प्रदेश सरकार के तानाशाही रवैये से दुखी आए दिन अन्य पार्टियों के नेता अभय चौटाला के विचारों और उनकी ‘परिवर्तन पदयात्रा’ से प्रभावित होकर इनेलो संगठन में अपने साथियों सहित शामिल हो रहे हैं। प्रदेश की गठबंधन सरकार को अभय चौटाला का ये बढ़ता रुतबा बहुत ‘खल’ रहा है और अगले ही दिन अभय के इन सहयोगियों को सरकार द्वारा प्रताडि़त किया जाता है, दबाव बनाया जाता है, इनमें भय बैठाया जाता है, तो इन्हें अनचाहे ही वहीं लौटना पड़ता हैं जहां ये पहले से ही प्रदेश की सरकार का दंश झेल रहे थे।
जब दिल्ली दूरदर्शन पर महाभारत धारावाहिक आया करता था, तो हम उसमें देखा करते थे कि एक विशालकाय दानव- बकासुर, जिसका पेट भी बहुत बड़ा था, वो इंसानों की भी बलि ले लेता था! ऐसे में आसपास के वासियों ने विचारविमर्श किया कि इस राक्षस से मिलकर समझौता किया जाए कि हम पर हमला मत किया करो, हम हररोज आपको ढेर सारा खाना भेज दिया करेंगे। खैर, इस राक्षस को तो भीम सेन ने मार गिराया था मगर आज के सियासी बकासुरों का क्या? आज प्रदेश में किसका कितना वजूद है, इसका तोड़ तो ‘वोट की चोट’ से आने वाले लोकसभा/विधानसभा चुनावों में प्रदेश की जनता ही निकालेगी।
भावार्थ, इतनाभर ही है कि क्या सरकार में बैठे ऐसे दम्भी नेताओं की तादाद भी बकासुर की तरह कुछ ज्यादा ही नहीं बढ़ती जा रही है? जिम्मेदारी और फर्ज के प्रति सरकार में बैठे इन लोगों की मनोवृत्ति इतनी ज्यादा खराब हो चुकी है कि इनसे काम करवाने के लिए तो जनता द्वारा इन्हें रिश्वत देनी पड़ती है और ये सियासत में बैठे लोग काम न करने की सरकार से तनख्वाह ले रहे हैं। स्पष्ट शब्दों में यही तो है ‘सहूलियत की सियासत’।