सिख धार्मिक संस्थाओं में सहजधारी सिखों को मतदान से दूर रखने के लिए 91 साल पुराने कानून में संशोधन का विधेयक सोमवार को संसद में पारित हो गया। सिख समुदाय की लंबे से चली आ रही यह मांग अगले साल पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पूरी कर दी गई है। सिख गुरुद्वारा (संशोधन) विधेयक, 2016 राज्यसभा की मंजूरी के लगभग एक महीने बाद लोकसभा में पारित हो गया।इस बिल पर हो रही चर्चा पर जवाब देते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा सहजधारी सिखों को धार्मिक संस्थाओं के चुनाव में मतदान का अधिकार नहीं देने की मांग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के सदस्यों और इसके पदाधिकारियों द्वारा की गई थी।
उन्होंने कहा, ‘एसजीपीसी के पदाधिकारी और सदस्यों की हमेशा यह मांग रही है कि जो सिख नहीं है उन्हें (कानून के तहत गठित बोर्ड और समितियों के सदस्य को चुनने के लिए होने वाले चुनाव में) मतदान का अधिकार नहीं मिलना चाहिए।एसजीपीसी की 2001 की जनरल असेंबली ने भी इस संदर्भ में एक प्रस्ताव पारित किया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि इसे सक्षम विधानमंडल द्वारा पारित कराए जाने की जरूरत है। राज्यसभा में भी यह बिल सर्वसम्मति से पारित हो गया।’सहजधारी सिखों पर नहीं है कोई धार्मिक प्रतिबंध जहां तक सिख धर्म के मूल सिद्धांतों की बात है तो सहजधारी सिखों पर कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं है। उनका यह नाम सिख गुरुद्वारा कानून, 1925 में तत्कालीन विशेष परिस्थितियों के तहत जोड़ा गया। 1944 में सहजधारियों को कानून के तहत बोर्ड और समितियों के चुनावों में सदस्य चुनने का अधिकार दिया गया था जिसे इस बिल में हटाने का प्रस्ताव किया गया है।