Sukhoi Su-30MKI: आधुनिक दुनिया में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को सबसे सटीक और रडार को चकमा देने वाली मिसाइलों में गिना जाता है और ब्रह्मोस मिसाइल का निर्माण भारत और रूस ने किया है, जो रिकॉर्ड कामयाबी हासिल कर चुकी है।
अब ब्रह्मोस मॉडल के आधार पर, भारत और रूस, भारत में सुखोई एसयू-30एमकेआई (Sukhoi Su-30MKI) का उत्पादन को फिर से शुरू करने और इसे विदेशी खरीददारों को बेचने के लिए बातचीत कर रहे हैं।
भारतीय विमान निर्माता हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने पहले ही भारतीय वायु सेना (IAF) को 272 Su-30MKI की आपूर्ति पूरी कर ली है। और यह फाइटर जेट आने वाले कई दशकों तक देश की वायुशक्ति की रीढ़ बना रहेगा। भारत ने रूस से अलग अलग चरणों में 272 Su-30 खरीदने का कॉन्ट्रैक्ट किया था, जिनमें से 222 को HAL ने 2004 से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (ToT) के तहत अपने नासिक संयंत्र में असेंबल किया था। भारतीय वायुसेना के सुखोई बेड़े का भी एक बड़ा अपग्रेडेशन चल रहा है, जिसका मकसद इस फाइटर जेट को साल 2060 तक ऑपरेशन में बनाए रखने की योजना है। इसके अलावा, इनमें से 40 लड़ाकू विमानों को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ले जाने के लिए संशोधित किया जा रहा है। अपग्रेडेड सुखोई पैक का सबसे घातक पंच विमान के साथ एकीकृत तीन ब्रह्मोस एयर-टू-ग्राउंड मिसाइलें हैं।
सुखोई Su-30MKI: दुनिया में है दमदार मौजूदगी
सुखोई Su-30MKI एक ट्विनजेट मल्टीरोल एयर सुपीरियरिटी फाइटर जेट है, जिसका इस्तेमाल चीन, अल्जीरिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, युगांडा, वेनेजुएला और वियतनाम जैसे देश भी करते हैं। भारतीय वायुसेना ने पहले ही तमिलनाडु के तंजावुर एयर बेस पर अपने ब्रह्मोस से लैस स्क्वाड्रन ‘टाइगर शार्क्स’ को तैनात कर दिया है। HAL और रूसी सुखोई, इन जेट विमानों की दूसरे देशों में बेचने के लिए इसके नये सिरे से उत्पादन पर चर्चा कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, रूस नए ऑर्डर के बिना भी इस पहल का समर्थन करने के लिए सहमत है। वहीं, रिपोर्ट ये भी है, कि अगर नये ऑर्डर्स नहीं मिलते हैं, तो एचएएल की सुखोई असेंबली लाइन का ऑपरेशन बंद हो जाएगा। हालांकि, एयरक्राफ्ट ओवरहाल डिवीजन आईएएफ की लिस्ट में मिग सीरिज के लड़ाकू जेट और एसयू-30 एमकेआई का रखरखाव जारी रखेगा।
सुखोई का स्वदेशीकरण और अपग्रेडेशन
Su-30MKI में स्वदेशीकरण के लिए काफी कोशिशें की गई हैं, जिसके तहत 78% स्वदेशी घटक ही इस्तेमाल किए गए हैं। AL-31F इंजन को घरेलू स्तर पर अपग्रेड किया गया है, जिससे उनकी सेवा अवधि में 1,500 अतिरिक्त उड़ान घंटे की वृद्धि हुई है। विमान की इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं में भी उल्लेखनीय वृद्धि की गई है। भारतीय वायुसेना दुर्घटनाओं में नष्ट हो चुके सुखोई विमानों की जगह लेने और लड़ाकू विमानों की कमी को दूर करने के लिए 12 और सुखोई विमानों का ऑर्डर देने पर विचार कर रही है। निर्यात के लिए मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम के तहत Su-30MKI का उत्पादन करना एक रणनीतिक कदम होगा।
सुखोई को लेकर भविष्य की संभावनाएं क्या हैं?
Su-30MKI सौदा न केवल भारत की भू-राजनीतिक मजबूरियों के कारण हुआ, बल्कि 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद के झटकों से जूझ रहे रूसी रक्षा उद्योग को मदद देने के लिए भी हुआ। रूसी अर्थव्यवस्था खस्ताहाल थी, और रक्षा उत्पादन सुविधाएं सोवियत नियंत्रण के बाहर के विभिन्न देशों में बिखरी हुई थीं। इस स्तर पर, भारत ने रूसी रक्षा उद्योग को बचाने की कोशिश की। भारतीय वायुसेना पहले से ही MIG श्रृंखला के लड़ाकू विमानों को उड़ा रही थी, इसलिए भारत ने Su-30 फ़्लैंकर्स का विकल्प चुना। विमान को भारतीय वायुसेना के लिए अनुकूलित किया गया और फिर इसे Su-30 MKI नाम दिया गया था। 2000 में भारत के साथ तीन अरब डॉलर के सौदे ने नई दिल्ली को “डीप” लाइसेंस देने के लिए 20 वर्षों में SU-30MKI के सभी कंपोनेंट्स के स्वदेशी उत्पादन का रास्ता खोला, जिसमें ‘AL-31FP’ थ्रस्ट-वेक्टरिंग इंजन भी शामिल थे। भारतीय सौदे से कुछ वर्ष पहले रूस ने चीन को Su-30 विमान बेचे थे, लेकिन विमान निर्माण का लाइसेंस नहीं दिया था। जबकि, भारतीय वेरिएंट में विभिन्न मिसाइलों के साथ-साथ एडवांस इजरायली एवियोनिक्स और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली शामिल हैं।
निर्यात के लिए उत्पादन को फिर से शुरू करने से एचएएल की असेंबली लाइन को बनाए रखा जा सकता है, साथ ही भारत की रक्षा विनिर्माण क्षमताओं को भी बढ़ावा मिलेगा। यह सहयोग वैश्विक रक्षा बाजारों में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।