2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत से भारतीय जनता पार्टी डर गई थी और “आप” को अपने लिए एक चुनौती के रूप में देखने के लिए विवश हो गई थी।
पंजाब विधानसभा चुनाव में हार के बाद केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पूछा गया कि पंजाब में भाजपा की रणनीति क्यों फेल हुई तो अमित शाह ने कहा था कि पंजाब में हमारे पास अन्य विकल्प भी उपलब्ध हैं। समय आने पर उनका इस्तेमाल करेंगे।
उस समय मीडिया अमित शाह के बयान का अर्थ नहीं निकाल सका लेकिन अमित शाह जिस विकल्प की बात कर रहे थे वह यही था कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को तोड़ो। अमित शाह की रणनीति साफ है, अपनी लकीर बड़ी नहीं कर सकते तो विरोधियों की लकीर छोटी कर दो। इसलिए भारतीय जनता पार्टी पंजाब में कांग्रेस और आप पार्टी की लकीर छोटी करने में जुटी है। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी आज अपने सबसे बड़े राजनीतिक संकट से गुजर रही है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जेल में हैं, आप के बड़े नेता संजय सिंह भी जेल में है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंदकेजरीवाल को 24 घंटे पहले ही ईडी की कस्टडी में दूसरी बार 4 दिन के लिए जेल भेज दिया गया है।
आम आदमी पार्टी में आए इस भूचाल ने पंजाब में आप की जड़ों को हिला दिया है। जालंधर उपचुनाव में जीत कर पार्टी के इकलौते लोकसभा सांसद बने रिंकू और विधायक शीतल अंगुराल ने आप को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है। उधर पंजाब कांग्रेस के बड़े नेता और लुधियाना से दो बार के सांसद रवनीत बिट्टू ने भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पत्नी परणीत कौर जिन्होंने कांग्रेस के टिकट पर पटियाला से चुनाव जीता था, वह भी भाजपा की सदस्य बन गई हैं। ऐसे में पंजाब में उम्मीदवारों के अकाल से गुजर रही भाजपा ने कांग्रेस और आप के नेताओं को तोड़कर पंजाब की 13 मे से 7 सीटों पर अपने उम्मीदवार तय कर लिए हैं। कांग्रेस से आने वाले बिट्टू को लुधियाना, परनीत कौर को पटियाला, रिंकू को जालंधर सीट से टिकट मिलना तय है। भाजपा ने 2019 में पंजाब की दो सीटों गुरूदासपुर और होशियारपुर से जीत दर्ज की थी। इस बार भी होशियारपुर से सोमप्रकाश को टिकट मिलना तय है। गुरूदासपुर से भारतीय जनता पार्टी सनी देओल की जगह किसी और को टिकट देने पर विचार कर रही है। असल में भारतीय जनता पार्टी के टारगेट पर पंजाब दो कारणों से है। भाजपा का पंजाब में कोई जमीनी आधार नहीं है। ऐसे में उसके पास दूसरों दलों के नेताओं को अपने पाले में लाकर अपनी स्थिति को मजबूत करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। किसान आंदोलन के चलते पंजाब में भाजपा को फिलहाल कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है। पंजाब को टारगेट पर लेने की दूसरी बड़ी वजह आप पार्टी और कांग्रेस का मजबूत आधार है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पंजाब की 13 सीटों में से 8 सीटें कांग्रेस ने जीती थी और 2022 के विधानसभा चुनाव में 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीटे आप पार्टी ने जीती थी। भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को मालूम है कि 2019 में कांग्रेस की 52 सीटों में पंजाब की 8 और केरल की 15 सीटों का योगदान था। इन दो राज्यों से ही कांग्रेस को 23 सीटें मिली थी। ऐसे में पंजाब में कांग्रेस के कमजोर होने से लोकसभा में भी कांग्रेस कमजोर होगी। इधर आप पार्टी और कांग्रेस ने दिल्ली में गठबंधन कर लिया है। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली में पब्लिक सेटिमेंट अगर कुछ हद तक आप के पक्ष में गया तो भाजपा को एक सीट का नुकसान दिल्ली में हो सकता है। पंजाब में आप पार्टी सभी 13 सीटें जीतने की स्थिति में है।
पहले ही दिल्ली से 3 और पंजाब से 7 राज्यसभा सांसद आप पार्टी के हैं। ऐसे में पंजाब में यदि आप पार्टी 13 की 13 लोकसभा सीट जीत जाती है तो लोकसभा में 13 सांसद और राज्यसभा में 10 सांसद हो जाएंगे। इससे आम आदमी पार्टी का संसद में महत्व बढ़ जाएगा। भाजपा संसद की इसी स्थिति से बचना चाहती है और लोकसभा में आप की राह रोकने का हरसंभव प्रयास कर रही है। दरअसल, भाजपा पंजाब में अब दूसरे दलों के नेताओं को अपने पाले में लाकर पंजाब में अपनी स्थिति सुधारना चाहती है। पंजाब में अकाली दल और भाजपा का गठबंधन बहुत पुराना था। गठबंधन में हुए समझौते के तहत भाजपा 3 सीटों पर और अकाली दल 10 सीटों पर चुनाव लड़ती थी। किसान आंदोलन के कारण अकाली दल ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन तोड़ लिया। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को उम्मीद थी कि कांग्रेस से अलग हुए पंजाब के दिग्गज नेता अमरिंदर सिंह के साथ गठबंधन करने से उसे फायदा होगा लेकिन अमरिंदर किसी भी तरीके से भाजपा की कोई मदद नहीं कर सके। खुद भी विधानसभा चुनाव हारे और भाजपा के विधायकों की संख्या 2 से आगे नहीं बढ़ सकी। इसलिए अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद से भाजपा पंजाब में अपने लिए जमीन तलाश रही थी। यह जमीन उसे आप पार्टी और कांग्रेस के नेताओं में नजर आयी है। दिल्ली के बाद आप का आधार कहीं बढ़ा है तो वह पंजाब राज्य में है। 2014 के आम चुनाव में पंजाब से आप पार्टी के चार सांसद जीते थे। भगवंत मान संगरूर से, धर्मवीर गांधी पटियाला से, साधु सिंह फरीदकोट से और हरिंदर सिंह खालसा फतेहगढ़ साहिब से जीते थे। लेकिन 2019 में सिर्फ भगवत मान संगरूर से जीते थे। 2022 में मुख्यमंत्री बनने के बाद भगवत मान ने संगरूर से इस्तीफा दे दिया था और उपचुनाव में आप को हार का सामना करना पड़ा था लेकिन विधानसभा चुनाव परिणामों ने आप को पंजाब की सभी 13 सीटों पर जीतने की स्थिति में ला दिया। यही कारण था कि आप ने दिल्ली में तो कांग्रेस से गठबंधन किया लेकिन पंजाब में अकेले लड़ने का फैसला किया। लेकिन पंजाब में आप के सामने दोहरी चुनौती है। भारतीय जनता पार्टी आप में सेंध लगा रही है और कांग्रेस हर हाल में अपने 2019 के प्रदर्शन को दोहराने की कोशिश कर रही है। इसलिए आम आदमी पार्टी को पंजाब में कांग्रेस के साथ साथ भाजपा से भी दो-दो हाथ करने पड़ रहे हैं। केजरीवाल के जेल में होने के कारण पंजाब की पूरी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री भगवंत मान के कंधों पर है। भाजपा का पिछला प्रदर्शन बताता है कि पार्टी अपने दम पर कुछ खास करने की स्थिति में नहीं है, इस कारण तोड़फोड़ कर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। भाजपा और अकाली गठबंधन टूटने के बाद 2022 संगरूर उपचुनाव में भाजपा को 9.33 प्रतिशत और अकाली को 6.25 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा चौथे ओर अकाली दल पांचवे नंबर पर था। इसके बाद 2023 में जालंधर उपचुनाव में अकाली दल को 17.85 प्रतिशत और भाजपा को 15.19 प्रतिशत वोट मिले थे। अकाली तीसरे और भाजपा चौथे नंबर पर थी। आज तक पंजाब मेंभाजपा का वोट शेयर दहाई के आंकड़े में नहीं पहुंच सका है। अब केजरीवाल की गिरफ्तारी का पूरा फायदा भाजपा पंजाब में उठाना चाहती है। पंजाब में आप को तोड़कर पार्टी का पूरे देश में मनोबल तोड़ना चाहती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल के ईडी कस्टडी में होने और उसके बाद जेल जाने की पूरी संभावना के बाद पार्टी का मनोबल पहले से टूटा हुआ है। भाजपा बस उसको थोड़ा सा ओर मरोड़ना चाहती है। इसमें भाजपा कितनी सफल होती है या आम आदमी पार्टी अपने आप को कितना संभाल पाती है यह चुनाव परिणाम बतायेगा।