लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के कई दिग्गज नेता पार्टी का दामन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो रहे हैं. एक तरफ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे चुनावी रैली में केंद्र सरकार के कामों पर जमकर निशाना साध रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हीं के नेता पार्टी पर आरोपों की झड़ी लगाकर बीजेपी जॉइन कर रहे हैं. हाल ही में कांग्रेस से नाता तोड़ने वाले नेता गौरव वल्लभ न्यूज डिबेट्स में पार्टी की आवाज और पहचान रहे हैं.
गौरव वल्लभ ने भी गुरुवार को ये कहकर कांग्रेस छोड़ दी कि पार्टी दिशाहीन तरीके से आगे बढ़ रही है. वहीं महाराष्ट्र में पार्टी की आवाज बुलंदी से उठाने वाले संजय निरुपम से खुद कांग्रेस ने ही रिश्ता खत्म कर दिया है. कांग्रेस से नाता टूटने के तुरंत बाद संजय निरुपम ने भी कांग्रेस पर निशाना साधा और शीर्ष नेतृत्व पर ही कई धड़ों में बंटने का आरोप लगा दिया.
पहले जानते हैं कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले नेताओं को
चुनावी समर में कांग्रेस से रिश्ता तोड़ने वालों की लिस्ट लंबी है. अर्जुन मोढ़वाडिया, राजेश कुमार, अरविंद लदानी, केरल के पूर्व मुख्यमंत्री के. करुणाकरण की बेटी पद्मजा वेणुगोपाल, अजय कपूर, परनीत कौर (कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी), रोहन गुप्ता, रवनीत सिंह बिट्टू, संजय निरुपम, विजेंदर सिंह (बॉक्सर), गौरव वल्लभ ने तो बीते एक महीने में ही कांग्रेस पार्टी को अलविद कहा है.
महाराष्ट्र के दिग्गज कांग्रेस नेता संजय निरुपम तब से पार्टी से नाराज थे, जब से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने मुंबई की छह लोकसभा सीटों में से चार सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की थी. इसमें मुंबई उत्तर पश्चिम सीट भी शामिल थी. इस सीट पर संजय निरुपम की नजर थी. हालांकि वो अपने तल्ख रवैये को लेकर कई बार कांग्रेस के लिए असहज स्थिति बनाते रहे. वहीं पार्टी ने आखिरकार उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया तो उन्होंने भी सीधे शीर्ष नेतृत्व को ही आड़े हाथों ले लिया.
इन्होंने तो हाल ही में छोड़ा कांग्रेस का साथ
यूं तो कांग्रेस पार्टी का साथ छोड़ने वाले नेताओं का दौर 2014 से ही शुरू हो गया था, लेकिन 2024 के चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की संख्या में तेजी आई है. इस साल के शुरुआत से ही कई नेता महज तीन महीनों के भीतर ही कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं. इसमें, मिलिंद देवड़ा, पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार, बाबा सिद्दीकी, अशोक चव्हाण, विभाकर शास्त्री, अंबरीश डेर, अर्जुन मोढवाडिया, एस विजयधरानी ने कांग्रेस पार्टी का दामन छोड़ा था.
इससे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से एक साल पहले जून 2021 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस छोड़ने का उनका फैसला काफी विचार-विमर्श के बाद आया. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर मार्च 2020 में बीजेपी में शामिल हो गए थे. उन्होंने 18 साल कांग्रेस में बीताने के बाद पार्टी छोड़ी थी. सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद करीब 22 विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया था.
क्या कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर है रारा?
नेतृत्व की अस्पष्टता लंबे समय से कांग्रेस की कमजोर कड़ी मानी जाती रही है. इसी बीच कांग्रेस ने इस कमजोरी को दूर करने के लिए एक लंबे अंतराल के बाद किसी गैर नेहरू-गांधी परिवार के नेता को पार्टी का प्रमुख चुना. हालांकि संजय निरुपम की मानें तो इस मजबूत फैसले के बाद भी पार्टी में नेतृत्व को लेकर संघर्ष की बात सामने आती है. निरुपम ने बताया कि कांग्रेस में पांच पाव सेंटर बन गए हैं.
कौन हैं कांग्रेस के पांच पावर सेंटर
संजय निरुपम ने बताया कि पार्टी में पहला पावर सेंटर हैं सोनिया गांधी. दूसरा पावर सेंटर हैं राहुल गांधी. ये दोनों ही नेता कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं. वहीं उन्होंने तीसरा पावर सेंटर प्रियंका गांधी को बताया जो कांग्रेस की महासचिव और एक कद्दावर नेता हैं. निरुपम के मुताबिक चौथा पावर सेंटर पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे और पांचवां सेंटर संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल हैं.
आखिर क्यों छोड़ रहे हैं अपने ही साथ?
कांग्रेस पार्टी के नेताओं की मानें तो केंद्र की सत्ता में काबिज बीजेपी की सरकार केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर नेताओं पर दबाव बना रहे हैं, जिसके चलते वो पार्टी का साथ छोड़ कर बीजेपी जॉइन कर रहे हैं. हालांकि कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले पार्टी में कार्यकर्ताओं की सुनवाई न होना, विचारधारा में कन्फ्यूजन और नेतृत्व में अस्पष्टता को प्रमुख कारण मानते हैं. हालांकि मौजूदा चुनावी सीजन में टिकट न मिलना भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है.
क्या लोकसभा चुनाव में हो सकता है नुकसान
एक दल से दूसरे दल में नेताओं का आना-जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन आम चुनावों के ठीक पहले इतनी संख्या और इतने बड़े कद के नेताओं का जाना कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव में नुकसान पहुंचा सकता है. कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के सूत्र तले तमाम विपक्षी दलों को इकट्ठा करने की मुहिम में अग्रणी भूमिका निभाई थी, लेकिन जब अपने ही नेता उसका साथ छोड़ते जाएंगे तो इसका असर गठबंधन पर भी पड़ सकता है.