अविश्वास प्रस्ताव पर भाषण के दौरान पीएम मोदी ने लोकसभा में मिजोरम में हुई उस घटना का जिक्र किया जिसमें भारतीय वायुसेना ने इंदिरा गांधी के आदेश पर मिजोरम में बम बरसाए थे। कई किताबों में इसका जिक्र है। पीएम के भाषण के बाद लोग इस बारे में जानने को उत्सुक हैं और सर्च कर रहे हैं ?
जानिए आखिर उस वक्त हुआ क्या था…
PM Modi on Mizoram Air Force Attack: जब से मणिपुर में जातीय हिंसा शुरू हुई तभी से विपक्ष पीएम नरेन्द्र मोदी पर हमलावर है। विपक्ष का कहना है कि पिछले तीन महीनों से पूर्वोत्तर का एक राज्य हिंसा की आग में जल रहा है, लेकिन पीएम के मुहं से एक शब्द नहीं निकला। मणिपुर हिंसा पर पीएम का पहला बयान उस दिन आया जब मानसून सत्र शुरू होने वाला था। पीएम मोदी ने उस दिन दरिंदों की भीड़ द्वारा दो महिलाओं के साथ हुए अत्याचार पर कहा था- इस घटना ने पूरे देश को शर्मसार किया है। इसके बाद कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव के जरिए मणिपुर हिंसा पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की। पीएम मोदी जवाब देने के लिए आए तो उन्होंने मिजोरम की एक घटना का जिक्र कर कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने कहा कि पूर्वोतर हमारे जिगर का टुकड़ा है। इनको अंदाजा नहीं है। इसके बाद उन्होंने मिजोरम में हुई एक घटना का जिक्र किया।
पीएम मिजोरम पर क्या बोले
अविश्वास प्रस्ताव पर अपने भाषण के दौरान पीएम ने कहा “5 मार्च 1966 को कांग्रेस ने मिजोरम में असहाय नागरिकों पर अपनी वायुसेना के माध्यम से हमला करवाया था। कांग्रेसवाले जवाब दें कि क्या वो किसी दूसरे देश की वायुसेना थी? क्या मिजोरम के लोग अपने देश के नागरिक नहीं थे? उनकी सुरक्षा भारत सरकार की जिम्मेदारी थी या नहीं थी? निर्दोष नागरिकों पर हमला करवाया गया। आज भी 5 मार्च को पूरा मिजोरम शोक मनाता है। कभी इन्होंने मरहम लगाने की कोशिश नहीं की। कांग्रेस ने इस सच को देश से छिपाया है। कौन था उस समय- इंदिरा गांधी।”
घटना की कहानी जानिए
5 मार्च 1966 की सुबह 11:30 मिनट पर आसमान में 4 लड़ाकू विमान आइजोल शहर को चारों ओर से घेर लेते हैं और ताबड़तोड़ बम बरसाने लगते हैं। ये विमान चीन या पाकिस्तान के नहीं, बल्कि भारतीय वायुसेना के विमान थे। उस समय मिजोरम, असम का हिस्सा हुआ करता था और उसे मिजो हिल्स कहते थे।
ये बमबारी लगातार 9 दिन यानी 13 मार्च 1966 तक होती है।
इस घटना को 57 साल हो चुका है। लेकिन इस कहानी की शुरुआत 1960 में ही हो गई थी तब मिजो हिल्स असम राज्य का हिस्सा हुआ करता था। इसी साल यानी 1960 में असम सरकार ने असमिया भाषा को राजकीय भाषा घोषित कर दिया।
यानी जिसे असमिया भाषा नहीं आती उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती थी। ये बात राज्य के एक बड़े हिस्से के हित में नहीं थी। मिजो समुदाय के लोगों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। इसके बाद अगले साल 28 फरवरी 1961 को इसी वजह से मिजो नेशनल फ्रंट यानी MNF बना, इसके नेता लालडेंगा थे।
पहले तो MNF ने शांतिपूर्वक धरनों से अपनी बात रखनी चाही।
लेकिन उनकी बात सुनी नहीं गई। फिर साल 1964 में असमिया भाषा लागू होने की वजह से असम रेजिमेंट ने अपनी सेकेंड बटालियन को बर्खास्त कर दिया। इसमें अधिकतर मिजो लोग थे। यह मिजो समुदाय के लोगो के लिए दूसरा झटका था। इससे मिजो हिल्स के लोगों में नाराजगी बढ़ी और शांतिपूर्वक धरना करने वाला MNF हिंसा पर उतर आया। इस बीच जो मिजोवासी बटालियन से निकाले गए थे, वे MNF में शामिल हो गए। इन्हीं लोगों ने मिलकर मिजो नेशनल आर्मी बनाई।
बाद में MNF को चीन और पूर्वी पाकिस्तान का भी समर्थन मिलना शुरू हो गया। जिस कारण उन्हें हथियार आसानी से उपलब्ध होने लगा। अगले पांच सालों में इस संगठन ने भारत विरोधी विदेशी शक्तियों से संपर्क बढ़ाकर अपनी ताकत काफी बढ़ा ली और 8 मिजो नायकों के नाम पर सशस्त्र बटालियनें खड़ी कर दीं। इसके बाद उसके दुश्मन देशों से सैन्य मदद मिलने लगी और एमएनएफ ने सीधे-सीधे भारत से अलग होकर अलग देश बनाने की मांग शुरू कर दी।
मिजो नेता लालडेंगा ने पूर्वी पाकिस्तान की यात्रा भी की और हथियारों, ट्रेनिंग का समझौता भी कर लिया।
इसके चलते उन्हें असम सरकार ने एक बार गिरफ्तार भी कर लिया, लेकिन अच्छे आचरण के चलते जल्द छोड़ दिया गया। इसके बाद MNF ने सरकारी खजाने सहित महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों और चंफाई और लुंगलाई जिलों में सेना के ठिकानों पर कब्जा कर लिया। उग्रवादियों ने हथियार लूट लिए थे।
इनमें 6 LMG, 70 Rifles, 16 स्टेन गन और ग्रेनेड फायर करने वाली 6 राइफलें थीं, 85 जवानों को बंधक बना लिया गया। किसी तरह से दो सैनिक अपनी जान बचने के कामयाब हुए। इन 2 सैनिकों ने MNF द्वारा हुई हमले की सारी जानकारी बताई। इसके बाद MNF ने टेलीफोन एक्सचेंज को निशाना बनाना शुरू कर दिया ताकि आइजोल से भारत के साथ सारे कनेक्शन टूट जाएं।
इसके बाद MNF असम राइफल्स के हेडक्वार्टर से तिरंगा उतारकर अपना झंडा फहरा दिया। इस घटना से दिल्ली में कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी हिल जाती हैं और सेना को जवाबी कार्रवाई का आदेश देती हैं।
फिर 5 मार्च 1966 को वायुसेना के 4 लड़ाकू विमानों को आइजोल में MNF के उग्रवादियों पर बमबारी की जिम्मेदारी दी गई।
इसके बाद एयर फोर्स के लड़ाकू विमानों ने आइजोल और अन्य क्षेत्रों में 13 मार्च तक लगातार बमबारी की। 9 दिन बमबारी होती रही, इन विमान पायलटों में दो शख्स ऐसे थे जिन्होंने आगे चलकर भारतीय राजनीति में बड़ा नाम बनाया। एक थे राजेश पायलट और दूसरे सुरेश कलमाड़ी।
इस बमबारी के बाद आइजोल और आसपास के इलाके 25 मार्च 1966 तक फिर से भारत सरकार के कब्जे में आ गए थे। लेकिन ये सवाल उठने लगे कि वायुसेना के जरिए अपने ही नागरिकों पर बम बरसाने की क्या जरूरत थी? समस्या को हल करने के लिए कोई दूसरा कदम भी तो उठाया जा सकता था। इस घटना के बाद अगले 20 साल तक लोगों में आक्रोश कायम रहा, जंगलों में छुपकर, म्यांमार व पूर्वी पाकिस्तान से उनका सशस्त्र संघर्ष चलता रहा। फिर 1986 में एतिहासिक समझौते के बाद 1987 में मिजोरम अलग राज्य बना।