हरियाणा में 5 अक्टबूर को होने वाले विधानसभा चुनाव में क्या कांग्रेस और AAP के बीच गठबंधन होगा, ये सवाल चर्चा में आ गया है क्योंकि एक दिन पहले हुई बैठक में राहुल गांधी ने इस गठजोड़ का संकेत दिया है.
बात चुनावी गठबंधन की उठी तो सीट शेयरिंग के फॉर्मूले भी सामने आने लगे हैं. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर राहुल गांधी किस रणनीति के तरह हरियाणा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ उतरने की प्लानिंग कर रहे हैं.
आजतक के खास शो ‘हल्लाबोल’ के दौरान जब अंजना ओम कश्यप ने बीजेपी नेता सुधांशु त्रिवेदी से सवाल किया कि ये गठबंधन आपको चुनौती देता है? तो उन्होंने कहा कि ये दोनों पार्टियों का अंदरुनी मामला है. कांग्रेस क्या तय करती है, आम आदमी पार्टी क्या तय करती है, इसमें हमारी भूमिका केवल एक ऑब्जर्वर की है.
कांग्रेस को चाहिए बैशाखी- त्रिवेदी
उन्होंने कहा, ‘मैं सियासी रूप विश्लेषण करू तो इसके 2-3 संकेत साफ हैं. यदि ये राहुल गांधी की तरफ से मैसेज है तो इससे साफ है कि कांग्रेस भलिभांति ये जानती है कि प्रचार चाहे जो भी हो लेकिन हरियाणा में वो भाजपा से अकेले दम पर मुकाबला नहीं कर सकती है और इसके लिए उसे आम आदमी पार्टी की बैशाखी चाहिए. दूसरा दिल्ली में इस गठबंधन की असफलता के बाद आम आदमी पार्टी ने बड़ी बेरूखी से इस बात की घोषणा कर दी थी कि ये गठबंधन लोकसभा के लिए था और विधानसभा में वो साथ नहीं रहेंगे.’
भूपेंद्र हुड्डा का जिक्र कर सुधांशु त्रिवेदी ने कही बड़ी बात
सुधांशु त्रिवेदी ने आगे कहा, ‘दूसरे कारण जो मुझे दिखते हैं, जब 2013 में पहली बार इनकी सरकार बनी थी तो वह गठबंधन की सरकार 49 दिन चली थी. तब बकायदा इन्होंने कहा था कि गलती हो गई अब कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेंगे.आम आदमी पार्टी जिनके लिए कहती थी कि वो सबसे भ्रष्ट और बेईमान हैं..अब फिर वो गठबंधन कर रहे हैं. तो उन पर ये बात लाइन लागू होती है कि ‘रफ्ता-रफ्ता वो मेरी हस्ती का साया हो गए.’ तीसरा मेरा मानना है कि ये कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति का भी एक रोल हो सकता है.’
बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, ‘ये सर्वविदित फैक्ट है कि भूपेंद्र हुड्डा जी अहमद पटेल के करीबी माने जाते थे और अहमद पटेल जी के करीबी की राहुल गांधी के कैंप में कोई ज्यादा अहमियत नहीं रहती है. तो इसका अर्थ ये भी होता है कि एक ऐसा गठबंधन बनाओ जिसमें कि उस चीज के नेतृत्व में दूर-दूर तक कोई संभावना ही न रह जाए कि भूपेंद्र हुड्डा कही से भी ये संदेश देने में सफल हो सकें कि वो नेतृत्व कर रहे हैं. इसका एक कारण कांग्रेस की अंदरुनी राजनीतिक समीकरण भी हो सकते हैं.’