साउथ कोरिया के बुसान शहर में प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए या इसके प्रदूषण को रोकने के क्या कारगर उपाय किए जाएं, इस विवाद का हल नहीं निकलने के चलते दुनिया के करीब 150 देशों के बीच वैश्विक संधि की कोशिशें नाकाम हो गई। एक सप्ताह में कई चरणों की बातचीत के बाद भी देश किसी समझौते पर नहीं पहुंच सके और गहरी असहमति के कारण फैसले टाल दिए गए। इस संधि के अगले प्रयास के रूप में 2025 के दौरान फिर से बैठक हो सकती है। भारत ने इस सम्मेलन में बीच का रुख अपनाया और प्लास्टिक प्रदूषण से लड़ने के लिए एक बहुराष्ट्रीय कोष की स्थापना का सुझाव दिया।
बन गए दो गुट
पनामा के नेतृत्व में 100 से अधिक देश चाहते हैं कि प्लास्टिक उत्पादन पर रोक लगाई जाए। उनका कहना है कि उत्पादन कम किए बिना प्रदूषण रोकना संभव नहीं है। दूसरी ओर सऊदी अरब, ईरान और रूस जैसे तेल उत्पादक देशों ने इसका विरोध किया। तेल उत्पादक देशों का कहना था कि संधि का लक्ष्य प्लास्टिक खत्म करना नहीं, बल्कि उसके कचरे का निस्तारण और प्रदूषण को कम करना है। इन देशों ने कहा कि प्लास्टिक ने काफी फायदा भी पहुंचाया है और इसे पूरी तरह खत्म करना सही नहीं है। भारत सहित विकासशील देशों ने संधि लागू करने के लिए अमीर देशों से वित्तीय सहायता देने की मांग की लेकिन इस पर सहमति नहीं बनी।
भारत भी पूर्ण प्रतिबंध के पक्ष में नहीं
भारत ने प्लास्टिक उपयोग पर बीच का रुख अपनाया। भारत ने कहा कि संधि का दायरा प्लास्टिक प्रदूषण को संबोधित करने तक सीमित होना चाहिए और अन्य बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों और अन्य प्रासंगिक साधनों और निकायों के मैंडेट के साथ ओवरलैप नहीं होना चाहिए। भारत ने प्राथमिक प्लास्टिक पॉलिमर के उत्पादन को विनियमित करने के लिए किसी भी उपाय का समर्थन करने में अपनी अस्वीकृति जाहिर की और कहा कि इससे सदस्य देशों के विकास के अधिकार के संबंध में व्यापक प्रभाव पड़ता है।