महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के साथ 48 सीटों पर होने वाले उपचुनावों में कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती है। एक तो कांग्रेस को बीजेपी का सामना करना है और दूसरा उसे INDI गठबंधन के अंदर भी अपनी पोजीशन बचाकर रखनी है।
हरियाणा और जम्मू रीजन में हार के बाद कांग्रेस की स्थिति एक बार फिर कमजोर होने लगी है। इन चुनावों में उसके पास अपने हालात मजबूत करने का अच्छा मौका भी होगा। हालांकि राज्यों में कई बार गठबंधन ही गले की फांस बन जाता है। गठबंधन के साथियों में वैचारिक मतभेद होने की वजह से भी कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
आगामी विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण इसलिए हैं क्योंकि इससे ना केवल बीजेपी के मुकाबले सबसे पुरानी पार्टी की स्थिति का पता लगेगा बल्कि गठबंधन के अंदर भी उसके दबदबे पर अच्छा खासा प्रभाव पड़ेगा। हरियाणा में हार का प्रभाव महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी के सीट बंटवारे में भी देखने को मिला। महाविका अघाड़ी के घटक दलों शिवसेना (UBT) और एनसीपी (SP) किसी भी स्थिति में कांग्रेस के साथ ज्यादा समझौता करने पर तैयार नहीं हुऐ। परिणाम यह हुआ कि कई सीटों पर गठबंधन के साथियों ने भी अपने प्रत्याशी उतार दिए। कांग्रेस 115 से 120 सीटों पर चुनाव लड़ने का लक्ष्य रखा था लेकिन फैसला हुआ कि सभी घटक दल 90-90 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। इसके अलावा 18 सीटों पर अन्य सहयोगी दल चुनाव लड़ेंगे।
झारखंड में भी कांग्रेस की नहीं चली
महाराष्ट्र के अलावा झारखंड में भी कांग्रेस को मन माफिक सीटें नहीं मिलीं। कांग्रेस 33 सीटों की मांग कर रही थी लेकिन उसे 29 सीटें दी गई हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 31 सीटों पर चुनाव लड़ा था। वहीं दो सीटों पर कांग्रेस और आरजेडी दोनों के प्रत्याशी मैदान में हैं।
अखिलेश यादव से भी चुनौती
कांग्रेस को अपने गठबंधन के साथी अखिलेश यादव से भी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को मौका देने से इनकार कर दिया है। वहीं मध्य प्रदेश की बुधनीीट पर भी समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी उतार दिया है। अखिलेश यादव महाराष्ट्र में भी कई सीटों पर प्रत्याशी उतारना चाहते हैं जहां मुकाबला कांग्रेस से हो सकता है।