प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदि कैलाश में पूजा अर्चना और साधना करने के बाद अब उत्तराखंड के साथ ही पर्यटन से जुड़े लोगों को नई आस जगी है। एक तरफ जहां चीन से कैलाश मानसरोवर यात्रा का लोगों को विकल्प मिलने की बात सामने आ रही है, वहीं दूसरी तरफ कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग के आबाद होने की आस जगी है।
लंबे समय से नीति और मलारीघाटी के लोग घाटी से मानसरोवर यात्रा शुरू करने और सीमा दर्शन की मांग करते आ रहे हैं। बदरीनाथ से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर माणा गांव है। यहां के ग्रामीण कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू करने के साथ ही सीमा दर्शन की अनुमति की मांग कर रहे हैं। माणा गांव धार्मिक, आध्यात्मिक पर्यटन एवं सामाजिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद माणा व नीति घाटी के लोगों का तिब्बत से व्यापारिक संबंध समाप्त हो गया और कैलाश मानसरोवर यात्रा भी इन मार्गों से पूर्ण रूप से बंद हो गई। तब से घाटियों के लोग लगातार सरकारों से कैलाश मानसरोवर की यात्रा के पुराने मार्ग को दोबारा शुरू करने की मांग कर रहे हैं।
नीतिघाटी मार्ग से वर्ष 1954 तक कैलाश मानसरोवर यात्रा की जाती रही है, लेकिन 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद यहां के व्यापारियों का न केवल व्यापारिक संबंध समाप्त हुआ बल्कि मानसरोवर यात्रा भी बंद हो गई। 1981 से भारतीय विदेश मंत्रालय व चीन सरकार के सहयोग से कुमाऊं मंडल विकास निगम यात्रा को संचालित करता है। यात्रा लिपुलेख दर्रे से होकर जाती है। इस ट्रैक की कुल दूरी दिल्ली से करीब 835 किमी है जिसे 32 दिनों में पूरा किया जाता है। चमोली जिले की नीति-माणा घाटी से मानसरोवर की यात्रा दो मार्गों से की जाती है। पहला नीति से ग्यालढांग होते हुए। इसमें करीब 10 पड़ाव हैं। नीति से कैलाश परिक्रमा पथ की दूरी करीब 110 किमी है। दूसरा मार्ग नीति से सुमना-रिमखिम-शिवचिलम होते हुए है जिसकी दूरी करीब 100 किमी है।
माणापास से तोथिला से थैलिंगमठ होते हुए मानसरोवर जाया जा सकता है। 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद उनके अवशेषों को देश के विभिन्न हिस्सों में ले जाने के लिए 12 कलशों में रखा गया था। इन्हीं में से एक कलश नीतिघाटी के रास्ते ही मानसरोवर में विसर्जित किया गया था।