अयोध्या में 22 जनवरी को श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व काशी के वैदिक विद्वान कुछ विशिष्ट अनुष्ठान संपादित कराएंगे। इनमें प्रायश्चित का भी विधान है।
इस अनुष्ठान की शुरुआत 16 जनवरी से होगी। किसी भी निर्माण के दौरान अंजाने में बहुत से सूक्ष्म व अति सूक्ष्म जीवों की हत्या हो जाती है। इसके बारे में काम कराने वाले को ज्ञात भी नहीं होता है। ऐसे में यदि घर है तो गृह प्रवेश और यदि देवालय है तो मुख्य विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व प्रायश्चित किया जाता है। अयोध्या में यह अनुष्ठान करने के लिए प्राणप्रतिष्ठा के मुख्य आचार्य पं. लक्ष्मीकांत दीक्षित के पुत्र पं. अरुण दीक्षित 13 जनवरी को अयोध्या रवाना होगे। उनके साथ 21 वैदिक ब्राह्मणों का दल भी जाएगा।
प्रायश्चित्त अनुष्ठान से पापी की शुद्धि भृगु संहिता विशेषज्ञ पं वेदमूर्ति शास्त्रत्त् ने बताया कि सनातन धर्म में प्रायश्चित वह कृत्य है जिसे करने से मनुष्य के पाप समाप्त हो जाते हैं। जैसे क्षार से वस्त्रत्त् की शुद्धि होती है वैसे ही प्रायश्चित्त का अनुष्ठान करने से पापी की शुद्धि होती है।
प्रायश्चित के हैं कई प्रकार
पुण्य से इष्टसाधन एवं पाप से अनिष्ट होता है। शास्त्रत्तें में भिन्न प्रकार के कृत्यों का विधान है। किसी पाप के प्रायश्चित में व्रत, किसी में दान, किसी में व्रत और दान दोनों का विधान है। लोक में भी नियम विरुद्ध कोई काम करने पर मनुष्य को समाज से निर्धारित कुछ कर्म करने पड़ते हैं। तब वह समाज में पुन व्यवहार योग्य होता है। इस प्रकार के कृत्यों को भी प्रायश्चित कहते हैं।