भगवद गीता सहित हिंदू धार्मिक साहित्य का सबसे बड़ा प्रकाशक, आज भी 2 रुपए में उपलब्ध करवा रहा हनुमान चालीसा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में गीता प्रैस के शताब्दी वर्ष के समापन समारोह में भाग लिया।
उन्होंने गीता प्रैस की तुलना मंदिर से की। बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जो शायद गीता प्रैस के बारे में बहुत सी चीजें नहीं जानते होंगे। मसलन गीता प्रैस की शुरूआत कैसे हुई या इस प्रैस में प्रकाशित होने वाली पुस्तकों की संख्या अब तक कितनी हो चुकी है या रोजाना यहां कितनी पुस्तकें प्रकाशित होती हैं।
यूं हुई शुरूआत
गीता प्रैस का इतिहास 100 साल पुराना हो चुका है और यह कई उतार-चढ़ाव से भरपूर रहा है। कई बार गीता प्रैस को लेकर विवाद भी हुए और हाल ही में गांधी शांति पुरस्कार देने का ऐलान भी किया गया। बहुत कम लोगों को पता होगा कि गीता प्रैस की शुरूआत बड़े ही रौचक तरीके से हुई थी। राजस्थान के चुरू से संबंधित सेठ जयदयाल गोयंदका ने लोगों को बांटने के लिए कोलकाता की एक प्रिंटिंग प्रैस से गीता की 5000 प्रतियां प्रकाशित करवाईं। लेकिन तैयार की गई प्रतियों में कई अशुद्धियां रहीं, जिस बात को लेकर सेठ गोयंदका बेहद दुखी हुए। इसके बाद उन्होंने अशुद्धि रहित गीता तैयार करवाने के लिए अपना प्रैस लगाने का निर्णय लिया।
10 रुपए के किराए वाले मकान से हुई शुरूआत
जानकारी के अनुसार सेठ गोयंदका के निर्देश पर घनश्याम दास जालान और हनुमान प्रसाद पोदार ने 23 अप्रैल 1923 को गोरखपुर के हिंदी बाजार में एक किराए का मकान लिया। इस मकान में प्रैस की स्थापना की गई। 10 रुपए के किराए वाले इस मकान में बनाई गई प्रैस का नाम रखा गया गीता प्रैस। इसके बाद करीब 5 महीने बाद एक हैंडप्रैस प्रिंटिग मशीन खरीदी गई, जिसकी उस समय कीमत करीब 600 रुपए थी। काम बढ़ता गया, तो किराए का मकान छोटा पड़ने लगा। इसके बाद 12 जुलाई 1926 को शेषपुर में एक जगह खरीदी गई, जहां पर गीता प्रैस का विस्तार किया गया। इसकी कीमत उस समय करीब 10000 रुपए थी। यह जगह मौजूदा गीता प्रैस का ही एक हिस्सा था, लेकिन धीरे-धीरे जरूरत के अनुसार आसपास की जगह खरीदी जाती रही।
भगवद गीता से लेकर उपनिषद, पुराण और न जानें क्या-क्या
जानकारी के अनुसार गीता प्रैस का सबसे बड़ा योगदान यह है कि इसने हिंदू धार्मिक ग्रंथों को कम कीमत पर लोगों तक पहुंचाया। गीता प्रैस ने भगवद गीता, तुलसीदास की रचनाओं, उपनिषदों और पुराणों की करोड़ों कापियां बेचीं। करीब 100 साल के इस सफर में अब तक 42 करोड़ पुस्तकें छापी जा चुकी हैं। इनमें भगवद गीता की 18 करोड़ की प्रतियां भी शामिल हैं। इस प्रैस से रोजाना 70 हजार पुस्तकें प्रकाशित की जाती हैं।
हाईटैक मशीनों से 16 भाषाओं में होता है प्रकाशन
गीता प्रैस अब तक का सबसे बड़ा हिंदू धार्मिक साहित्य का सबसे बड़ा प्रकाशक है, जो 1923 से अब तक समय-समय पर अपडेट होता रहा है। प्रैस में जर्मन और जापानी हाईटैक मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है और यहां पर हिंदी और संस्कृत के अलावा 14 अन्य भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। बहुत से लोगों को यह नहीं पता कि गीता प्रैस एक ट्रस्ट के तौर पर काम करता है, जिसका लक्ष्य मुनाफा कमाना नहीं है। गीता प्रैस में अब भी हनुमान चालीसा की कीमत 2 रुपए के करीब है और जबकि यहां पर प्रकाशित हुई पहली पुस्तक की कीमत 1 रुपए थी। गीता प्रैस की तरफ से कल्याण नाम से एक मासिक पत्रिका भी निकाली जाती है। कई बार गीता प्रैस के बंद होने की नौबत तक आई, लेकिन एक ट्रस्ट के तौर पर यह फिर से चल निकली।