16 सितंबर को पाकिस्तान के चीफ जस्टिस उमर अता बांदियाल रिटायर हो गये, लेकिन जाते जाते भी पाकिस्तान की राजनीति में खेल कर गये। वैसे तो अपने पूरे कार्यकाल में वो इमरान खान के समर्थन में दिये गये फैसलों के लिए ही जाने जाते रहे, लेकिन जाते जाते 15 सितंबर को तीन जजों की बेंच में उन्होंने जो फैसला दिया उसके कारण पाकिस्तानी राजनीति के धुरंधरों की नींद उड़ गयी है।
जाते जाते उमर अता बांदियाल ने फैसला दे दिया कि जनसेवा (राजनीति) में जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं उनकी फाइलों को नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (नैब) द्वारा दोबारा से खोला जाए। अब नवाज शरीफ, शहबाज शरीफ, आसिफ जरदारी और राणा सनाउल्लाह जैसे नेताओं के आपराधिक मुकदमों की फाइलें फिर से खुलेंगी। पहले ही बांदियाल ने इशारा किया था कि वह नैब के मामले में जल्द ही शॉर्ट एंड स्वीट फैसले करेंगे। लेकिन उनका यह शॉर्ट एंड स्वीट फैसला पाकिस्तान के कई नेताओं के लिए बहुत कड़वा साबित होगा।
दरअसल पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और तहरीक ए इंसाफ पार्टी के नेता इमरान खान ने सुप्रीम कोर्ट में पाकिस्तानी नेशनल असेम्बली के नैब कानून में उस संशोधन के खिलाफ अपील दायर की थी जिसमें इन बड़े नेताओं के खिलाफ नैब के केस बंद करने का प्रावधान किया गया था। अब यह बांदियाल का इमरान प्रेम है या फिर उनके खिलाफ रहे पीडीएम नेताओं के प्रति उनकी खुन्नस, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का पाकिस्तान की राजनीति में बहुत असर होने वाला है। इस फैसले में नैब को यह आदेश दिया गया है कि एजेंसी एक सप्ताह के अंदर सभी नेताओं के भ्रष्टाचार के मामलों की फाइलें संबंधित विभाग या कोर्ट तक पहुंचाए। पाकिस्तान में नैब का पूरा नाम नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो है, जो हमारी सीबीआई की तरह ही वहां काम करती है।
पीटीआई के चेयरमैन इमरान खान ने पीडीम द्वारा नैब के कानून में संशोधन कर सार्वजनिक जीवन में काम कर रहे लोगों को नैब की जांच परिधि से बाहर करने के विधेयक पास होने को चुनौती दी थी। इमरान की अपील पर सुनवाई तो पहले ही हो गई थी, लेकिन जस्टिस बांदियाल ने इस फैसले को सुनाने का समय अपने कार्यकाल के अंतिम दिन के लिए रखा था। तीन जजों की बेंच में जस्टिस बांदियाल के अलावा जस्टिस एजाजुल अहसान और जस्टिस सैय्यद मंसूर अली शाह शामिल थे।
पीटीआई के चेयरमैन इमरान खान ने पीडीम द्वारा नैब के कानून में संशोधन कर सार्वजनिक जीवन में काम कर रहे लोगों को नैब की जांच परिधि से बाहर करने के विधेयक पास होने को चुनौती दी थी। इमरान की अपील पर सुनवाई तो पहले ही हो गई थी, लेकिन जस्टिस बांदियाल ने इस फैसले को सुनाने का समय अपने कार्यकाल के अंतिम दिन के लिए रखा था। तीन जजों की बेंच में जस्टिस बांदियाल के अलावा जस्टिस एजाजुल अहसान और जस्टिस सैय्यद मंसूर अली शाह शामिल थे।
अब पाकिस्तान की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है, क्योंकि राजनीति में सक्रिय सभी प्रमुख नेताओं पर किसी न किसी मामले में केस चल रहा है। इमरान खान को राजनीति से बाहर करने का उपक्रम पहले से ही चल रहा है। 9 मई के हंगामें के बाद इमरान को चुनाव लड़ने से ही अयोग्य ठहराए जाने की संभावना है। उनके खिलाफ मिलिट्री कोर्ट में मुकदमा भी चलने वाला है। अब जस्टिस बांदियाल की इस बेंच के फैसले ने इमरान के साथ साथ उनके विरोधियों को भी अदालत के चक्कर लगाने पर मजबूर कर दिया है। अब शरीफ परिवार को उम्मीद नये चीफ जस्टिस से है। जस्टिस काजी फैज ईसा नये चीफ जस्टिस बन रहे हैं। उनकी ना तो बांदियाल से बनती थी और ना ही इमरान खान से ही उनकी कोई सहानुभूति है। पीडीएम की पूर्व सरकार ने जस्टिस ईसा को संसद में बुलाकर सम्मान किया था। लेकिन उनकी बेंच बनने और मामले को दायर होते होते समय लग जाएगा। फिर उनके पास तीन जजों की बेंच के इस फैसले के एकदम से उलट निर्णय देना आसान नहीं होगा। क्योंकि इस फैसले से लगभग 2000 बंद केस खुल जाएंगे। इतनी बड़ी संख्या में दायर केसों का निपटारा आसान नहीं होगा।
बांदियाल के फैसले के बाद अब यह कहना मुश्क़िल होगा कि नवाज शरीफ की अब वतन वापसी होगी कि नहीं। अभी कुछ दिन पहले ही नवाज के 21 अक्टूबर को वतन लौटने की तारीख तय की गई थी।
पाकिस्तान में चुनाव एक दम सिर पर खड़े हैं। राष्ट्रपति आरिफ अल्वी पूरे दम से इस प्रयास में लगे हैं कि नवंबर में चुनाव हो जाए। पाकिस्तान चुनाव आयोग भी ज्यादा लंबे समय तक चुनाव टालने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान की आर्थिक हालात खराब होती जा रही है। देश में एक स्थाई सरकार नहीं होने के कारण फैसलों में काफी दिक्कतें आ रही हैं। जनता भी हर रोज जद्दोजहद कर रही है। मुस्लिम लीग को उम्मीद थी कि नवाज शरीफ यदि समय से वतन वापस आकर चुनाव को संभाल ले तो सरकार बन सकती है। फिलहाल तो बांदियाल ने उस पर ग्रहण लगा दिया है।