राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव में अभी दो महीने से ज्यादा का वक्त है, लेकिन आम आदमी पार्टी ने सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी जहां एक तरफ डोर-टू-डोर कैंपेन से वोटरों को साध रही है.
वहीं पार्टी जातीय समीकरण को भी साधने में कोई कोर-कसर नहीं रहने देना चाहती है.
आम आदमी पार्टी की सबसे ज्यादा फोकस दिल्ली के दलित वोटरों पर है. इसे साधने के लिए पिछले 2 दिन में पार्टी ने 2 बड़े फैसले किए हैं. गुरुवार को आप ने मेयर पद के लिए दलित नेता महेश खींची का नाम आगे बढ़ाया. आप पार्षदों के बूते खींची दिल्ली के मेयर चुन भी लिए गए हैं.
इधर, शुक्रवार को सीमा पुरी के पूर्व विधायक वीर सिंह धींगान को अरविंद केजरीवाल ने अपने पाले में झटक लिया. धींगान दिल्ली कांग्रेस के कद्दावर दलित नेता माने जाते हैं.
दिल्ली पॉलिटिक्स में धींगान कितने मजबूत?
सीमापुरी से विधायक रहे वीर सिंह धींगान को शीला दीक्षित का करीबी माना जाता था. एमसाीडी कर्मचारी यूनियन के जरिए राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले धींगान ने सीमापुरी सीट से 1998, 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी.
आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालिवाल ने एक पोस्ट कर लिखा है कि 2001 से लेकर 2011 तक हम सीमा पुरी में धींगान के खिलाफ लड़ते थे. आंदोलन की शुरुआत ही वहीं से हुई थी.
2013 के विधानसभा चुनाव में धींगान को आप के धर्मवीर ने पटखनी दे दी. धींगान का सितारा इसके बाद चमक नहीं पाया.
आनंद और गौतम के जाने से बना था वैक्यूम
2020 के चुनाव में दिल्ली में आम आदमी पार्टी के पास दलित के रूप में 2 बड़े चेहरे थे. इनमें पहला नाम राजेंद्र पाल गौतम और दूसरा नाम राजकुमार आनंद का था. दोनों केजरीवाल सरकार में मंत्री भी रहे हैं, लेकिन 2024 आते-आते दोनों ने आप से किनारा कर लिया.
गौतम और आरके आनंद के जाने से आप के भीतर दलित नेताओं को लेकर एक वैक्यूम बन गया था. हालिया लोकसभा चुनाव में पार्टी ने कुलदीप कुमार के बूते इसे भरने की कोशिश भी की थी, लेकिन पार्टी को बड़ी सफलता नहीं मिल पाई.
दिल्ली में दलित कितने महत्वपूर्ण, 2 प्वॉइंट्स
1.पूरे दिल्ली में 17 प्रतिशत आबादी- राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दलितों की आबादी करीब 17 प्रतिशत है. दक्षिण दिल्ली में सबसे ज्यादा 30 प्रतिशत के करीब दलितों की आबादी है. इसी तरह पूर्वी दिल्ली में दलितों की आबादी करीब 27 प्रतिशत है. राजधानी दिल्ली की 27 में से 12 ऐसी तहसील है, जहां पर दलितों की आबादी 1 लाख से ज्यादा है.
2011 के आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा सरस्वती विहार में दलितों की आबादी 4 लाख 65 हजार के आसपास है. सीलमपुर में 1 लाख 75 हजार और सीमापुरी में 1 लाख 60 हजार दलित रहते हैं. पिछले 14 साल में इन आंकड़ों के दोगुने होने की बात कही जा रही है.
2. 12 सीट दलितों के लिए रिजर्व- दिल्ली विधानसभा की कुल 70 में से 12 सीट दलितों के लिए रिजर्व है. 2020 के चुनाव में सभी 12 सीटों पर आम आदमी पार्टी को जीत मिली थी, लेकिन इस बार परिस्थिति बदली हुई है.
आप के मुकाबले इस बार कांग्रेस की भी नजर दलित वोटरों पर है. वहीं बीजेपी पहले की तुलना में ज्यादा मजबूत हुई है. सीएसडीएस के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को दलितों के 49 प्रतिशत वोट मिले.
आप के पक्ष में 28 प्रतिशत और कांग्रेस के पक्ष में 20 प्रतिशत दलितों ने मतदान किया. आप लोकसभा वाली गलती विधानसभा के चुनाव में नहीं करना चाहती है.
दिल्ली की 70 सीटों पर फरवरी में चुनाव
दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों पर फरवरी 2025 में चुनाव कराए जा सकते हैं. विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच है. कांग्रेस पूरे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कवायद में जरूर जुटी हुई है.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सरकार बनाने के लिए 36 विधायकों की जरूरत होती है. इस बार आप जहां अरविंद केजरीवाल के फेस पर मैदान में उतर रही है. वहीं बीजेपी की तैयारी कलेक्टिव लीडरशिप में लड़ने की है.