Chandrayaan-3: रूस का चंद्र अभियान लूना-25 फेल हो गया. चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग के वक्त ये क्रैश हो गया. इससे ये साबित होता है कि अभी तक किसी भी देश ने लैंडिंग को लेकर महारत हासिल नहीं की है. रूस की ये नाकामी चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के जोखिमों को दर्शाती है. आपको बता दें कि चांद पर 1963 से 1976 के बीच 42 बार लैंड करने का प्रयास हुआ है. इनमें आधे प्रयास पूरी तरह से सफल नहीं हुए. आपको बता दें कि चांद पर अब तक 21 बार ही सफल लैंडिंग हुई है. इनमें छह मिशन में मून पर खुद इंसानों ने लैंड किया. 1966 से 1976 के बीच चांद पर 17 सफल लैंडिंग एक दशक में हुई थीं.
चीन ही एकमात्र ऐसा देश है, जिसने बीते 10 साल में तीन बार चांद पर सफल लैंडिंग की है.
अमेरिका ने अब तक छह क्रू मिशन चांद की सतह पर भेजा है. वहीं, सभी असफल कोशिशों के बाद भी दुनिया के बड़े देश नए सिरे से चांद पर पहुंचने प्रयास करते रहते हैं. अब सबसे सफल अमेरिका भी नए सिरे से यानी शून्य से शुरुआत करने जा रहा है. आखिर ऐसा क्या है कि चांद की सतह पर किसी अंतरिक्ष की सॉफ्ट लैंडिंग करना बेहद जोखिम भरा है. क्यों इतने प्रयासों के बाद भी सफल लैंडिंग हो लेकर आशंकाएं रहती हैं?
लैंडिंग के आखिरी 15 मिनट सबसे ज्यादा कठिन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के पूर्व चेयरमैन के.सिवन के अनुसार, 2019 में चंद्रयान-2 के वक्त लैंडिंग के आखिरी पड़ाव को ’15 मिनट्स ऑफ टेरर’ कहा गया था. इससे यह पता चलता है कि चांद पर अंतरिक्ष यान की सॉफ्ट लैंडिंग के अंतिम 15 मिनट सबसे ज्यादा अहम और जोखिम भरे हैं. इससे यह पता चलता है कि मिशन मून का आखिरी चरण सबसे अधिक कठिनाई भरा है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बीते चार वर्ष में भारत के साथ ही इजरायल, जापान और रूस ने चांद की सतह पर स्पेसक्राफ्ट उतारने का प्रयास किया है. इसमें से किसी को सफलता हाथ नहीं लगी है. सभी को लैंडिंग के आखिरी समय में दिक्कत आई. सभी देशों के स्पेसक्राफ्ट लैंडिंग के वक्त क्रैश हो गए.