हरियाणा के नवनियुक्त मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने शपथ लेने के दूसरे ही दिन अनुसूचित जातियों को मिलने वाले आरक्षण के उपवर्गीकरण को हरी झंडी दिखा दी है। भाजपा का यह दांव हरियाणा की उस जनता को धन्यवाद भी कहा जा सकता है जिसने कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा झुके चुनाव में भाजपा को न केवल पूर्ण बहुमत की सत्ता दिला दी, बल्कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के हौसले अगली लड़ाई के लिए भी मजबूत कर दिये।
अब भाजपा इसी दांव के सहारे महाराष्ट्र और झारखंड में भी बड़ा उलटफेर करने की कोशिश करेगी जहां अलग-अलग कारणों से वह इस समय भी बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है।
दरअसल, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों ने जातिगत राजनीति करने वाले दलों के अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया था। इन चुनाव परिणामों से स्पष्ट हुआ था कि जिस अति पिछड़ी और अति दलित जातियों ने अब तक सपा-बसपा या राजद जैसे दलों का साथ दिया था, अचानक वे भाजपा के साथ आ गई थीं। इसके एक वर्ग के वोट ने भाजपा को अजेय बना दिया था।
2024 के चुनावों में जिस तरह राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने संविधान और आरक्षण का मुद्दा उठाया, यही वोट बैंक भाजपा से खिसक गया। इसका सीधा असर यह हुआ कि 2019 में 303 सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा अचानक लड़खड़ा गई। अब सरकार चलाने के लिए भी उसे जदयू और टीडीपी नाम के दो पैरों का सहारा लेना पड़ रहा है। लेकिन जिस तरह हरियाणा के चुनाव में भाजपा को जीत मिली है, पार्टी को उम्मीद है कि उसका खिसका वोट बैंक एक बार फिर उसके पास वापस आया है। एससी कोटे के आरक्षण में उपवर्गीकरण कर भाजपा उसी वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है जो 2014 और 2019 में उसकी जीत का मेरुदंड बना था।
मायावती क्यों बिफरी
सैनी सरकार के कदम का सबसे तगड़ा विरोध बहुजन समाज पार्टी नेता मायावती ने किया है। उन्होंने भाजपा सरकार के इस कदम को आरक्षण को समाप्त करने की कोशिश बताया है। दरअसल, मायावती की पूरी राजनीति इसी दलित जातियों के समर्थन पर टिकी थी। पिछले कुछ चुनावों में इस वोट बैंक ने उनको धोखा दिया है, लेकिन इसके बाद भी इन्हीं मतदाताओं की वापसी में उनकी अपनी राजनीति की वापसी की उम्मीद छिपी हुई थी। लेकिन भाजपा के कट्टर दांव के बाद अब उनकी सोच को कमजोर कर सकता है। यही कारण है कि मायावती को सैनी सरकार का यह कदम नागवार गुजरा।
केंद्र में भी भाजपा आजमाएगी ये दांव
राजनीतिक विश्लेषक कुमार संजय ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा का यह दांव हरियाणा के गैर जाटव महादलित मतदाताओं को दिया गया स्पष्ट संदेश है। भाजपा यहीं नहीं रुकेगी। एक-दो भाजपाई राज्यों में इस फॉर्मूले को अपनाने के बाद वह केंद्र सरकार के स्तर पर भी इस फॉर्मूले को आजमाएगी। यदि उसका प्रयोग सफल रहा तो गैर जाटव दलित एक बार फिर उसके साथ आ सकता है जो मोदी की ताकत बन सकता है।
कुमार संजय ने कहा कि, दलित जातियों में एक बात यह भी देखी गई है कि वे अपनी जाति के नेता के तौर पर किसी दूसरी जाति के नेताओं को स्वीकार नहीं करती। इस बात को ध्या्न रखते हुए ही भाजपा हर जातियों में अपने नेता तैयार कर रही है। यदि उसका यह दांव कामयाब रहता है तो इससे सबसे बड़ा झटका कांग्रेस और विपक्षी दलों को लगेगा जो आरक्षण दांव के सहारे भाजपा को कमजोर करने की कोशिश कर रहे थे।