चंडीगढ़ : हरियाणा साहित्य अकादमी, हरियाणा कला-परिषद एवं महाकवि संत सूरदास स्मारक ट्रस्ट द्वारा सीही, फरीदाबाद में सूर महोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि फरीदाबाद के विधायक श्री विपुल गोयल ने कहा कि यह नगरी वास्तव में ही पावन है क्योंकि सूरदास जैसे हरिभक्त ने वैशाख शुक्ल पंचमी वि. संवत 1535 को यहां जन्म लिया और भगवान भक्ति के सवा लाख पद लिखकर हिन्दी भाषा व साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ी।
महाकवि सूरदास सचमुच हिन्दी भाषा के भक्तिकाल के रत्न थे। वात्सल्य रस वर्णन और वियोग श्रृंगार में वे एक गहरी छाप छोडऩे वाले सम्राट थे।ये अपने संगीत कौशल के लिये विख्यात थे। इनका कंठ माधुर्य से पूर्ण था। सूरदास भावुक कवि और भक्त थे। इस बात में बिल्कुल भी संदेह नहीं है कि सूरदास भक्ति के ही नहीं वात्सल्य रस के भी जो शायद दुनिया की किसी भी भाषा के सबसे बड़े कवि माने जाते हैं। उन्होंने कृष्ण की बाललीला को पदों में लिखकर घर-घर में ऐसी मान्यता दिलाई जो शायद ही किसी और अवतार और उनकी लीलाओं को न मिली हो।
उन्होंने कहा कि वे निदेशक, साहित्य अकादमी व महाकवि सूरदास ट्रस्ट का हृदय से आभारी है कि उन्होंने महाकवि सूरदास जी की जन्मास्थली पर इतना भव्य आयोजन किया और उन्होंने आशा करते हुए कहा कि भविष्य में इस परम्परा का निर्वाह करते हुए इससे भी भव्य आयोजन होते रहेंगे। यहां महाकवि की याद में एक भव्य संस्थान के निर्माण के हरसंभव प्रयास किये जायेंगे। विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे श्री मूलचंद शर्मा, विधायक बल्लबगढ़ ने कहा कि हम सब महाकवि संत सूरदास के ऋणी हैं जिन्होंने एक ब्रजभूमि का यशोगान किया। संत सूरदास ने उत्तर भारत में भक्ति के स्वरूप में क्रांन्तिकारी परिवर्तन किया। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की भक्ति को सखा भाव में परिवर्तित किया।
भगवान की बाल लीलाओं का अद्भुत वर्णन करके उन्होंने प्रत्येक घर में बाल कृष्ण की स्थापना की अर्थात उन्होंने भगवान को भव्य मन्दिरों से निकालकर हर घर के आंगन में स्थापित किया। श्री कृष्ण की लीलाओं का ब्रजभाषा में गान करके उन्होंने उत्तर भारत के हर घर में भगवान कृष्ण की अनेक छवियों की स्थापना की। यह उन्हीं का योगदान था कि भक्त और भगवान में अद्भुत साम्य हो गया। ऐसा नहीं है कि महाकवि सूरदास ने श्री कृष्ण की लोकरजंक लीलाओं का ही गान किया हो। उन्होंने अपने सूरसागर में जहां एक ओर आम जन को भक्ति और मुक्ति का मार्ग दिखाया वहीं राजा के कत्र्तव्यों का भी उल्लेख किया। उन्होंने समाज में सह अस्तित्व और समरसता की स्थापना के नये सूत्र अपनी रचनाओं में दिये।