संजय मिश्र, नई दिल्ली। महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के एलान के साथ ही राजनीतिक पार्टियों की गहमागहमी रफ्तार के नए सियासी ट्रैक पर बढ़ने लगी है। केंद्र में सत्ताधारी भाजपा-एनडीए हरियाणा की चुनावी कामयाबी के टॉनिक से मिली गति को इन दोनों राज्यों में जारी रखने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।
कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती
वहीं, जम्मू-कश्मीर में आईएनडीआईए की जीत भी हरियाणा में कांग्रेस की अप्रत्याशित हार के सदमे की भरपायी करती नहीं दिखी है। ऐसे में गठबंधन की अगुवाई कर रही कांग्रेस के सामने हरियाणा के सियासी हादसे को पीछे छोड़ जीत की राह पर लौटने के साथ-साथ विपक्षी राजनीति को डांवाडोल होने से बचाने की चुनौती है। कांग्रेस की यह चुनौती दोहरी है क्योंकि इन दोनों चुनावी राज्यों में पार्टी गठबंधन के साथियों के साथ चुनाव मैदान में होगी जहां सहयोगी दलों से सामंजस्य बिठाने की जिम्मेदारी भी उसके कंधे पर ही है।
कांग्रेस की अग्नि परीक्षा
चुनावी तारीखों के मंगलवार को हुए एलान के बाद कांग्रेस की सबसे पहली सियासी अग्निपरीक्षा सीट बंटवारे को लेकर होगी। महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस के गठबंधन की चुनौतियां अलग-अलग है।
कांग्रेस हाईकमान के साथ सोमवार को हुई बैठक में महाराष्ट्र के पार्टी नेताओं ने राज्य की 288 सीटों में से 90 प्रतिशत सीटों के बंटवारे पर सहमति बन जाने के दावे किए।
सीटों का बंटवारा
हालांकि, वास्तविकता यह भी है कि हरियाणा के नतीजों के बाद महाराष्ट्र में जातीय-सामाजिक समीकरण की जमीनी हकीकत के अनुरूप महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शामिल तीनों घटक कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी और एनसीपी शरद पवार की पार्टी कई सीटों का बंटवारा नई परिस्थितियों के हिसाब से करना चाहते हैं।
कांग्रेस की राजनीतिक जटिलताएं
साफ है कि ऐसे में इनके बीच सीटों की अदला-बदली को लेकर रस्साकशी की स्थितियां बन सकती हैं। इसमें उद्धव ठाकरे की पार्टी हो या फिर शरद पवार दोनों कांग्रेस पर ही दबाव बनाने का हर प्रयास करेंगे। कांग्रेस की राजनीतिक जटिलताएं एक जैसी नहीं तथा महाराष्ट्र और झारखंड में गठबंधन का स्वरूप अलग-अलग है, मगर सिरदर्दी एक जैसी।
महाराष्ट्र में लोकसभा 2024 के चुनाव में 13 सीटें जीतने वाली कांग्रेस वोट और सीट दोनों लिहाज से पहले नंबर की पार्टी है। वर्तमान विधानसभा में भी कांग्रेस विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है। मगर शिवसेना यूबीटी राज्य के चुनाव में बड़े भाई की भूमिका में रहना चाहती है।
उद्धव की पार्टी का रूख
स्वाभाविक रूप से महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। कांग्रेस का 110-115 सीटों पर लड़ने का प्लान है और शिवसेना को 100 सीटें देना चाहती है। शरद पवार तथा कुछ अन्य छोटे दलों को 70-75 सीटों के बीच सहमत करने में कांग्रेस को शायद दिक्कत नहीं आएगी। लेकिन, उद्धव की पार्टी का रूख सीट बंटवारे की पहली अग्नि परीक्षा में चुनौती तो है ही। खासकर यह देखते हुए कि शिवसेना यूबीटी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से दो अधिक सीटों पर लड़ी मगर उसकी तुलना में चार कम सीटें जीत पायी।
बड़े भाई की भूमिका में झामुमो
विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का जनाधार उद्धव के मुकाबले अधिक है। ऐसे में सीट बंटवारे की खिचखिच से गठबंधन को बाहर निकालते हुए चुनाव अभियान में भाजपा नेतृत्व वाले महायुति के बढ़े मनोबल को थामने की दोहरी जवाबदेही भी उसकी ही है। झारखंड में गठबंधन का स्वरूप कुछ ऐसा है कि झामुमो बड़े भाई की भूमिका में है।