Kailash Gehlot Resignation: दिल्ली की सियासत में तब भूचाल आया जब अरविंद केजरीवाल के वरिष्ठतम सहयोगियों में से एक, कैलाश गहलोत ने अचानक इस्तीफा दे दिया। उनके इस अप्रत्याशित कदम ने राष्ट्रीय राजधानी की राजनीति में हलचल मचा दी है।
लेकिन गहलोत का इस्तीफा वास्तव में अचानक लिया गया फैसला है या इसकी पृष्ठभूमि पहले से तैयार की जा रही थी, इसने एक नई चर्चा को जन्म दे दिया है।
कैलाश गहलोत वही मंत्री हैं जिन्हें दिल्ली के एलजी विनय कुमार सक्सेना ने 15 अगस्त के अवसर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जगह दिल्ली सरकार के आधिकारिक कार्यक्रम में झंडा फहराने का मौका दिया था। केजरीवाल चाहते थे 2024 की 15 अगस्त को झंडा आतिशी फहराएं। इस पर जेल से निर्देश भी जारी कर दिया गया, लेकिन दिल्ली के LG ने केजरीवाल के इस आदेश पर पानी फेर दिया। उन्होंने आतिशी की जगह झंडा फहराने के लिए गहलोत को चुना। गहलोत ने पार्टी की टॉप लीडरशिप के आदेश के ऊपर LG सक्सेना के आदेश को तरजीह दी।
इन पॉइंट्स में समझें गहलोत के इस्तीफे के पीछे की कहानी
1) दरअसल, जब मनीष सिसोदिया जेल गए तो गहलोत चाहते थे कि उन्हें सिसोदिया के मंत्रालय सौंपे जाए, लेकिन सारे मंत्रालय आतिशी को दिए गए।
2) AAP के सूत्र के मुताबिक जब मनीष सिसोदिया जेल गए थे, तभी गहलोत ने पार्टी छोड़ने का मन लगभग बना लिया था, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्होंने ऐसा नहीं किया। दिल्ली BJP सूत्र के मुताबिक पार्टी ने गहलोत को इंतजार करने को कहा था। BJP चाहती थी कि AAP के अहम नेता को उस वक्त पार्टी में शामिल किया जाए, जब दिल्ली चुनाव की तारीख नजदीक हो।
3) झंडा फहराने की घटना के बाद कैलाश गहलोत और पूर्व CM अरविंद केजरीवाल आमने-सामने आ गए। गहलोत ने पार्टी सुप्रीमो के आदेश को दरकिनार कर एलजी के आदेश को माना। तब ही उन्हें लग गया था, कि वे यहां नहीं टिक पाएंगे।
4) जब पूरी आम आदमी पार्टी दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना पर दिल्ली सरकार के काम में उन्हें रोड़ा बता रही थी, ऐसे समय में भी कैलाश गहलोत के विभागों के काम एलजी दफ्तर में कभी नहीं रुके। नई बसों का उद्धघाटन हो या फिर किसी नई योजना की आधारशिला रखना, LG सक्सेना हर जगह नजर आते थे। दिल्ली के लोगों को तीर्थ यात्रा कराने की योजना पर भी LG ने गहलोत की योजना पर ही मुहर लगा दी। ये बातें राजनीतिक राजनीतिक गलियारे में अफवाहों की शक्ल में तैर रही थीं।
5) अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद जब आतिशी को दिल्ली का कार्यभार सौंपा गया उस वक्त ही गहलोत पार्टी छोड़ने वाले थे। लेकिन आप सूत्रों की माने तो तब भी गहलोत AAP छोड़ने के मूड में थे, लेकिन BJP ने उन्हें और इंतजार करने को कहा। गहलोत भी इस छवि के साथ पार्टी से नहीं जाना चाहते थे कि वे महात्वाकांक्षी हैं और उन्हें CM नहीं बनाया गया तो वे पार्टी से नाराज हो गए।
क्या डीटीसी घोटाले की जांच है असली वजह ?
कैलाश गहलोत का इस्तीफा इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि बीजेपी द्वारा उनपर लगाए गए आरोपों और एलजी और टॉप बीजेपी नेताओं से भी उनकी बढ़ती नजदीकियों को लेकर भी तरह तरह की कयासबाजियां लगाई जा रही हैं। कुछ साल पहले तक इसी पार्टी ने गहलोत पर आरोपों की झड़ी लगाई थी। दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने डीटीसी घोटाले का मुद्दा विधानसभा में जोर-शोर से उठाया था। दरअसल, परविहन विभाग का जिम्मा गहलोत संभाल रहे थे। साल 2021 दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (डीटीसी) के बस खरीद मामले में CBI की जांच चल रही है। इस मामले की शुरुआत 2020 में हुई थी, जब दिल्ली सरकार ने 1,000 बसों की खरीद के लिए टेंडर जारी किया था। मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने आरोप लगाया था कि बसों के रखरखाव के नाम पर 4,500 करोड़ रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं, जिसे बड़े घोटाले के रूप में देखा गया। इसके बाद, दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल अनिल बैजल ने तीन सदस्यीय हाई लेवल कमेटी के गठन का निर्णय लिया और बस टेंडर पर रोक लगा दिया।
इसके साथ ही कैलाश गहलोत का नाम दिल्ली के कथित शराब घोटाले में भी आया। शराब नीति बनाने में उन्होंने पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के साथ मिलकर काम किया। इस संबंध में उनसे मार्च 2024 में पूछताछ भी की गई थी।