तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले (Tiruvannamalai District) के दलितों के लिए आज का दिन ऐतिहासिक दिन साबित हुआ। इसकी वजह थी कि इस शहर के गांव का एक ऐतिहासिक मंदिर जहां पर दलित समाज को एंट्री नहीं दी जाती थी, वहां पर 100 साल बाद दलितों ने मंदिर में आकर प्रवेश किया।
तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले के चेलांगुप्पम गांव की है जहां पर यहां के प्राचीन मरियम्मन मंदिर में 100 साल बाद दलितों ने प्रवेश किया। अनुसूचित जाति समुदाय के 250 से अधिक सदस्यों ने बुधवार को दर्शन किया। जिसके बाद उनके चेहरे खुशी से खिल उठे।
खुशी से झूमे दलित
इसकी वजह है कि ये मंदिर है जहां पर इन दलितों के पूर्वज भी एंट्री नहीं कर सके थे, उसी मंदिर में लंबी लड़ाई लड़ने के बाद दलित समुदाय की जीत हुई और उन्हें मरियम्मन मंदिर में दर्शन करने का मौका मिला। अनुसूचित जाति समुदाय के 250 से अधिक सदस्यों ने पुलिस की सुरक्षा में पहले मंदिर में दर्शन किए इसके बाद विशेष समथुवा पोंगल समारोह का आयोजन किया, जिसके बाद दलित सुमुदया खुशी का एक धार्मिक जुलूस निकाला।
भारी संख्या में पुलिस को किया गया तैनात
एसपी ने बताया कि हमने कानून और व्यवस्था की व्यवस्था सुनिश्चित की। मंदिर में प्रवेश के संबंध में अब तक कोई समस्या नहीं हुई है। इस दौरान कोई अप्रिय घटना ना घटे इसलिए एसपी कार्तिकेयन के अलावा वेल्लोर एसपी मणिवन्नन और रानीपेट एसपी किरण श्रुति मौके पर मौजूद थे। पुलिस की मौजूदगी में दलित समुदाय के लोगों ने दर्शन किए ।
जानें कैसे हुआ ये संभव
श्चेलांगुप्पम के अनुसूचित जाति के युवाओं द्वारा तिरुवन्नामलाई के पुलिस अधीक्षक कार्तिकेयन को की गई एक शिकायत के बाद ये संभव हो पाया। ये वो युवक थे जिन्होंने उन्हें मंदिर में प्रवेश ना देने की शिकायत की थी। एसपी कार्तिकेयन ने बताया कि यहां के समुदायों के बीच तीन शांति वार्ता की और यहां की उच्च जाति के हिंदुओं ने इसे स्वीकार कर लिया और दलितों के मंदिर में प्रवेश करने पर विरोध नहीं किया।
जानें क्यों नहीं मिला 100 वर्षों तक इस मंदिर में प्रवेश
गांव के एससी सदस्यों ने बताया कि गांव का प्रचीन मरियम्मन मंदिर, जो 100 साल से अधिक पुराना है, दोनों समुदायों द्वारा बनाया गया था। आंतरिक विवाद उत्पन्न हो गए और उच्च जाति के हिंदुओं ने अनुसूचित जाति के सदस्यों से मंदिर में प्रवेश का अधिकार छीन लिया। वहीं समुदाय के एक सदस्य ने बताया कि जबकि हमने एक साथ मिलकर इस मंदिर का निर्माण किया था, लेकिन किसी समय, हमारे पूर्वजों को उच्च जाति के हिंदुओं द्वारा प्रवेश से वंचित कर दिया गया था। यह प्रथा जारी रही और हमने कभी भी इस मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश नहीं की और सालों बाद समुदाय के युवकों ने मंदिर में दर्शन के लिए अधिकार की लड़ाई लड़ी और हमारे पूर्वजों के बनाए मंदिर में प्रवेश मिला।