दिल्ली की विवादास्पद शराब नीति और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मुख्य आरोपी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीबीआई को मंजूरी मिल गई है. सीबीआई ने राउज एवेन्यू कोर्ट में ED-सीबीआई मामलों की विशेष जज कावेरी बावेजा की अदालत के समक्ष दस्तावेज दाखिल किए.
यह दस्तावेज ट्रायल यानी मुकदमा चलाने की मंजूरी मिलने की जानकारी देने के लिए हैं.
सीबीआई को सरकार के सक्षम प्राधिकरण से मुकदमा चलाने की मंजूरी मिल गई है. सीबीआई ने केजरीवाल के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की है. बता दें कि CBI ने अरविंद केजरीवाल को 26 जून को गिरफ्तार किया था. केजरीवाल 27 अगस्त तक न्यायिक हिरासत में हैं.
सीलबंद लिफाफे में दाखिल किए दस्तावेज
अब राऊज एवेन्यू कोर्ट को 27 अगस्त को केजरीवाल के खिलाफ दाखिल सप्लीमेंट्री चार्जशीट पर संज्ञान लेने पर विचार करना है. संवैधानिक पद पर होने के चलते केजरीवाल पर मुकदमा चलाने के लिए सक्षम अथॉरिटी से मंजूरी लेना जरूरी है. CBI ने मंजूरी के दस्तावेज सीलबंद लिफाफे में कोर्ट में दाखिल कर दिए हैं.
क्या है मुकदमा चलाने का नियम
भ्रष्टाचार निवारण (PC) अधिनियम 1988 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 में किसी भी लोक सेवक पर मुकदमा चलाने से पहले उचित अथॉरिटी से अनुमति लेने का प्रावधान है. राज्य के राज्यपाल के निर्देशानुसार भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17ए और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 218 के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति दी जाती है.
मंजूरी मिलने के बाद ही कार्रवाई
BNSS की धारा 218 में कहा गया है कि यदि किसी जज, मजिस्ट्रेट या ऐसे सरकारी अधिकारी, जिसे सरकार की मंजूरी के बिना हटाया नहीं जा सकता उसके खिलाफ आरोप लगता है कि उसने सरकारी काम करते हुए कोई अपराध किया है, तो कोई भी कोर्ट उसके खिलाफ तब तक कार्रवाई नहीं कर सकता, जब तक कि सरकार से मंजूरी न मिल जाए.
दुष्कर्म के मामले में जरूरत नहीं
मुकदमा चलाने से पहले केंद्र सरकार (अगर केंद्र का मामला है) या राज्य सरकार (अगर राज्य का मामला है) से मंजूरी लेनी होती है. अगर मामला बलात्कार या महिलाओं के खिलाफ अपराध का है तो पूर्व मंजूरी की भी जरूरत नहीं पड़ती. भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 17A को 2018 में संशोधित किया गया था. तब इसमें कहा गया है कि किसी लोक सेवक द्वारा कथित रूप से किए गए किसी भी अपराध की जांच या पूछताछ करने से पहले पुलिस अधिकारी को उचित यानी सक्षम अथॉरिटी से अनुमति लेनी होगी. रिपोर्ट के मुताबिक, अथॉरिटी को 120 दिनों में जांच एजेंसी की अर्जी पर फैसला करना होता है. अगर 120 दिन में फैसला नहीं हुआ तो समझा जाएगा कि मंजूरी स्वयमेव मिल गई है.