In Pursuit of Democracy: Beyond Party Lines: 1999 की एक महत्वपूर्ण घटना का जिक्र करते हुए नजमा हेपतुल्ला ने अपनी नई आत्मकथा “इन परसूइट ऑफ डेमोक्रसी: बियॉन्ड पार्टी लाइन्स” में बताया कि उन्हें तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से बात करने के लिए एक घंटे तक इंतजार करना पड़ा था। वे उस समय बर्लिन में थीं और इंटर-पार्लियामेंटरी यूनियन की अध्यक्ष चुनी गई थीं। इस खबर के बाद नजमा ने फोन करके सोनिया गांधी से बात करने की कोशिश की, लेकिन उनके अधिकारियों ने बताया कि “मैम अभी व्यस्त हैं।”
हेपतुल्ला ने बताया कि एक घंटे तक इंतजार करने के बावजूद सोनिया गांधी से कोई संपर्क नहीं हो सका। यह घटना उनके लिए निराशाजनक थी, खासकर जब उन्होंने इस पद के लिए अपना नाम आगे बढ़ाने से पहले सोनिया से अनुमति ली थी।
प्रधानमंत्री वाजपेयी से मिली
प्रतिक्रिया नजमा ने अपनी किताब में लिखा कि जब उन्होंने इस पद के बारे में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को फोन किया, तो उन्होंने तुरंत कॉल रिसीव की और इस ऐतिहासिक सम्मान पर खुशी जताई। वाजपेयी जी ने यह खुशी व्यक्त की कि यह सम्मान एक भारतीय मुस्लिम महिला को मिला है।
सोनिया गांधी की नेतृत्व शैली पर टिप्पणी
इस घटना का जिक्र करते हुए नजमा हेपतुल्ला ने कहा कि यह क्षण उनके जीवन का एक ऐसा मोड़ था जिसने उनके मन में हमेशा के लिए अस्वीकृति की भावना भर दी। कांग्रेस छोड़ने के बाद बीजेपी में शामिल हो चुकीं नजमा का मानना था कि सोनिया गांधी की नेतृत्व शैली कांग्रेस की पारंपरिक संस्कृति से अलग थी। उनका कहना था कि इस दूरी ने पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच संवाद और सहयोग को प्रभावित किया।
मोदी सरकार में मंत्री रहीं नजमा
2014 में मोदी सरकार के पहले टर्म में नजमा हेपतुल्ला को अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री बनाया गया था। उनका मानना था कि सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी में पारंपरिक मूल्यों और संवाद के स्तर में गिरावट आई थी। उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी हमेशा आम कार्यकर्ताओं के लिए सुलभ थीं, जबकि सोनिया गांधी की शैली इसके उलट थी, जिससे पार्टी संगठन पर नकारात्मक असर पड़ा।