उज्जैन की गलियां एक बच्ची के अभागे अंगों के बहते खून से लथपथ हो गयीं। 12 या फिर 15 साल की एक लड़की जो पता नहीं क्यों और कैसे सतना से ट्रेन पकड़कर उज्जैन पहुंच जाती है। भोर के तीन बजे स्टेशन पर उतरती है और दिन चढ़ते चढ़ते लहूलुहान होकर गलियों में भागती फिरती है। इस बीच उसके साथ कुछ ऐसा जघन्य अपराध हो गया जिसे वह बोलकर बता भी नहीं पा रही थी।
कच्ची उम्र में उसके शरीर के जिस अंग को निशाना बनाकर उसकी जिन्दगी बर्बाद कर दी गयी उसी अंग से खून को बहाते हुए वह भटकते भटकते एक खाली सड़क की ओर आगे बढ़ जाती है जिस पर कुछ दूर पर एक गुरुकुल बना हुआ था। गुरुकुल से बाहर जा रहे आचार्य राहुल शर्मा उस बच्ची को देखते हैं तो उन्हें समझते देर नहीं लगती कि इसके साथ अनर्थ हो गया है। तत्काल अपने शरीर का अंगवस्त्र उतारकर उसको देते हैं ताकि वह अपना शरीर ढंक सके। उसके बाद जब उसको पूछते हैं कि भूख लगी है तो वह अभागी बिटिया बोलने की बजाय सिर्फ ‘हां’ में सिर हिला पाती है।
आचार्य तत्काल उसको दलिया मंगाकर खिलाते हैं। चाय देते हैं। उसके बाद वही पुलिस से संपर्क करते हैं। महाकाल मंदिर से नंबर लेकर थाने से संपर्क करते हैं और अंतत: पुलिस पहुंचकर उस बच्ची को वहां से ले जाती है। इसके आगे की कहानी उस बच्ची के लिए और बाकी लोगों के लिए संतोषजनक ही कही जाएगी। तत्काल उसका ऑपरेशन किया जाता है ताकि उसका जीवन बच सके और पुलिस प्रशासन उज्जैन के उन नागरिकों का धन्यवाद भी करती है जिन्होंने संकट में उसकी मदद की।
लेकिन इतने भर से तो एक समाज के रूप में सारे सवालों के जवाब नहीं मिल जाते। आखिर क्या कारण है कि एक लहुलुहान बच्ची गलियों में भटकती रही और लोग उसे एक भिखारी समझकर टालते रहे? जो संवेदनशीलता राहुल शर्मा ने दिखाई वो संवेदनशीलता बाकी लोगों के दिल में क्यों नहीं आयी? क्या किसी पीड़ित बच्चे या बच्ची के प्रति एक समाज के रूप में हम अपनी जिम्मेवारी भूल चुके हैं?
बच्चे, वृद्ध और अपंग तो समाज की सामूहिक जिम्मेवारी होते हैं। मदद की जरूरत पड़ने पर वहां दूसरा विचार भी नहीं किया जाता। लेकिन यहां इस मामले में महाकाल की नगरी के कुछ निवासी असफल साबित हुए। लेकिन असफल सिर्फ उज्जैन के वो रहिवासी ही नहीं साबित हुए जिन्होंने लहुलुहान बच्ची की वह मदद नहीं की जो राहुल शर्मा ने की। असफल तो प्रदेश सुदेश के बड़े नेता भी साबित हुए जो हर विषय पर राजनीति करते रहते हैं। उनके लिए एक निर्दोष और नाबालिग लड़की के साथ इतना जघन्य अपराध होना भी अपनी घटिया राजनीति करने का एक मौका बन गया। इसमें कोई दो राय नहीं कि मध्य प्रदेश पुलिस प्रशासन ने मुस्तैदी से काम किया और मुख्य आरोपी बताये जा रहे ऑटोरिक्शा चालक को गिरफ्तार भी कर लिया है। बच्ची को तत्काल जैसी चिकित्सकीय सुविधा चाहिए थी वह भी मिली हुई है। प्रदेश के गृहमंत्री ने भी पूरे मामले पर नजर बनाकर रखी। उज्जैन महाकाल थाने के इंसपेक्टर अजय वर्मा ने उस बच्ची के पढाने लिखाने और जीवन के दूसरे सभी खर्चे पूरे करने के लिए उसे गोद भी ले लिया है। लेकिन ‘मामाजी’ के तुरंत प्रतिक्रिया न देने से जो राजनीतिक चूक हुई उसको पहले कांग्रेस नेता कमलनाथ ने बयान देकर और बाद में कांग्रेस के ही नेता रणदीप सुरजेवाला ने अस्पताल पहुंचकर उभार दिया। कमलनाथ ने जहां पीड़िता को एक करोड़ रूपया देने की मांग की वहीं सुरजेवाला ने उस पीड़ित बच्ची की जाति सार्वजनिक कर दी। रेप जैसे गंभीर और संगीन किस्म के अपराध में कैसे व्यवहार करना चाहिए और बोलते समय क्या सावधानी रखी जानी चाहिए इसकी समझ संभवत: राजनीतिक बिरादरी में आना बाकी है। 2013 में दिल्ली का निर्भया रेप कांड हमारे समय की सबसे जघन्य और बर्बर घटना कही जा सकती है। उसी घटना ने इस देश में रेप को लेकर संवेदनशीलता बढ़ाई और दोषियों को कठोर सजा देने के लिए आनन फानन में कानूनी बदलाव किये गये।
बताने की जरूरत नहीं है कि उस समय केन्द्र में उसी कांग्रेस की सरकार थी जो निश्चित रूप से हर प्रकार की सरकारी जिम्मेवारी उठाते हुए पीड़िता और उसके परिवार को हर संभव मदद पहुंचाने का प्रयास कर रही थी। लेकिन उस समय भी कुछ दल ऐसे थे जो धरना प्रदर्शन और बयान देकर राजनीतिक रोटियां सेंक रहे थे। जो गलती उस समय कुछ नेताओं ने की, क्या आज वही गलती कांग्रेस के नेता नहीं कर रहे हैं? अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होती तो क्या सुरजेवाला इस तरह पीड़ित बच्ची की जाति बताकर राजनीतिक लक्ष्य साधते? यही वह समस्या है जिसे हमारे राजनीतिक दलों, ओपिनियन मेकर्स और एनजीओ सेक्टर को भी समझने की जरूरत है। बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार करने के कुछ मामलों में मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने ही मृत्युदंड तक का प्रावधान कर रखा है। निश्चय ही उज्जैन में जिस तरह का मामला सामने आया है उसमें दोषी साबित होने पर अगर आरोपी को मृत्युदंड दिया जाता है तो स्वयं उसके पिता को भी कोई आपत्ति नहीं है। वह तो खुले तौर पर कह रहे हैं कि अगर वह दोषी है तो उसे गोली मार दो। लेकिन दलों के नेता और उनके समर्थक जिस तरह से राज्य की सरकारों को देखकर वहां होनेवाले रेप पर राजनीति करते हैं वह रेप जैसा ही जघन्य अपराध कहा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रावधान किया है कि रेप जैसे संवेदनशील मामले में पीड़ित का नाम और पहचान किसी भी रूप में सार्वजनिक नहीं होना चाहिए। लेकिन राजनीति के रणदीपों ने इसका एक नया जरिया खोज लिया। उसकी जाति सार्वजनिक करके राजनीति करो। फिर जो कांग्रेस का विरोधी है वह कांग्रेस शासित राज्यों में होनेवाली रेप की घटनाओं को उठा लाता है और सवाल करता है कि कांग्रेस के नेता इस पर कुछ क्यों नहीं बोलते? जैसे अभी पिछले ही महीने अगस्त में राजस्थान के भीलवाड़ा में एक बच्ची के साथ एक जघन्य वारदात सामने आयी थी। बकरी चराने गयी एक बच्ची को ईंट भट्टी में जलाकर मार दिया गया था। आशंका जताई गयी कि उसकी हत्या से पहले उसके साथ अमानवीय कृत्य को अंजाम दिया गया और जलाकर मार दिया गया। उस समय भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने ट्वीट किया था कि “लानत है प्रदेश कांग्रेस सरकार पर जो महिला अपराधों पर दूसरे राज्यों को कोसते हैं लेकिन अपने राज्य में अपराध पर कोई नियंत्रण नहीं।”
यह सच है कि विपक्ष में बैठी पार्टियां रेप पर भी राजनीति करने से नहीं चूकती। कोढ में खाज यह है कि कई बार तो रेप विक्टिम की जाति और धर्म देखकर राजनीतिक नेता अपनी सक्रियता बढाते हैं। याद करिए उत्तर प्रदेश का हाथरस, उन्नाव, बुलंदशहर और लखीमपुर रेप कांड। इन सभी घटनाओं में कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी और शीर्ष नेता प्रियंका गांधी व्यक्तिगत रूप से पीड़िता और उसके परिवार तक पहुंची लेकिन बगल के राजस्थान में जब जब ऐसी घटना हुई एक में भी वो किसी पीड़िता से मिलने नहीं गयीं। रेप जैसे घिनौने अपराध में अगर राजनीतिक दलों के शीर्ष नेता दूसरे दलों को घेरने की बजाय अपने दल के मुख्यमंत्री या शासन पर सवाल उठायें तो ऐसे अपराधों को रोकने में ज्यादा मदद मिलेगी। रेप और मर्डर ये कोई ऐसे अपराध नहीं हैं जिस पर राजनीति की जानी चाहिए। लेकिन इसे हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां रेप पर भी राजनीति होती है।