उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव का मंगलवार को औपचारिक ऐलान हो सकता है. चुनाव आयोग महाराष्ट्र और झारखंड के साथ यूपी उपचुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है. उपचुनाव से सत्ता का खेल बनने और बिगाड़ने का फिलहाल कोई खतरा नहीं है, लेकिन 2027 का सेमीफाइल जरूर माना जा रहा है.
यही वजह है कि बीजेपी अपने सहयोगियों से ज्यादा खुद पर भरोसा कर रही है तो सपा भी अपने दम पर ही चुनावी बाजी जीतना चाहती है. इसके चलते एनडीए और इंडिया दोनों गठबंधनों में सीट शेयरिंग के फॉर्मूला पर असमंजस बना हुआ है.
यूपी की दस उपचुनाव वाली विधानसभा सीटों में से बीजेपी 9 सीटों पर तो खुद चुनाव लड़ना चाहती है और मीरापुर सीट अपने सहयोगी आरएलडी को देने का फैसला किया है. निषाद पार्टी की दो सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग को बीजेपी ने नजर अंदाज कर दिया है. इस तरह सपा ने 10 में से 6 सीट पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. कांग्रेस पांच सीटें उपचुनाव में मांग रही थी, लेकिन सपा अब उसे सिर्फ एक सीट देना चाहती है. इस तरह दोनों ही गठबंधन में सीट को लेकर सियासी रार छिड़ गई है. सपा से कांग्रेस नाराज है तो बीजेपी से निषाद पार्टी.
सपा-कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं
कांग्रेस और सपा की सियासी केमिस्ट्री 2024 के लोकसभा चुनाव में हिट रही. यूपी की 80 में से 43 सीटें सपा-कांग्रेस गठबंधन जीतने में सफल रही, लेकिन उपचुनाव में सीट शेयरिंग को लेकर बात नहीं बन पा रही. कांग्रेस पांच सीटें उपचुनाव में मांग रही थी, लेकिन सपा तैयार नहीं है. सपा ने कांग्रेस को भरोसे में लिए बगैर 6 सीटों पर कैंडिडेट के नाम का ऐलान भी कर दिया, जिसमें फूलपुर व मझवां सीट भी शामिल हैं, जहां कांग्रेस अपनी दावेदारी कर रही थी. इस तरह से कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था.
सीट शेयरिंग को लेकर फंसा पेंच
उपचुनाव की गाजियाबाद, खैर, मीरापुर और कुंदरकी सीट ही बची हैं. कांग्रेस को सपा सिर्फ गाजियाबाद सीट ही देना चाहती है जबकि वह मीरापुर और खैर सीट भी चाहती है. सपा किसी भी सूरत में मीरापुर सीट नहीं देना चाह रही. इसके चलते मामला उलझ गया है और कांग्रेस एक सीट से तैयार नहीं है. ऐसे में गाजियाबाद के साथ खैर सीट भी देने का ऑफर सपा की तरफ से दिया गया है, लेकिन कांग्रेस गाजियाबाद के बजाय मीरापुर सीट चाहती है. इसके चलते यूपी ही नहीं महाराष्ट्र में भी सियासी पेंच फंस गया है.
यूपी से लेकर महाराष्ट्र तक सीट शेयरिंग
कांग्रेस में एक धड़े की मंशा है कि पार्टी सभी दस सीट पर उपचुनाव लड़े, जबकि पार्टी में एक दूसरा धड़ा चाहता कि उपचुनाव में सपा को सभी सीटों पर वॉकओवर दे दिया जाए. इसके पीछे की स्ट्रेटेजी यह है कि सपा अगर यूपी में कांग्रेस के लिए उपचुनाव में सीटें नहीं दे रही है तो फिर कांग्रेस महाराष्ट्र में सपा के लिए सीटें नहीं छोड़ेगी. इस तरह महाराष्ट्र से लेकर यूपी तक में सीट शेयरिंग का मामला सपा और कांग्रेस के बीच उलझा हुआ है.
कांग्रेस सूबे में तैयार कर रही जमीन
लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस यूपी में अपनी सियायी जमीन को तैयार करने में जुट गई है. कांग्रेस ने सभी 20 उपचुनाव वाली सीटों पर संविधान सम्मान सम्मेलन के जरिए अपनी सक्रियता बढ़ाने की घोषणा की थी. कांग्रेस ने इसका आगाज प्रयागराज के फूलपुर सीट से किया था, जिसके बाद मंझवा, मीरापुर, सीसामऊ और खैर विधानसभा क्षेत्र में सम्मेलन हुआ. इसके अलावा कांग्रेस सभी 10 सीटों के लिए वरिष्ठ नेताओं को प्रभारी और पर्यवेक्षक नियुक्त कर रखा है, लेकिन सपा से उसकी मुराद पूरी नहीं हो रही है. ऐसे में कांग्रेस और सपा के बीच सियासी तनाव वाली स्थिति बनी हुई है. माना जा रहा है कि महाराष्ट्र के रास्ते ही यूपी उपचुनाव की सीटों का मामला सुलझेगा?
बीजेपी से निषाद पार्टी यूपी में नाराज
बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए में भी सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय नहीं हो सका. हालांकि, बीजेपी ने तय किया है कि दस में से 9 सीट पर वो खुद चुनाव लड़ेगी और एक सीट मीरापुर आरएलडी को दे रही है. आरएलडी मीरापुर और खैर सीट मांग रही थी, लेकिन मीरापुर सीट से ही उसे संतोष करना पड़ेगा. निषाद पार्टी 2022 में बीजेपी के साथ गठबंधन में रहते हुए, जिन दो सीटों पर चुनाव लड़ी थी, उसे मांग रही थी. इसमें एक सीट मिर्जापुर की मझवां और अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट है. मझंवा सीट को निषाद पार्टी 2022 में जीतने में कामयाब रही और कटेहरी सीट पर हार गई थी.
बीजेपी को करना पड़ेगा हार का सामना
उपचुनाव में एक भी सीट न मिलने से निषाद पार्टी नाराज है. निषाद पार्टी के मुखिया और मंत्री संजय निषाद ने कहा कि अगर हमें मझवां और कटेहरी सीट नहीं मिली तो बीजेपी को हार का सामना करना पड़ेगा. निषाद को सिम्बल का ना मिलना 2024 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी की कई सीट पर हार का कारण बना है. इसके बाद उन्होंने सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की है. माना जा रहा है कि सीट शेयरिंग को लेकर उन्होंने अपनी बात रखी है.
संजय निषाद ने बताया गठबंधन का धर्म
संजय निषाद ने आगे कहा कि सहयोगी दल की अभी बैठक होगी उसके बाद तय होगा कि कितनी सीट मिल रही है. बीजेपी को अपने गठबंधन का धर्म निभाना चाहिए ये दोनों सीट निषाद समाज को ही मिलनी चाहिए. मझवां सीट निषाद पार्टी किसी भी सूरत में नहीं छोड़ रही है बीजेपी भी अड़ी हुई है. निषाद पार्टी को साधकर रखने के लिए बीजेपी मझवां की जगह कटेहरी सीट देने का विकल्प दे सकती है. इस पर संजय निषाद को रजामंद होना पड़ेगा.
बीजेपी और सपा को खुद पर भरोसा
बीजेपी और सपा दोनों ही पार्टियां अपने-अपने सहयोगी दलों के बजाय खुद पर ज्यादा भरोसा कर रही है. इसीलिए सपा भी कांग्रेस को बहुत ज्यादा सियासी स्पेस देने के बजाय खुद बीजेपी से दो-दो हाथ करना चाहती है. इसी तरह बीजेपी भी समझती है कि निषाद पार्टी या फिर दूसरे सहयोगी दलों के बजाय खुद अपने चुनावी सिंबल पर वह चुनाव लड़े. इसलिए बीजेपी ने 10 में से 9 सीट पर खुद उपचुनाव लड़ने की प्लानिंग बनाई.
बीजेपी इस बात को 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों से सबक लिया है, उसे लगता है कि अपने कमल चुनाव निशान पर लड़ेगी तो जीत पक्की है, लेकिन किसी भी सहयोगी दल पर चुनाव लड़ती है तो जीत की गारंटी नहीं है. इसी तरह सपा को भी लग रहा है कि कांग्रेस का जमीनी स्तर पर संगठन कमजोर है और उपचुनाव में अगर उसे बहुत ज्यादा सीटें देती है तो जीत का ट्रैक रिकार्ड सही नहीं रहेगा. ऐसे में 2027 के चुनाव में भी कांग्रेस की डिमांड बढ़ जाएगी. इसी के मद्देनजर सपा बहुत ही रणनीति के तहत कांग्रेस को वो सीटें देना चाह रही है, जहां से उसके जीतने की संभावना कम हो.