China: चीन ने 2013 में बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव यानि बीआरआई की शुरूआत की और 2015 में डिजीटल सिल्क रोड यानि डीएसआर की। बीआरआई के तहत उसने भौतिक ढ़ाचा के नाम पर विभिन्न देशों की रेल, रोड, पोर्ट, गैस पाइप लाइन और पावर ग्रिड को अपने साथ जोड़ने का अभियान चलाया तो डीएसआर के नाम से टेक्नोलॉजी के जरिए दुनिया को अपने पाश में बांधने का अभियान शुरू किया। पर दोनों में ही चीन फंसता नजर आ रहा है। चीन ने भौतिक ढांचागत परियोजनाओं के लिए 150 देशों और 30 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ समझौता किया तो डीएसआर के तहत लगभग 27 देशों के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किया है।
बिखर रहा है चीन का बीआरआई प्रोग्राम
बीआरआई को लेकर चीन ने जो सपना देखा था अब वह बिखरता हुआ दिखाई दे रहा है। इसमें शामिल कई देश कर्ज के दलदल में फंस चुके हैं और अब इससे निकलने का ऐलान भी कर रहे हैं। जी 20 की बैठक में इटली का फैसला आ चुका है, उसी लाइन पर यूरोप के कई देश भी सोचने लगे हैं। चीन को भी यह समझ आ चुका है कि बीआरआई उसके लिए गले में लटके सांप की तरह है, जिसे निकाल फेंकना जरूरी है। इसीलिए चीन अब नये सिरे से बीआरआई 2 की योजना बना रहा है, जिसमें वह लागत में कम और समय में बचत के आधार पर पूरी होने वाली परियोजनाओं को शामिल करेगा।
बीआरआई के 60 प्रतिशत निवेश पर खतरा
चीन ने पहले बीआरआई परियोजना में 8 खरब डॉलर के निवेश की योजना बनाई थी, जिसमें से एक खरब डॉलर खर्च भी कर चुका है। पर निवेश के फंसने या डूबने के खतरे ने चीन को विचार बदलने पर मजबूर कर दिया है। 60 अरब डॉलर का सीपैक यानी चाइना पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर के खटाई में पड़ने का उदाहरण चीन को चुभ रहा है। चीन ने बीआरआई से जितना नाम कमाया उससे कहीं ज्यादा बदनामी मिली है। 2017 में जब श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट की चीन ने अपने नाम 99 साल की जबरन लीज करवाई तो यह धारणा तेजी से फैल गई कि बीजिंग की बीआरआई परियोजना का मुख्य मकसद पूंजी देकर उन देशों को कर्ज के जाल में फंसा देना है, जो उसके लिए सैन्य रणनीतिक के महत्व के हैं। फिर उनके पोर्ट या एयरपोर्ट पर कब्जा कर अपना मिलिट्री बेस तैयार कर लेना है। पर बीजिंग के इस जाल में खुद के निवेशक बैंक और उसके सरकारी संगठन फंस गए हैं। इस समय चीन के निवेशकों की स्थिति काफी दयनीय है और अब 2013 के मुकाबले केवल 33 फीसदी क्षमता के ही रह गए हैं। चीन ने खुद लगभग 1 खरब डॉलर के लोन को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। 2022 के आंकड़े बताते हैं कि चीन की सरकार या कंपनियों द्वारा बीआरआई के तहत दिये गए लोन का 60 प्रतिशत हिस्सा इस समय डूबने की कगार पर है। चीन इनकी रिपेमेंट को लगातार रिशिडयूल करने पर मजबूर है।
करती हैं मनमानी चीनी कंपनियां
बीआरआई के पार्टनर देश तब ठगे हुए महसूस करने लगे जब चीनी कंपनियों पर यह आरोप लगने लगा कि उनके कंस्ट्रक्शन के काम में बहुत सारी खामियां हैं, उनके अधिकारी भारी मात्रा में रिश्वत खा रहे हैं और पार्टनर देश के नियमों और कानूनों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। यही नहीं कई चीनी कंपनियां वित्तीय बहाने बनाकर परियोजनाओं को मनमाने ढंग से रद्द भी करने लगी हैं। केन्या की रेल परियोजना को ऐसे ही बीच रास्ते में बंद कर दिया गया। चीन की कंपनियों ने राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिए कुछ ऐसी ढ़ांचागत परियोजनाओं को भी हाथ में ले लिया जिनका लिंकेज नहीं होने के कारण कोई इस्तेमाल ही नहीं है। उदाहरण के लिए सीपैक के साथ बना ग्वादर पोर्ट है जिसका उपयोग सिर्फ चीन अपने लिए कर रहा है। पाकिस्तान के व्यापारियों का इससे कोई भला नहीं हो रहा है।
क्या डिजीटल सिल्क रोड भी डूबेगी
जहां तक बात डिजीटल सिल्क रोड की है तो चीन फिल्हाल इस क्षेत्र को मजबूत करने में लगा है। क्योंकि भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर से कहीं कम खर्चीला डिजीटल इंफ्रास्टक्चर है। चीन डीएसआर में भी पार्टनर देश को राजनीतिक और आर्थिक सहायता प्रदान कर रहा है। इसमें चीन की टेक्नोलॉजी कंपनी जैसे हुवेई, टेनसेंट और अलीबाबा भी बढ़ चढ़ कर भाग ले रही हैं, जो मुख्य तौर पर टेलीकम्यूनिकेशन नेटवर्क, आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस और क्लाउड कंप्यूटिंग टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं। हालांकि अभी इसमें 27 देशों के साथ भागीदारी बताई जा रही है, पर मेमरोंडम आफ अंडरस्टैंडिंग पर इससे कहीं ज्यादा देशों के साथ हस्ताक्षर हो चुके हैं। आकलन तो यह है कि बीआरआई में शामिल 138 देशों में से कम से कम एक तिहाई देशों के साथ चीन डीएसआर के तहत भी समझौता करने वाला है।
खूबियां या खामियां
इस क्षेत्र में चीन की खूबियां ही इसकी खामियां साबित होंगी। चीन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी तरक्की कर चुका है और यह माना जा रहा है कि यह सूचना प्रौद्योगिकी में सीधे अमेरिका को टक्कर दे रहा है, पर चीन इस मामले में विश्वसनीयता बिल्कुल नहीं रखता। इसकी तमाम टेक्नोलॉजी कंपनियों पर जासूसी, डाटा चोरी और पायरेसी के मुकदमे चल रहे हैं। खास कर अमेरिका, जापान, कनाडा और आस्ट्रेलिया ने कई प्रकार के प्रतिबंध चीन की टेक कंपनियों के खिलाफ लगाए हैं। हुवेई और जेडटीई के वीडियो सर्वेलेंस इक्विपमेंट की बिक्री पर पहले ही प्रतिबंध अमेरिका ने लगा दिया था, अब बाइडेन प्रशासन ने चीन की टेक कंपनियों में नये निवेश को भी प्रतिबंधित कर दिया है।
भारत का डिजीटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर भी मैदान में
भारत का डिजीटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) प्रोग्राम चीन के डिजीटल सिल्क रोड की तरह ही तैयार किया गया है पर इसका उद्देश्य वह नहीं है, जो चीन का है। चीन अपने डीएसआर प्रोग्राम को विशुद्ध व्यापारिक तौर पर चला रहा है, जहां वह इक्विमेंट की बिक्री, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का नेटवर्क और टेक्नोलॉजी बेच रहा है और उसके लिए बहुत बड़ा निवेश भी कर रहा है, पर भारत अपने डीपीआई प्रोग्राम के तहत अपने पार्टनर देश को उनकी जरूरत और उनके संसाधनों के तरह डिजीटल सेवाओं में विस्तार के लिए सहयोग कर रहा है।
भारत सरकार ने 400 अरब डॉलर का इसमें निवेश किया है। चीन के डीएसआर के साथ जहां 27 देश जुड़े हैं वहीं भारत के डीपीआई के साथ भी 8 देश जुड़ चुके हैं और 20 जुड़ने वाले हैं। दिल्ली में हाल ही संपन्न जी 20 सम्मेलन में भारत ने अपने डिजीटल प्रोग्राम का प्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया था, जिसे काफी सराहा गया।