हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर अब राज्य के कुंवारों को लुभाने में जुटी है. सरकार वहां के अविवाहितों के लिए पेंशन योजना शुरू करने जा रही है और इसके लिए वहां के वित्त विभाग ने आंकड़े जुटाने भी शुरू कर दिए हैं. कहा जा रहा है कि भाजपा एक बड़ा वोट बैंक तैयार करने के लिए यह सब कर रही है, क्योंकि इस योजना के दायरे में 20 लाख मतदाता आएंगे. चुनाव के ठीक पहले इस तरह की घोषणा से सियासी तकरार बढ़ गयी है.
हरियाणा की सरकार प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों, सनातन विचारों के मुताबिक चलती है. ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ हमारा ध्येय-वाक्य है और जहां तक जो भी समुदाय किसी तरह पीछे रह गया है, उसे बढ़ाना ही हमारा काम है. हर वर्ग के कमजोरों-पिछड़ों को सहारा देना ही हमारा लक्ष्य है और आप कह सकते हैं कि जो अविवाहित हैं और उनकी अवस्था 45 की है, उनको वृद्धावस्था पेंशन 60 वर्ष से मिलनी शुरू होगी, ताकि 45 से 60 की जो समय-सीमा है, अंतराल है, उस बीच में उन्हें भी कुछ न्यूनतम सहायता मिल सके, यह विचार मुख्यमंत्री जी के मन में आया और उन्होंने संबंधित विभाग को कार्रवाई के लिए लिखा है.
हर निराश्रित के लिए हरियाणा सरकार
हरियाणा के अविवाहितों का जो आंकड़ा है, वह थोड़ा भ्रमित करनेवाला है, जैसी जानकारी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक 40 फीसदी लोग अविवाहित हैं, लेकिन वे कुल आबादी का 40 फीसदी हैं, या विवाह-योग्य जनों का 40 प्रतिशत हैं, यह भी तो सवाल है. इस पर खैर अभी हम विवाद में नहीं जा रहे. कुल मिलाकर जो अविवाहित हैं और जिनकी आय सालाना तीन लाख से कम है, उन्हें सरकारी सहायता दी जाएगी, जिसे सम्मान भत्ता कहा जाएगा.
समाज के केवल इसी वर्ग की हमने चिंता नहीं की है. जो 20 लाख का आंकड़ा बताया जा रहा है, अविवाहितों का, उसे भी देखना होगा. 60 वर्ष की आयु से ऊपर के 20 लाख बुजुर्ग आज वृद्धावस्था पेंशन पा रहे हैं, इसके अलावा जो विधवाएं हैं, ऐसी महिलाएं जिनके पति गायब हैं, अपराध कर जेल में हैं, दिव्यांग हैं, यानी जो पूरी तरह निराश्रित हैं, उनको भी पेंशन मिल रही है और उनकी संख्या 10 लाख के करीब है. इसी तरह जो तलाकशुदा महिलाएं हैं, उनको भी पेंशन मिलती है, मानसिक रिटार्डेड को भी मिलती है, विभिन्न तरह के दिव्यांग जो हैं, उनको भी पेंशन मिलती है. हरेक निराश्रित और असहाय को सरकारी कोष से कुछ सहायता दी जाती है. इसके पीछे हमारी सोच बस ये है कि जिनका कोई नहीं, उनको भी सरकारी कोष से मदद मिल जाए. इसके पीछे कोई सियासत नहीं है. साल में तीन लाख रुपए भी जो नहीं कमा पाते, उनको भी यह लगे कि सरकार उनके भी साथ भी खड़ी है, वे बिल्कुल अकेले नहीं है.
अंत्योदय है हमारी प्रेरणा
मनोहरलाल खट्टर जी की यह सोच है कि उन तक भी सरकार पहुंचे, जिन तक कोई नहीं पहुंचा. मुख्यमंत्री स्पष्ट तौर पर सोचते हैं कि कौन छूटा, कौन पीछे रह गया, तो उन तक सरकार पहुंचे. इसी सोच के साथ उन्होंने 45 से 60 वर्ष के बीच के कुंवारों के बारे में भी सोचा और यही उनकी खासियत है. हमें यकीन है कि इस पहल को दूसरे राज्य भी अपनाएंगे. इसके पीछे हमारी भावना प्राचीनकाल की सर्वे भवन्तु सुखिनः तो है ही, उसके साथ ही पंडित दीनदयाल का दिया हुआ मंत्र ‘अंत्योदय’ भी हमारी प्रेरणा है. पंडितजी ने कहा था कि हम कतार में सबसे पीछे खड़े व्यक्ति से शुरुआत करें, प्रधानमंत्री मोदी ने भी जो ‘सबका साथ, सबका विकासा, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ का जो मंत्र दिया है, उसके पीछे भी अंत्योदय ही है और हरियाणा सरकार के इस फैसले के पीछे भी प्रेरणा वही है.
बीमारों के साथ भी हरियाणा सरकार
जो संपन्न हैं, जो ताकतवर हैं, जो दिखते हैं, वे तो सबकी निगाहों में जो हैं, लेकिन जो कतार में पीछे छूटे हैं, उनके लिए भी तो हमें सोचना चाहिए. खट्टर सरकार ने एक और शुरुआत की है, जिसका अनुसरण जल्द ही और भी सरकारें करेंगे. कई बीमारियां ऐसी हैं, जिनका अब तक कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है, उन्हें लगभग लाइलाज मान लिया है. कैंसर समेत ऐसी 50 बीमारियों से जूझते मरीजों के लिए भी खट्टर सरकार ने पेंशन की व्यवस्था की है. ये बीमारियां जब तक व्यक्ति इनसे जूझता है, तो सार-संभाल में भी बहुत पैसा खर्च होता है. इसमें विभिन्न व्याधियों के लिए विविध श्रेणियां रखी हैं, जैसे दिव्यांगता से जूझ रहे व्यक्तियों को भत्ता तो समान मिलता है, लेकिन उनकी श्रेणियां हमने अलग रखी हैं.
समाज के हर वर्ग पर नजर
लाडली योजना के तहत हरियाणा सरकार वैसे माता-पिता को भी आर्थिक सहायता देती है, जिनके परिवार में केवल बेटियां ही हैं. उनकी ठीक से सार-संभाल हो सके, इसके लिए मनोहरजी ने योजना शुरू की है. श्रेणी दर श्रेणी, ऐसी कई योजनाएं हैं, जो किसी ने सोची नहीं, लेकिन हरियाणा में वह काम हो रहा है. जैसे, कुछ माता-पिता हैं, जो वृद्धावस्था में बिल्कुल अकेले हैं, एकाकी हैं. जिनके पास उनकी संतान नहीं है, विदेश में हैं या बहुत दूर रहते हैं. मनोहरजी ने ऐसे सभी लोगों की सूची बनाने को कहा. अभी हमारे पास ‘परिवार पहचान पत्र’ नामक एक प्लेटफॉर्म है, जिससे हम सबका पता ला सकते हैं कि कौन कैसे रहता है? जब उनकी सूची बन गयी, तो मनोहर जी ने कहा कि ऐसे वृद्धों के पास हो सकता है कि साधन हों, लेकिन उनका एकाकीपन दूर करने के लिए वॉलंटियर, सरकारी अधिकारी जाएं और उनकी खबर ले. इस भाव के साथ अलग तरह के कल्याण-कार्यक्रम शुरू किए गए. अभी मैंने बहुतेरी योजनाओं की चर्चा की. इनमें से अधिकांश की देखभाल तो सरकार का परिवार-कल्याण विभाग करता है, बाकी स्वास्थ्य विभाग इनमें से बीमारियों वाली योजना चलाता है.
वोट बैंक से नहीं है लेना-देना
हम हरेक चीज को वोटबैंक की निगाह से नहीं देखते. जब हम किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं, तो उसके वोट को नहीं देखते. हां, यह जरूर है कि एक सिटिजन के तौर पर हम उनके वोट की कद्र करते हैं, क्योंकि उसके वोट की कीमत भी उतनी ही है, जितनी पीएम या सीएम की है, किसी नेता प्रतिपक्ष की है. हां, हम लोक-कल्याण के लिए काम करते हैं, उस वक्त हमारे मस्तिष्क में वोटबैंक की चिंता नहीं होती है. ये योजनाएं लोकप्रियता बढ़ाने के लिए नहीं है, बल्कि लोक-कल्याण के लिए है. हम तो हरियाणा में घुमंतू जातियों के लिए भी काम कर रहे हैं.