India-North Korea Diplomatic Relation: उत्तर कोरिया और भारत के बीच के संबंधों को लेकर अभी भी ज्यादातर भारतीयों को ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद भारत ने एक बार फिर से उत्तर कोरिया के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं।
करीब साढ़े तीन साल बाद, भारत ने इस महीने की शुरुआत में उत्तर कोरिया में अपने डिप्लोमेटिक ऑपरेशन को फिर से शुरू कर दिया है। हालांकि राजनयिक कर्मचारी प्योंगयांग लौट आए हैं, लेकिन भारत ने अभी तक राजदूत को नियुक्त नहीं किया है।
एनके न्यूज को दिए गए एक बयान में, भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है, कि भारत का दूतावास चालू है, जिसमें कर्मचारियों का रोटेशन और नियमित गतिविधियां चल रही हैं। उत्तर कोरिया से भारत ने कब बुलाए थे कर्मचारी? नई दिल्ली ने 2 जुलाई 2021 को कोविड-19 महामारी के चरम पर होने के दौरान मास्को के रास्ते प्योंगयांग से अपने राजदूत अतुल मलाहारी गोत्सुर्वे को वापस बुला लिया था। लेकिन, कोविड महामारी पर नियंत्रण पाने के बाद भी राजनयिक संबंध बहाल नहीं हुए।
दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की बहाली पर कोई अपडेट न होने के कारण 19 सितंबर 2023 को मल्हारी गोत्सुर्वे को मंगोलिया में भारत का राजदूत नियुक्त कर दिया गया। उत्तर कोरिया अपनी नौकरशाही में देरी के लिए जाना जाता है और उसके साथ राजनयिक संबंधों में सुधार करना एक कठिन काम माना जाता है। उत्तर कोरिया का साम्राज्य, खुफिया जानकारी जुटाने के लिए अपने धोखेबाज तरीकों के लिए भी बदनाम है। इसलिए, वर्तमान में दूतावास में भेजे गए कर्मचारियों के पास मेजबान देश की तरफ से लगाए गए बगों को खोजने का बहुत बड़ा काम है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके, कि भारतीय कर्मचारियों की जासूसी नहीं हो रही है। अपने पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, डोनाल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन से तीन बार मुलाकात की थी, यहां तक कि उन्होंने ये तक कहा था, कि “हमें प्यार हो गया है”। ट्रिब्यून की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है, कि ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में लौटने के बाद भारत ने उत्तर कोरिया के साथ कूटनीति की बहाली में तेजी लाई। हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बिना किसी पूर्व शर्त के बातचीत फिर से शुरू करने की कोशिश की थी, लेकिन पिछले चार सालों में प्योंगयांग ने अमेरिका की कोशिशों को नजरअंदाज कर रखा था।
उत्तर कोरिया के साथ राजनयिक संबंधों की बहाली का भारत के लिए क्या मतलब है?
चूंकि उत्तर कोरिया के पास परमाणु बमों का भंडार होने के साथ-साथ हाइपरसोनिक मिसाइलों का विशाल भंडार है, इसलिए नई दिल्ली के लिए प्योंगयांग के साथ जुड़ना काफी महत्वपूर्ण है। उत्तर कोरिया के पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध हैं, जिसका मतलब है, कि भारत को भी इस एकान्त राज्य के साथ समान रूप से मजबूत संबंध सुनिश्चित करने होंगे। इससे यह सुनिश्चित हो सकता है, कि एडवांस टेक्नोलॉजी इस्लामाबाद के हाथों में न जाए। भारत ने इस वक्त तब डिप्लोमेटिक संबंधों को फिर से बहाल किया है, जब भारत उत्तर कोरिया के एक प्रमुख सहयोगी चीन के साथ भी भारत के संबंध थोड़े से सुधरे हैं। रूस और ईरान, जिनके साथ भारत के मजबूत संबंध हैं, वे भी उत्तर कोरिया के लिए महत्वपूर्ण सहयोगी हैं। उत्तर कोरिया के कट्टर प्रतिद्वंद्वी और पड़ोसी दक्षिण कोरिया ने भारत के साथ अपने संबंधों में लगातार सुधार किया है। सियोल ने हाल ही में नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में अपना राष्ट्रीय दिवस मनाया था। भारत और उत्तर कोरिया के कैसे रहे हैं संबंध? भारत ने कोरियाई युद्ध को खत्म करवाने में अपनी भूमिका निभाई थी। कोरियाई शांति वार्ता में भारत, सभी संबंधित पक्षों अमेरिका, तत्कालीन सोवियत संघ और चीन के साथ बातचीत में शामिल रहा है और साल 1952 में कोरिया पर भारतीय संकल्प को यूनाइटेड नेशंस में अपनाया गया था। भारतीय संकल्प के तहत संयुक्त राष्ट्र कमान, कोरियाई पीपुल्स आर्मी और चीनी पीपुल्स वॉलंटियर आर्मी ने साल 1953 में कोरियाई संघर्ष विराम समझौते पर दस्तखत किए थे। लेकिन, उत्तर कोरिया के मुकाबले, भारत ने दक्षिण कोरिया के साथ ज्यादा मजबूत संबंध बनाए हैं। भारत ने मई 2015 में दक्षिण कोरिया के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को अपग्रेड करते हुए इसे ‘स्पेशल स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप’ में बदल दिया था। हालांकि, उत्तर कोरिया के साथ भी भारत के 48 सालों से ज्यादा के पुराने सामान्य संबंध रहे हैं, लेकिन इसमें गर्मजोशी लाने की कोशिशें ना के बराबर की गईं हैं। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह वहां तानाशाही शासन का होना रहा है। लेकिन, एक्सपर्ट्स का मानना है, कि उत्तर कोरिया के साथ संबंध रखना भारत के लिए शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में लाभकारी साबित हो सकता है।