का पानी संरक्षित करना ही एकमात्र हल?
दूसरे देशों की जल संरक्षण नीतियों पर नजर डालें तो पिछले कुछ सालों में इजरायल ने बारिश के पानी का संरक्षण करने के साथ ही उनका बेहतर उपयोग करके इस मुसीबत से निजात पा लिया है. इसे देखते हुए यदि भारत में बारिश के पानी को संरक्षित किया जाए और उसे नई तकनीकों के माध्यम से पीने लायक बनाया जाए तो हम बहुत हद तक आने वाले समय में होने वाली समस्या का पहले ही निदान कर सकते हैं. हालांकि इसके लिए हमारी प्रतिबद्धता बहुत जरूरी है जिसके चलते हम पानी को संरक्षित करके उसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
दुनियाभर में पानी की किल्लत लोगों के लिए बड़ी परेशानी
चिंता की बात ये भी है कि सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की 26 प्रतिशत जनसंख्या साफ पानी न मिलने से परेशान है. पश्चिमी एशिया और अफ्रीका के बहुत से देश पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. लोगों के पास पीने के लिए साफ पानी नहीं है. ऐसे में दुनिया के 2 से 3 अरब लोग कम से कम साल में एक महीने के लिए पानी की किल्लत का सामना करते हैं.
वर्तमान में देखा जाए तो भारत भूजल का इस्तेमाल दूसरे देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा करता है, लेकिन भूमि से निकाले गए जल का मात्र 8 प्रतिशत ही पीने योग्य होता है. इस पानी का 80 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई के काम में उपयोग में लाया जाता है. शेष 12 प्रतिशत भाग विभिन्न उद्योगों द्वारा उपयोग कर लिया जाता है.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक देश में जल संकट की वजह यहां जरूरत से ज्यादा भूजल का दोहन किया जा रहा है. केंद्रीय भूजल बोर्ड की मानें तो देश में हर साल सिंचाई के लिए 230 अरब घन मीटर भूजल निकाला जाता है, यही कारण है कि कुछ राज्यों में भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है.
लगातार बदलता मौसम भी बड़ी वजह
वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती का तापमान जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे मौसम में बदलाव हो रहा है और पानी की किल्लत से परेशानियां बढ़ती जा रही हैं. दरअसल पिछले बीस सालों में धरती के बढ़ते तापमान, ग्रीन हाउस गैसों का असर और ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत के ऋतु-चक्र में ‘अल-नीनो’ का असर देखने को मिल रहा है. जिसका मतलब है कि देश में बारिश कम हो रही है और गर्मी काफी तेजी से बढ़ती जा रही है. एक रिपोर्ट की माने तो भारत में दूसरे देशों की तुलना में पानी की बर्बादी बहुत अधिक होती है.
इसके अलावा जल संकट की एक बड़ी वजह कारखानों के जहरीले पानी को पाइप की मदद से जमीन के अंदर पहुंचना भी है. दरअसल भारत में तीन लाख से ज्यादा छोटे-बड़े बूचड़खाने हैं. इन कारखानों में हर दिन करोड़ों लीटर पानी बर्बाद होता है. वहीं अन्य देशों में भी बूचड़खानों के कारण करोड़ों लीटर पानी बर्बाद होता आ रहा है.
जल के लिए भारत सरकार ने बनाई योजनाएं
राष्ट्रीय जल नीति- देश के आजाद होने के बाद तीन राष्ट्रीय जल नीतियों का निर्माण हुआ है. जिनमें से पहली नीति का साल 1987, दूसरी नीति का 2002 और तीसरी नीति का निर्माण 2012 में किया गया. इस नीति के तहत जल को एक प्राकृतिक संसाधन मानते हुए जीवन, आजीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकास का आधार माना गया है. इस नीति के तहत जल संसाधनों के नियोजन, विकास और प्रबंधन की इकाई के रूप में नदी बेसिन या उप-बेसिन को लिया गया है.
इस नीति के तहत नदी के एक भाग को इस्तेमाल के लिए संरक्षित किए जाने का प्रावधान है तो वहीं नदी के दूसरे भाग को बहते देने का प्रावधान है. जिससे लोगों को पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध हो सके. इसके अलावा इस नीति के तहत ये तय किया गया कि जल के अंतर्बेसिन का उपयोग सिर्फ उत्पादन बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए भी किया जाना चाहिए.
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) को 2015-16 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य खेत पर पानी की भौतिक पहुंच को बढ़ाना और सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना था. इसके अलावा कृषि जल उपयोग दक्षता में सुधार करना, स्थायी जल संरक्षण प्रथाओं को लागू करने के उद्देश्य से भी इस योजना को शुरू किया गया था. पीएमकेएसवाई- हर खेत को पानी (एचकेकेपी) पीएमकेएसवाई के घटकों में से एक है. बता दें एसएमआई की योजना अब पीएमकेएसवाई (एचकेकेपी) का एक हिस्सा है.
जल शक्ति अभियान, ‘कैच द रेन’ अभियान- जल शक्ति मंत्रालय ने “कैच द रेन” अभियान, “बारिश के पानी का संरक्षण, जहां भी संभव हो, जैसे भी संभव हो” टैग लाइन के साथ शुरू किया. ये अभियान केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है. इसके अलावा इस अभियान की शुरुआत पूरे देश में, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों की गई है. इसके तहत ग्राम पंचायतों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाए जाते हैं.
जिससे जल संरक्षण में मदद मिलती है. वहीं इसे 4 मार्च 2023 से 30 नवंबर 2023 तक देश में प्री-मानसून और मानसून अवधि में लागू किया गया है. भविष्य के लिए यह सिस्टम काफी उपयोगी है. इससे बरसात का पानी बेकार नहीं जाता. जमीन में जलस्तर संतुलित रहता है. साथ ही हैंडपंप और कुएं लंबे समय तक चलते हैं.
अटल भूजल योजना- अटल भूजल योजना का उद्देश्य स्थायी भूजल प्रबंधन का प्रदर्शन करना है जिसे बड़े स्तर पर ले जाया जा सकता है. इस योजना का उद्देश्य चिन्हित राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे चुनिंदा जल संकट वाले क्षेत्रों में भूजल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार लाना है.
दुनिया पानी की किल्लत से परेशान
ऐसा नहीं है कि आने वाले समय में सिर्फ भारत को पानी की समस्या का सामना करना पड़ेगा, बल्कि ये संकट पूरी दुनिया में दिखने वाला है. इस सकंट की वजह से बड़ी परेशानियां भी देखने को मिल सकती हैं. कुछ जानकारों का तो ये भी कहना है कि अगला विश्वयुद्ध पानी की समस्या के कारण भी हो सकता है.
हमारे देश के कई राज्यों में पानी अभी भी एक बड़ी समस्या है. जिनमें से महाराष्ट्र का नाम भी शामिल है. महाराष्ट्र में तो ये भी माना जाता है कि लोग दो शादियां इसलिए करते हैं कि एक पत्नी पानी लेकर आए और दूसरी घर के बाकी घरेलू काम निपटा सके. इससे साफ पता चलता है कि पानी की समस्या कितनी गंभीर है. वहीं यदि यही समस्या भारत के दूसरे राज्यों में देखने को मिलती है और इसी के चलते यदि दूसरे राज्यों के लोग पानी की समस्या का ये समाधान अपनाने लगे तो आने वाले समय में कई तरह की सामाजिक और धार्मिक समस्याएं सामने आ सकती हैं.
कितनी भयावह है पानी की समस्या?
वाटर ऑर्गनाइजेशन के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में 771 मिलियन लोगों को सीधे साफ पानी नहीं मिलता. उन्हें इसके लिए घंटों पैदल चलकर या दूर किसी क्षेत्र में जाकर पानी की व्यवस्था करनी होती है.
दुनिया में 1.7 बिलियन लोग ऐसे भी हैं जो पीने का साफ पानी नहीं पी पाते. साथ ही उनके पास मिलने वाले पानी को साफ करने का भी कोई तरीका नहीं होता.
-200 मिलियन महिलाएं रोज 200 मिलियन घंटे अपने घर के लिए पानी लाने के लिए बिताती हैं.
-1 मिलियन लोग हर साल गंदा पानी पीने के बाद होने वाली बीमारियों से अपनी जान गवां देते हैं.
-हर मिनट एक बच्चे की मौत गंदे पानी से होने वाली बीमारियों से होती है.
-3 में से 1 ही स्कूल के पास साफ पानी की सुविधा होती है और गंदे पानी से बच्चों को कई बीमारियां घेर लेती हैं.
-2025 तक दुनिया की 50% आबादी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप जल-तनाव वाले क्षेत्रों में रह सकती है. जिसके चलते कम आय वाले परिवारों को इस संकट का सबसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा.