Women Reservation Bill: केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर, 2023 को संसद का विशेष सत्र बुलाया है। जिसे लेकर 31 अगस्त को केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि विशेष सत्र की पांच बैठकें की जायेंगी। वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस विशेष सत्र के दौरान महिला आरक्षण विधेयक भी केंद्र सरकार द्वारा पेश किया जा सकता है।
दरअसल कई सालों से ये बिल लोकसभा में लंबित पड़ा है। 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा ने महिला आरक्षण विधेयक पारित कर दिया था। जबकि लोकसभा ने कभी भी महिला आरक्षण विधेयक पर मतदान नहीं किया था।
क्या है महिला आरक्षण विधेयक?
महिला आरक्षण विधेयक में महिलाओं के लिये लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33% सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है। वहीं आरक्षित सीटों को राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में क्रमिक रूप से आवंटित किया जा सकता है। इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण समाप्त हो जायेगा।
अगर ये विधेयक लागू होता है तो क्या होगी स्थिति?
लोकसभा में सांसदों की संख्या 543 है। वहीं महिला सांसदों की संख्या 78 है, इसका मतलब लगभग 14% महिला सांसद है। जबकि राज्यसभा में 250 में से 32 सांसद ही महिला हैं यानी 11% हैं। वहीं मोदी सरकार में महिलाओं की हिस्सेदारी 5% के आसपास है। अगर ये विधेयक लागू हो जाता है तो लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 179 तक हो जायेगी।
वहीं राज्यों की विधानसभाओं में महिला विधायकों को लेकर दिसंबर, 2022 में केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजीजू ने संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी को लेकर एक आंकड़ा पेश किया था। उन्होंने बताया था कि आंध्र प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, केरल, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में महिला विधायकों की संख्या सिर्फ 1% है। जबकि 9 राज्यों में महिला विधायकों की संख्या 10% से भी कम है। इन राज्यों में लोकसभा की 200 से अधिक सीटें हैं। वहीं बिहार, यूपी, हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में महिला विधायकों की संख्या 10% से अधिक लेकिन 15% से कम है।
पहली बार कब आया था महिला आरक्षण बिल?
राजनीति में महिलाओं के आरक्षण की बात तो देश की आजादी से पहले से हो रही थी। लेकिन, साल 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी, तब ड्वीड इक्वेलिटी नाम की एक रिपोर्ट आयी थी जिसमें महिलाओं की स्थिति को लेकर उनके आरक्षण की बात कही गयी थी।
● महिला आरक्षण विधेयक पहली बार देश में साल 1996 में एचडी देवेगौड़ा सरकार द्वारा पेश किया गया था। ये विधेयक केंद्र सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया था। लेकिन, उनकी सरकार इसे पास नहीं कर सकी। इसके बाद ही देवगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गयी और 11वीं लोकसभा को भंग कर दिया गया।
● इसके बाद साल 1998 के जून महीने में एनडीए सरकार के दौरान जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। तब 12वीं लोकसभा में 84वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश किया। लेकिन, नतीजा कुछ नहीं निकला। इसके बाद वाजपेयी की नेतृत्व वाली सरकार अल्पमत की वजह से गिर गयी।
● नवंबर, 1999 में एक बार फिर से एनडीए सरकार ने 13वीं लोकसभा में इसे फिर से पेश किया। इस बार भी सरकार इसे सदन से पास नहीं करा सकी। इसके बाद, विधेयक को साल 2003 में संसद में दो बार पेश किया गया था पर कोई सफलता नहीं मिली।
● वहीं साल 2004 में यूपीए सरकार ने इसे अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में शामिल किया था। इसके बाद मई 2008 में महिला आरक्षण बिल राज्यसभा में पेश हुआ और उसे कानून और न्याय से संबंधित स्थायी समिति के पास भेजा गया। वहीं दिसंबर, 2009 में समिति ने अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। जहां सपा, जेडीयू और आरजेडी ने इसका भारी विरोध किया था।
जब संसद में फाड़ दी बिल की कॉपी?
साल 1998 में जब संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया था। तब जहानाबाद के राजद सांसद सुरेंद्र यादव इतना गुस्सा गये थे कि लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी की सीट पर जा पहुंचे। वहीं तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के हाथों से यह बिल की कॉपी लेकर फाड़ दी थी।
इसी तरह साल 2008 में तत्कालीन कानून मंत्री एचआर भारद्वाज राज्यसभा में ‘नया और बेहतर’ महिला आरक्षण विधेयक पेश करने जा रहे थे। तब संसद के बाहर उनके ही सहयोगी नेता इसका विरोध कर रहे थे। तब भी सपा के सांसदों द्वारा बिल छीनने की कोशिश की गयी थी।
इस बिल के सबसे बड़े विरोधी शरद यादव थे
साल 1996 में महिला आरक्षण विधेयक रखा गया तब जदयू के नेता शरद यादव ने लोकसभा में कहा था कि इस विधेयक के जरिए क्या केंद्र सरकार परकटी महिलाओं को सदन में लाना चाहती हैं? परकटी महिलाएं हमारी ग्रामीण महिलाओं का प्रतिनिधित्व कैसे करेंगी?
वहीं 2009 में शरद यादव ने इस महिला आरक्षण बिल को लेकर ऐलान कर दिया कि ये बिल उन्हें स्वीकार नहीं है। वह सदन में जहर खा लेंगे लेकिन महिला आरक्षण बिल को कभी पास नहीं होने देंगे। साल 2009 में कांग्रेस इस बिल को पास करा लेती लेकिन संसद में लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव के विरोधों के कारण केंद्र सरकार को पीछे हटना पड़ा।
इस बिल का विरोध आखिर क्यों?
दरअसल इस महिला आरक्षण विधेयक को लेकर विरोधियों का मानना है कि इससे केवल शहरी महिलाओं को फायदा होगा। इससे ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी नहीं हो पायेगी। इसलिए इसमें दलित और ओबीसी महिलाओं के लिए कोटे के अंदर कोटे की मांग की गयी थी।
साल 2008 में सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को सीधा राज्यसभा में पेश किया। वहीं कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने दिसंबर 2009 में विधेयक को पारित करने की सिफारिश की। इसे फरवरी 2010 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दे दी गयी। इन सब के बाद बिल, तब लोकसभा में पहुंचा। जहां से कभी भी यह बिल पास नहीं हो सका। वहीं 2014 में सदन भंग हो गया और यह बिल लटका रहा।