अयोध्या: सूर्यवंशी परम प्रतापी, पराक्रमी भगवान राघवेंद्र की भूमि में भारतीय शौर्य, शस्त्र समन्वय और भक्ति परंपरा की एक ही मंच पर शानदार झलक देखने को मिली। देशभर के 11 प्रदेशो से आए 250 से ज़्यादा कलाकारो ने पारंपरिक लोकनृत्यों, जिसमे नृत्य के साथ शस्त्र का समन्वय होता है, उसके शानदार प्रदर्शन से मौजूद लोगों को मंत्र मुग्ध कर दिया।
कलारी पट्टू, थांग टा, गतका का शानदार प्रदर्शन देख लोग हुए स्तब्ध
शास्त्र की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने की अवधारणा सनातन संस्कृति की पहचान है।इसी विरासत को पीढ़ियों से लोक ने अपने संस्कारो में संजो कर रखा है। केरल के कलरिपट्टू से लेकर मणिपुर के थांग टा,गुजरात के तलवार रास से पंजाब का गतका इसी का प्रमाण है।
कार्यक्रम का आरम्भ छाऊ नृत्य शैली में बंगाल के और शंख वादन से ओडिशा के कलाकारो ने किया। मल्लखंब की प्रस्तुति में कलाकारो ने शीर्षासन और योग कि मुद्राएं दिखाई वही समूह में किए गए आसान और पिरामिड ने अचंभित कर दिया।
ओडिसा के सुनील साहू ने शंख वादन से युद्ध के आरंभ और अंत में विराम के लिए किया जाता था,उसका प्रदर्शन किया
उत्तर प्रदेश के कलाकारो ने महोबा कि लड़ाई आल्हा सुनाया तो पूरा पांडाल शौर्य से भर गया।
किसी भी सांस्कृतिक मंच पर आजतक इतने लोक कलाकारो ने इस तरह की अनूठी प्रस्तुति नही दी थी। कलाकारो के रंग बिरंगे परिधानों और रोमांचक करतबों से पूरा पांडाल विस्मित था। कलारिपट्टू में कलाकारो का हवा में कलाबाज़ियां कहते हुए वार करना महाराष्ट्र की महिलाओ द्वारा लाठी और तलवार के सहारे एक साथ कई पुरुषों को पराजित करना सभी को हर्षित कर रहा था।
पंजाब के जांबाजों को गतका उनकी युद्ध शैली को प्रतिबिंबित कर रहा था तो मणिपुर के कलाकारो का थांग टा अपने कौशल से चकित कर रहा था। तेलंगाना का कर्रा सामू में चपलता से शस्त्रों का प्रहार और बचाव माहौल में शौर्य को दिखा रहा था तो गुजरात की महिलाओ का तलवार पर करतब हतप्रभ कर रहा था।
कार्यक्रम देखने आए लोगों ने कहा कि अपनी परंपराओं को संरक्षित करके मुख्यधारा में लाना हम सबका कर्तव्य है। इससे लोगों को अपनी समृद्ध संस्कृति को जानने का अवसर मिलेगा।