विपक्षी एकता की राह में सबसे बड़ी बाधा प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर थी, जिस पर कांग्रेस ने अपने कदम पीछे खींच लिए.
साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अब कुछ महीनों का ही टाइम बचा है. जिसे देखते हुए सभी पार्टियों ने अपने सियासी दांव चलने शुरू कर दिए हैं.. इसी कड़ी में 8 जुलाई को बेंगलुरु में 26 विपक्षी दल इकट्ठा हुए. इसमें 2024 के लिए गठबंधन का ऐलान किया गया. जिसका नाम INDIA यानि इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव एलांयस रखा गया.
विपक्षी एकता की राह में सबसे बड़ी बाधा प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर थी, जिस पर कांग्रेस ने अपने कदम पीछे खींच लिए. दरअसल बैठक के दौरान कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि कांग्रेस कभी भी सत्ता हासिल नहीं करना चाहती थी. उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी का लक्ष्य संविधान, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की रक्षा करना है.
ये पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पद के दावे से खुद को अलग किया है. भारतीय राजनीति में ऐसे कई मौके आए हैं जब कांग्रेस ने खुद को पीछे करके अपने समर्थन में किसी और पार्टी के नेता को पीएम बनाया है. इस खबर में हम जानेंगे कि कांग्रेस ने कितनी बार पीछे हटकर प्रधानमंत्री बनाए हैं कब-कब सरकारें गिराई है.
1. चौधरी चरण सिंह – भारत के प्रधानमंत्री के कार्यकाल की लिस्ट में चौधरी चरण सिंह का नाम भले ही बहुत कम समय के लिए दर्ज हो, लेकिन भारतीय राजनीति में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. चौधरी चरण सिंह को किसान अपना सबसे बड़ा नेता मानते हैं.
इमरजेंसी के बाद साल 1977 में हुए आम चुनाव में चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे. लेकिन, उन्होंने दलित नेता जगजीवन राम के पीएम बनने की बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए अपनी दावेदारी वापस ले ली और मोरारजी देसाई को समर्थन दे दिया.
इंदिरा सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद गठबंधन की सरकार तो बन गई लेकिन इसमें कोई भी नंबर दो पर काम करने को तैयार नहीं था. मोरारजी की कैबिनेट में चरण सिंह और जगजीवन राम को उप-प्रधानमंत्री बनाया गया लेकिन इन तीनों नेताओं की आपस में बिल्कुल भी नहीं बनती थी. यही कारण है कि पीएम पद के शपथ लेने के दो साल से कम समय में ही केंद्र में गैर कांग्रेस सरकार का प्रयोग असफल हो गया और मोरारजी देसाई को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. हालांकि सरकार के गिरने की सिर्फ यही एक वजह नहीं थी.
चरण सिंह ने मोरारजी की सरकार गिरने के बाद इंदिरा गांधी के समर्थन से सदन में बहुमत साबित किया और 28 जुलाई, 1979 को उन्होंने समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियों और कांग्रेस (यू) के समर्थन से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली. लेकिन कांग्रेस ने कुछ ही महीनों में सरकार से समर्थन वापस ले लिया. चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहे.
2. चंद्रशेखर – साल 1986, 31 अक्टूबर, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में लोकसभा चुनाव हुए और राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारी बहुमत के साथ 400 से ज्यादा सीटें जीतीं, लेकिन 1989 के जब चुनाव हुए तब सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस बहुमत से दूर रह गई. उस वक्त बीजेपी और वाम दलों के समर्थन के साथ जनता दल के विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने.
विश्वनाथ प्रताप को सीएम बने एक साल भी नहीं बीता था कि लालू यादव ने बाबरी मस्जिद मुद्दे पर रथयात्रा निकाल रहे लालकृष्ण आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार करवा दिया. इस गिरफ्तारी के बाद भारतीय जनता पार्टी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और वीपी सिंह सरकार गिर गई.
जिसके बाद जनता दल के ही चंद्रशेखर 64 सांसदों के साथ अलग हो गए. उन्होंने अपनी समाजवादी जनता पार्टी बनाई और कांग्रेस के समर्थन के साथ प्रधानमंत्री बन गए. हालांकि चंद्रशेखर के पीएम बनने के सिर्फ तीन महीने ही बीते थे कि कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया. कांग्रेस ने उनपर राजीव गांधी की जासूसी करवाने का आरोप लगाया. अल्पमत में आने के बाद चंद्रशेखर को 6 मार्च 1991 को इस्तीफा देना पड़ा.
3. एचडी देवगौड़ा- साल 1996 में हुए लोकसभा चुनाव के रिजल्ट सामने आए तो उस वक्त किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिली थी. ऐसे में सवाल उठने लगे थे कि आखिर अगले पीएम कौन होंगे. क्योंकि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी इसलिए राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने का न्यौता दिया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता में आ गई. हालांकि बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण सिर्फ 13 दिनों में ही बीजेपी की सरकार गिर गई.
उस वक्त कांग्रेस के पास 141 सीटें थीं लेकिन वो सरकार चलाने से ज्यादा सपोर्ट देने और फिर सरकार गिराने में दिलचस्पी रखती थी. बीजेपी की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस के समर्थन से एचडी देवगौड़ा पीएम बने. लेकिन कुछ ही समय में कांग्रेस के अध्यक्ष सीताराम केसरी बने और उन्होंने अचानक सपोर्ट वापस ले लिया और सरकार गिर गई.
देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस लेने के पीछे एक किस्सा ये भी है कि कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी उस वक्त खुद भी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. देवगौड़ा सरकार गिरने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने बहुत सी पार्टियों को दिल्ली बुलाया और लेकिन उनके पीएम बनने की बात किसी ने नहीं मानी.
4. इंद्र कुमार गुजराल- 1996 में राजनीतिक अस्थिरता कुछ ऐसी थी कि दो साल के अंदर देश में तीन प्रधानमंत्री बने लेकिन किसी ने भी लोकसभा का कार्यकाल पूरा नहीं किया. भारतीय जनता पार्टी के अटल बिहारी वाजपेयी और यूनाइटेड फ्रंट के एचडी देवगौड़ा के बाद तीसरे पीएम बने थे इंद्र कुमार गुजराल. उस समय पीएम पद की रेस में कई दिग्गज नेता थे लेकिन ज्यादातर नेता अपने ही लोगों की साजिश के शिकार थे. ऐसे में पाकिस्तान में पैदा हुए इंद्र कुमार गुजराल को ये कुर्सी तोहफे में दी गई. इंद्र कुमार के पीएम बनने की सबसे दिलचस्प बात ये है कि जब प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम का निर्णय हुआ उस वक्त वो सो रहे थे.
दरअसल देवगौड़ा सरकार के गिरने के बाद सीताराम केसरी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे लेकिन उनके दावेदारी के बीच उनकी ही पार्टी आ रही थी. प्रणब मुखर्जी, शरद पवार, अर्जुन सिंह, जीतेंद्र प्रसाद जैसे लोग उनके पीएम पद की दावेदारी से सहमत नहीं थे. इसके बाद कांग्रेस के पास यूनाइटेड फ्रंट को समर्थन देकर सरकार बनवाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.
यूनाइटेड फ्रंट में भी प्रधानमंत्री पद की रेस में कई बड़े नाम शामिल थे. लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि ये नेता आपस में ही एक दूसरे के विरोधी थे. यही वजह थी कि कोई कद्दावर नेता पीएम पद नहीं हासिल कर पाया. इस बीच इंद्र कुमार गुजराल को पीएम बनाने की बात उठने लगी. उस वक्त इस फैसले के पक्ष में बहुत कम लोग थे. मुलायम सिंह भी गुजराल को पीएम नहीं बनाना चाहते थे. गुजराल के चयन में अच्छी बात ये थी कि मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी भी उन्हें पसंद करते थे.
इंद्र कुमार गुजराल के पीएम बनने की एक कहानी काफी मशहूर है कि दिनभर चली मीटिंग के दौरान किसी नाम एक नाम पर समहति नहीं बन पाई थी. जिसके बाद रात में गुजराल बैठक को छोड़कर सो गए. ऐसा कहा जाता है कि तेलगु देशम पार्टी के एक सांसद ने उन्हें नींद से जगाकर ये कहा कि उठिए अब आपको प्रधानमंत्री पद संभालना है. ये सुनते ही गुजराल ने खुश होकर उसे गले लगा लिया. इस तरह कांग्रेस के समर्थन के साथ गुजराल ने 21 अप्रैल 1997 को देश के 12वें प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.