एक छोटी कुल्हाड़ी से विशाल पेड़ की जड़ें हिलाना आसान नहीं होता
लेकिन आते-जाते लगातार उसी कुल्हाड़ी से उसकी जड़ों में प्रहार किया जाए तो ये पेड़ भी एक दिन ढह जाता है। वैसे भी अपनों को अपने ही काटते हैं, कुल्हाड़ी में लकड़ी का हथिया न हो तो कुल्हाड़ी भी पेड़ को नहीं काट पाती।
यूं तो राजनीति में छीनाझपटी देश की आजादी के शुरुआती दिनों से ही है
लेकिन कुछ वर्षों से सत्ता के लालच से लबालब नेता रिश्तों की कुछ ज्यादा ही बलि चढ़ाने लगे हैं। ये स्वार्थी नेता दोनों आस्तीनों में खुरपी छुपाए रखते हैं और अंदरखाते संगठन की जड़ों को कुरेदते रहते हैं। संगठनों को तोडऩे वाले इन लोगों की आकांक्षाओं और महत्वकांक्षाओं का दल-दल इतना गहरा हो चुका होता है इनके आगे कुटुम्भ को बचाए रखने की नौबत आ जाए तो ये उससे भी मुंह मोड़ लेते हैं। किसी भी पार्टी/संगठन को तोडक़र ये नेता तब ही दूसरी पार्टी में जाते हैं जब इन्हें जनमानस से कोई वास्ता नहीं होता। लेकिन ये संगठन को तार-तार करने वाले मतलबी भूल जाते हैं कि ‘बत्तख के बच्चे को तैरना’ नहीं सिखाया जाता।
इनके स्वार्थ के मात्र तीन ही कारण होते हैं-
पद-पैसा और पॉवर। अब भला इसमें उस मतदाता का क्या जिन्होंने इन्हें अपना ‘मत’ दिया। अब तो मतदाता को भी समझ जाना चाहिए कि भविष्य में ऐसे-ऐसों को कैसे सबक सिखाना चाहिए? जनता को धोखा देकर ऐसे नेता कुछ क्षण के लिए तो महारथी बन जाते हैं लेकिन भूल जाते हैं कि अब जनता ‘मत के ब्रह्मास्त्र’ से इन्हें कुचलने का हुनर जान चुकी है। आज का मतदाता तेज हो गया है, उसे समझ आ गया है कि अब मुझे बार-बार टूट-टूट कर बिखरना नहीं है। मैं लाचार नहीं हूं, मुझे अब संगठन को तोड़ने वाले नेताओं के प्रति उदारता नहीं दिखानी।
पिछले दिनों अजित पवार अपने 82 वर्षीय चाचा शरद पवार को रिटायर हो जाने की धमकी देकर दूसरे पाले में चले गए।
7 अक्टूबर, 2018 को जननायक चौधरी देवी लाल के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में हरियाणा के हल्का गोहाना में भी एक ऐसी ही गैर-जिम्मेदार वारदात को अंजाम दिया गया था। इनका मानना था कि लोभी आदमी राजनीति में तब तक कुछ नहीं बन सकता जब तक वह मंजा हुआ ‘ठग’ नहीं बन जाता। इनके सियासती दिलो-दिमाग में सिर्फ ‘मुनाफा’ चल रहा होता है, दिल-दुनिया जाए भाड़ में। लेकिन इधर (इनेलो संगठन में) समर्थकों के बीच बिल्लू के नाम से मशहूर और राजनीति में संगठन को पुन: एकत्रित करने में माहिर हो चुके चौधरी अभय सिंह चौटाला तो इतने उम्रदराज नहीं हुए थे कि उन्हें भी महत्वकांक्षियों ने सरेराह अकेला छोड़ दिया।
जैसे कोई भी ‘उदाहरण पेश करना’ ज्यादा आसान होता है,
ठीक इसके विपरीत ‘उदाहरण बन जाना’ बेहद कठिन काम होता है। पिताश्री और अग्रज के जेल जाने पर पूरे इनेलो संगठन की जिम्मेदारी अभय चौटाला पर थी, वो जिसे चाहते विधायक/सांसद की टिकट दे सकते थे या नहीं दे सकते थे। जिस किसी को दरकिनार करना चाहते, कर सकते थे, हटा सकते थे, दबा सकते थे। लेकिन इन्होंने बस सभी को जोड़ने जैसे अर्जित कार्य किए। आज ये (अभय चौटाला) न मुख्यमंत्री हैं और न ही उप-मुख्यमंत्री, ऐसे नेता सियासत के योद्धा होते हैं इसीलिए ही इनके पास मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री से भी ज्यादा लोगों का जमावड़ा रहता है।
लेखक: नच्छत्तर सिंह
1. एमए मास कम्युनिकेशन
2. एमए पंजाबी
3. पीजी डिप्लोमा, ह्यूमन राइट्स